बीते दिनों इसकी चर्चा दिल्ली परिवहन निगम के बेड़े में चलने वाले निजी बसों के कर्मचारियों के बीच होती दिखी। दरअसल परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने नजफगढ़ टर्मिनल से एम्स-झज्जर के बीच चलने वाली डीटीसी बसों को हरी झंडी दिखाई थी। इतना ही नहीं उन्होंने केजरीवाल सरकार का हरियाणा की जनता को नए साल का तोहफा बताया था।

किसी ने ठीक ही कहा- दिल्ली में मौजूद बसों के जर्जर हालत की उन्हें सुध कहां ! यहां चंद- रूट को छोड़ दे तो सार्वजनिक डीटीसी की हालत बहुत खराब है। लोग घंटों बसों का इंतजार करने पर मजबूर हैं। जिन बसों की मियाद पूरी हो गई है उन्हें जर्जर हालत में सड़क पर उतारा जा रहा है। दूसरे ने कहा- दरअसल यहां का चुनाव हो चुका है, अब वहां (हरियाणा) पर नजर है।

ठंड में गर्म सियासत

दिल्ली में तापमान भले ही गिरा हो लेकिन सियासी पारा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इस वजह से उपराज्यपाल व सरकार के बीच लगातार टकराव सामने आ रहे हैं। इस टकराव में अब तक आम आदमी पार्टी का ही पलड़ा भारी रहा है लेकिन सामने आ रहे दस्तावेज ने जनता के बीच एक सवाल जरूर खड़ा कर दिया है।

आम जनता मान रही है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अब काम की जगह टकराव की सियासत तेज कर दी है क्योंकि जैसे दिल्ली सरकार बार-बार उपराज्यपाल पर काम नहीं करने देने का आरोप लगा रही है। वैसे ही निगम की सत्ता में आते ही एक निगम के सबसे बड़े हंगामे का भी इतिहास दर्ज हो गया है।

पुलिस मुख्यालय से खेल

दिल्ली पुलिस मुख्यालय से खेल शुरू है। यह खेल कोई स्थानांतरण या सुरक्षा व्यवस्था पर नहीं हो रहा बल्कि जाड़े में सुबह-सुबह पुलिस वालों को बाहर निकालने का खेल है। इसके पीछे पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से सक्रिय है कुछ अन्य लोग। बताया जा रहा है कि इसके पीछे आयुक्त का ही निर्देश काम कर रहा है। बीते दिन कंझावला-सुल्तानपुरी में जो घटना हुई, उसमें कुछ पुलिस वाले की ढिलाई भी सामने आई है। अब उनके लिए अलग से निर्देश जारी हो रहा है लेकिन अब सारे अफसरों को ठंड में बाहर निकाला जाए, इसलिए क्रिकेट का बहाना बनाया गया है, लेकिन मंसूबे आयुक्त के कुछ और हैं।

सदन में अनदेखी

दिल्ली नगर निगम की पहली ही बैठक में जमकर हंगामा हुआ। नवनिर्वाचित पार्षदों ने न केवल नियम-कायदे को ठेंगा दिखाया, बल्कि उन वोटरों की उम्मीदों पर पानी फेरा, जिन्होंने अपने-अपने इलाकों से उन्हें चुन कर भेजा था, ताकि विकास कार्य को गति मिले और पार्षद उनकी समस्याओं का समाधान करें। हैरानी की बात यह है कि अधिकतर पार्षद मेज पर चढ़ कर सदन के अंदर गैर संसदीय भाषा का इस्तेमाल करते दिखे।

मानो सदन के अंदर नहीं, सदन के बाहर किसी सभा का संबोधित कर रहे हैं और विपक्ष के किसी नेता पर हमलावर हैं। पार्षदों के इस कृत्य को भले ही एक पार्टी के आला कमान और पार्टी नेतृत्व वाजिब ठहरा रहे हैं, लेकिन दिल्ली की आम जनता कहीं न कहीं मान रही है कि इस प्रकार से सदन की मयार्दा की अनदेखी करना पार्षदों को शोभा नहीं देता।

पार्षदों को घाटा

यह बात सुनने में अजीब जरूर है लेकिन यह पूरी तरह से हकीकत है। नव निर्वाचित पार्षदों के शपथ ग्रहण में हो रही देरी से सबसे ज्यादा नए पार्षदों को घाटा हो रहा है। बेदिल को एक ऐसे ही पार्षद ने बताया कि पार्षदों को कोई वेतन और अन्य बड़ी सुविधाएं तो नहीं मिलती लेकिन बैठकों में जाने का भत्ता तो जरूर मिलता है। अब अगर शपथ ग्रहण ही देरी से होगी तो उतने दिन के भत्ते से तो वे वंचित रह ही गए।
-बेदिल