दिल्ली में हर साल होने वाली दस हजार से लेकर तीस हजार मौतों के लिए यहां का वायु प्रदूषण जिम्मेदार है और पूरे देश में होने वाली कुल मौतों का यह पांचवां बड़ा कारक है। सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन हमें मौसम की स्थितियों में आ रहे तेज और अतिवादी बदलाव और उसकी सघनता की ओर ले जा रहा है।
रिपोर्ट में पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच के संपर्क की पड़ताल की गई है और कहा गया है कि पर्यावरण कारकों के चलते बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां देश भर में लोगों को पेश आ रही हैं। रिपोर्ट में वाहनों से होने वाले प्रदूषण के अलावा घरों के भीतर अंगीठी के कारण होने वाले प्रदूषण और इसके जैसे अन्य मुद्दों की भी पड़ताल की गई है। रिपोर्ट के अनुसार नियंत्रण से बाहर हो चुके वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की दर पूरे विश्व में बढ़ी है और पिछले दशक में यह 300 फीसद तक बढ़ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वर्ष 2000 के 800,000 से यह 2012 में 32 लाख हो गई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2014 के रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा प्रदूषित दिल्ली में वायु प्रदूषण से हर साल 10,000 से 30,000 तक मौतें हो रही हैं।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण विश्व में होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार दस मुख्य कारकों में से एक और भारत में पांचवां मुख्य कारक है। वायु प्रदूषण के कारण आघात, क्रोनिक आबस्ट्रक्टिव पलमुनरी डिसीज, हृदय रोग, लोअर रैस्पिरेटरी इंफेक्शन और ट्रीशिया, ब्रोंकस एवं फेफड़े का कैंसर जैसी बीमारियों के चलते छह लाख बीस हजार मौतें हुईं। सीएसई की महाप्रबंधक सुनीता नारायण ने कहा कि इन रोगों से बचने के लिए वायु प्रदूषण के कारणों को घटाना जरूरी है। खासतौर से हमारी परिवहन प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त करने और उद्योगों को स्वच्छ तकनीक अपनाने को प्रोत्साहित करना होगा। लेकिन आम लोग इनके बीच के संपर्क को नहीं समझने के कारण सिर्फ सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दोष देते हैं।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मलेरिया फैलने का संभावित समय दस से बारह महीने (लगभग पूरा साल) हो गया है जबकि पहले यह चार से छह महीने था। कोलकाता में, डेंगू का प्रसार साल में 44 हफ्ते होता था सिर्फ 2.4 डिग्री सेल्सियस के मामूली तापमान परिवर्तन पर यह बढ़ कर 53 हफ्ते हो गया है, जिससे और ज्यादा लोग प्रभावित हो रहे हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश और ओडीशा में 2015 में लू के कारण करीब 600 लोगों की मौत हुई। रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि हमें उपचार नहीं बल्कि एहतियात पर जोर देना होगा।
हमें अपने पर्यावरण को ज्यादा स्वच्छ बनाना होगा, बीमारी का बोझ कम करना होगा और निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल पर होने वाले खर्च को बचाना होगा। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ रहे प्रभाव और इसके कारण किसानों को हो रहे फसल के नुकसान की भी चर्चा की गई है। रिपोर्ट को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के महानिदेशक सौम्य स्वामीनाथन ने जारी किया।