पांच महीने पहले पुणे के तहसीलदार ने केंद्र सरकार की अंडरटेकिंग बोटैनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (BSI) को मुंडवा की 44 एकड़ जमीन खाली करने के लिए कहा था। तहसीलदार ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि दावा हुआ था कि डिप्टी सीएम अजित पवार के बेटे की कंपनी ने वो जमीन खरीद ली थी।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बीएसआई के प्रमुख डॉक्टर A. Benniamin कहते हैं कि हमें कुछ महीने पहले जमीन खाली करने को लेकर एक चिट्ठी मिली थी। जैसे ही वो चिट्ठी हमे मिली, हमने पुणे कलेक्टर का रुख किया। तब कलेक्टर ने हमे मौखिक तौर पर बताया था कि चिंता की कोई बात नहीं है और वे इस मामले को देख रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने जब इस बात की पुष्टि करने के लिए कलेक्टर जितेंद्र डूडी का रुख किया तो उन्होंने इस बात पर मुहर लगा दी।
वे कहते हैं कि हां हमें बीएसआई की एक शिकायत तो मिली थी। मेरा ऑफिस इस बात को जानता था कि जमीन खाली करने को लेकर एक बेदखली नोटिस दिया गया है। लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि सेल डीड पहले ही की जा चुकी थी। अब इंडियन एक्सप्रेस को अपनी पड़ताल में पता चला है कि सेल डीड तो इस साल 19 मई को ही साइन हो चुकी थी।
यह सेल डीड शीतल तेजवानी और अजित पवार के बेटे और दिग्विजय पाटिल की कंपनी अमेकाडिया के बीच हुई थी। असल में जिस जमीन को खरीदने की डील थी, उसकी पावर ऑफ अटर्नी शीतल तेजवानी के पास थी। यह जमीन दलित वर्ग के महर समुदाय की बताई गई। आजादी से पहले तक तो वतन सिस्टम चलता था जहां किसी काम के बदले कुछ खास समुदायों या फिर परिवारों को जमीन का हक दिया जाता था, तब कैश देने का चलन नहीं था।
इस मामले में पुणे के खडक पुलिस स्टेशन में जो पहली एफआईर दर्ज हुई थी, उसमें तहसीलदार सूर्यकांत येवले को लेकर बड़ी जानकारी मिली है। सूर्यकांत ने ही इस साल 9 जून को उप निदेशक के कार्यालय में सहायक निदेशक को एक चिट्ठी लिखी थी, उसमें कहा गया था कि 17.51 एकड़ जमीन को खाली किया जाए। अब पुलिस एफआईआर से यह स्पष्ट नहीं है कि कलेक्टर ने यह चिट्ठी किस विभाग को लिखी थी, लेकिन इतना जरूर स्पष्ट हुआ कि तहसीलदार ने अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल किया।
जिस एफआईआर में इतनी सारी बातों का जिक्र है, वो पुणे के ही रहने वाले नायब तहसीलदार प्रवीना बोर्डे ने दर्ज करवाई थी। उन्होंने अपनी शिकायत में बताया था कि पार्थ पवार की अमेकाडिया कंपनी ने अवैध तरीके से जमीन खरीदी थी। दिग्जविय पाटिल को लेकर उन्होंने कहा था कि उनकी तरफ से ही एक अवैध एप्लीकेशन तहसीलदार सूर्यकांत येवले को लिखी गई थी। उस अप्लीकेशन में बताया गया था कि अमेकाडिया ने पुणे सिटी तहसील के मुंधवा क्षेत्र में सर्वे नंबर 88 के अंतर्गत आने वाली कोरेगांव की 17.51 हेक्टेयर जमीन शीतल तेजवानी से खरीदी थी।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार को ही एक जांच कमेटी का गठन किया था। उन्होंने दो टूक कहा था कथित तौर पर जो जमीन बेची गई है, उस मामले में किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। वहीं डिप्टी सीएम अजित पवार ने बोला था कि सेल डीड को रद्द कर दिया गया है।
