सितंबर की शुरुआत की बात है, जब मध्य प्रदेश के परासिया में कुछ तो गड़बड़ थी। कई बच्चे, जो 5 साल तक की उम्र के थे, उनकी मौत होना शुरू हो चुकी थी, लेकिन कारण स्पष्ट नहीं था। दो हफ्ते तक जिला प्रशासन पूरी तरह अनजान रहा और समझ ही नहीं आ रहा था कि इन बच्चों की मौत कैसे हो रही है
स्वास्थ्य अधिकारियों ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच शुरू की। पानी के स्रोतों की जांच की गई, मच्छरों की आबादी पर भी नजर रखी गई, लेकिन जितने भी टेस्ट किए गए, वे सभी नेगेटिव आ रहे थे। वहीं दूसरी तरफ, स्वास्थ्य विभाग अपने स्तर पर पोस्टमार्टम नहीं कर पा रहा था, क्योंकि माता-पिता की तरफ से इसकी इजाजत नहीं मिल पा रही थी।
मध्य प्रदेश में 2 सितंबर को सबसे पहले 4 वर्षीय शुभम की मौत हुई थी, फिर 5 सितंबर को 3 साल की विधि की जान गई। 7 सितंबर को 5 साल के अदनान ने भी अपनी जान गवाई। 13 सितंबर को 4 वर्षीय की भी मौत हो गई, फिर 15 सितंबर को 5 साल की ऋषिका की जान भी नहीं बचाई जा सकी, और 16 सितंबर को 2 वर्षीय श्रेया ने भी इस दुनिया को छोड़ दिया।
लेकिन इसके बाद, जब 18 सितंबर को 4 वर्षीय हितांशी की भी मौत हो गई, तो नागपुर से एक संदेश आया कि किडनी फेलियर की वजह से बच्चों की मौत हो रही थी। उसी दिन 5 साल के विकास ने भी अपनी जान गंवाई। इसके बाद, जांच का दायरा बढ़ा दिया गया। अस्पताल के लोगों ने उन बच्चों की रिनल बायोप्सी की, जिसमें किडनी की टिशू का अध्ययन किया गया और उसी से पता चला कि आखिर उनकी मौत कैसे और क्यों हुई।
परासिया सब डिविजनल मजिस्ट्रेट विकास कुमार यादव ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “हम पोस्टमार्टम कई दिनों तक इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि माता-पिता का कंसेंट नहीं मिल रहा था। अगर इजाजत मिल भी जाती, तो भी शायद हमें असल कारण नहीं पता चलता। असल कारण जानने के लिए टॉक्सिकोलॉजी रिपोर्ट का अध्ययन जरूरी था।”
अब विकास की मौत के बाद, तीन बच्चों की बायोप्सी हुई, जिसमें पता चला कि नेफ्रॉन को नुकसान पहुंचा है। नेफ्रॉन किडनी की एक फंक्शनल यूनिट होती है, जो खून को फिल्टर करती है।
विकास कुमार यादव के मुताबिक, “उस समय हमें जहरीले कफ सिरप का शक हुआ था। ऐसे ही कुछ मामले गांबिया में भी सामने आ चुके थे।”
अभी के लिए स्वास्थ्य विभाग ने परासिया में बच्चों की देखरेख के लिए एक डॉक्टर और दो नर्सों को नियुक्त किया है, लेकिन यहां भी चुनौतियां कम नहीं हैं। एक सीनियर हेल्थ अधिकारी ने कहा, “माता-पिता अपने बच्चों को नागपुर लेकर जा रहे हैं, जहां ट्रीटमेंट के दौरान उनकी मौत हो रही है। उन्हें पहले लोकल सिविल हॉस्पिटल नहीं लाया गया। हमारे प्रोटोकॉल के तहत हम पहले बच्चे को उनके घर पर ही चेक करते हैं, उनकी स्थिति देखते हैं। अगर हमें लगता है कि उनकी सेहत बिगड़ेगी, तो उन्हें किसी सिविल अस्पताल लेकर जाते हैं, जहां 6 घंटे के लिए मॉनिटर करते हैं और फिर उन्हें जिला अस्पताल भेज देते हैं। लेकिन यहां, क्योंकि बच्चों को नागपुर भेजा गया और वहां से भी वापस आ गए, तो वे मॉनिटरिंग सिस्टम के बाहर हो जाते हैं और हम उनका पोस्टमार्टम भी नहीं कर पाते।”
अभी के लिए परासिया में डोर-टू-डोर हेल्थ सर्वे चल रहा है। एसडीएम यादव ने कहा, “परासिया में लगभग 284,000 की आबादी है, जिसमें 25,000 बच्चे 5 साल से कम उम्र के हैं। जब हम डोर-टू-डोर सर्वे कर रहे थे, तो 4,658 बच्चों में कुछ लक्षण दिखाई दिए, जैसे कि उल्टी और वायरल फीवर। उसके बाद हमने किडनी टेस्ट और सीबीसी करवाया, तो हमें 4,411 बच्चों की रिपोर्ट मिली, जो सभी सामान्य थीं। बाकी बची हुई रिपोर्ट शाम तक आ सकती है।”
वैसे जबलपुर के ड्रग इंस्पेक्टर शरद कुमार जैन ने भी इस मामले में कुछ जरूरी बातें साझा की। उन्होंने कहा, “हमें पता चला था कि कल 600 कफ सिरप की बोतल ली गई थीं। वहां भी अकेले छिंदवाड़ा में 594 बोतलें बेची गईं और 66 बोतलें स्टोर कर ली गईं।
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