अब जिस जमीन को लेकर यह सारा विवाद छिड़ा है वो बीएसआई को लीज पर दी गई थी। इस पूरे प्रकरण पर बीएसआई प्रमुख डॉक्टर Benniamin कहते हैं कि हमें जब वो चिट्ठी मिली थी, हम हैरान थे। लेकिन हमे इस बात का भी विश्वासस था कि हम तो एक लीज के साथ बंधे हुए हैं। अगर कलेक्टर हमें जमीन खाली करने को कहते तो हम ऐसा करने के लिए बाध्य थे। लेकिन जब कलेक्टर ने ऐसा कुछ नहीं कहा तो हम किस बात की चिंता करें। हम तो उस जमीन पर कुछ पौधों और कुछ संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण और रखरखाव कर रहे हैं।
अभी के लिए विपक्ष ने आरोप लगाया है कि 1800 करोड़ की जमीन को मात्र 300 करोड़ में बेच दिया गया, इसके ऊपर स्टैंप ड्यूटी में भी बड़ी राहत दी गई जो 21 करोड़ के करीब थी। वैसे अगर बीएसआई वेबसाइट का रुख किया जाए तो वहां पर इस जमीन को लेकर विस्तृत जानकारी दी गई है। वेबसाइट के मुताबिक मुंधवा में 44 एकड़ क्षेत्र और 7-कोरेगांव रोड स्थित मुख्य कार्यालय से जुड़ी 5 एकड़ भूमि मौजूद है। वहां पर 500 से अधिक पौधों की प्रजातियों को संरक्षित किया जाता है।
इस विवाद के बारे में पुणे कलेक्टर डूडी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि इस साल जून में बीएसआई के लोग उनके ऑफिस आए थे, उनके पास तहसीलदार सूर्यकांत येवले का वो लेटर भी था जिसमें केंद्र सरकार की अंडरटेकिंग को वो जमीन खाली करने के लिए कहा गया। डूडी ने आगे बताया कि जब ऐसी चिट्ठी सामने आई तो कलेक्टर ऑफिस ने तुरंत ही एसडीएम को चिट्ठी लिखी और इस मामले की जांच करने को कहा। तभी स्पष्ट कर दिया गया था कि किसी भी तरह का अवैध काम नहीं होना चाहिए।
डूडी के मुताबिक इसके बाद चिट्ठी लिखने वाले तहसीलदार के खिलाफ एक्शन लेने की तैयारी हुई, कई सबूत भी इकट्ठे किए गए। उन सबूतों के आधार पर ही तहसलीदार को सस्पेंड किया गया और दोनों ही मामलों में उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई।
जिस शीतल तेजवानी से इस जमीन को खरीदा गया, डूडी ने उन्हें लेकर भी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई हैं। डूडी के मुताबिक उनके ऑफिस को दिसंबर 2024 में शीतल तेजवानी का एक लेटर मिला था, उस लेटर में दावा हुआ था कि जमीन के लिए डीडी के जरिए पैसा दे दिया गया। लेकिन जब जांच हुई तो पता चला कि कोई पैसा जमा नहीं करवाया गया था। अब डूडी नियमों का हवाला देते हुए बता रहे हैं कि अगर किसी के पास इस प्रकार की जमीन को ऐसे ही ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। अगर कभी ऐसी स्थिति बनेगी भी तो सबसे पहले सरकार से इजाजत लेनी पड़ेगी।
वैसे इसी जमीन को लेकर इंडियन एक्सप्रेस ने शनिवार को भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। तब महाराष्ट्र के संयुक्त महानिरीक्षक (पंजीकरण) राजेंद्र मुंठे ने कहा था कि जमीन तो राज्य सरकार की है और इसे किसी भी कीमत पर बेचा नहीं जा सकता है। उन्होंने एक 7/12 दस्तावेज का हवाला देते हुए बताया कि यह जमीन मुंबई सरकार के नाम पर है। 2018 में इसे लेकर एक प्रॉपर्टी कार्ड भी जारी किया गया था। ऐसे में अगर कोई शख्स इस जमीन का पावर ऑफ अटर्नी मान भी लिया जाए, उसके पास इसे बेचने का कोई हक नहीं है। मुंठे के मुताबिक हर पहलू की अभी जांच की जा रही है औ सात दिनों के अंदर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
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