इटावा से मध्य प्रदेश सीमा राजमार्ग परियोजना (एनएच 92) के लिए इंतजार और बढ़ सकता है। इस परियोजना के लिए बनी विस्तृत कार्य योजना (डीपीआर) में हुई गड़बड़ियों की वजह से परियोजना की लागत बढ़ गई है। केंद्र सरकार ने योजना को शुरू करने के लिए एक निजी एजंसी को इस परियोजना की डीपीआर तैयार करने का जिम्मा सौंपा था।
रपट के आधार पर ही आगे की प्रक्रिया भी शुरू कर दी थी, लेकिन इस परियोजना में जमीन अधिग्रहण, वन विभाग की जमीन और अन्य भूमिगत सेवाओं की लाइन शिफ्ट करने का प्रावधान ही गायब था। इस गड़बड़ी के बाद अब मंत्रालय ने संबंधित एजंसी को एक साल के लिए काली सूची में डाल दिया और कंपनी पर तय प्रावधान के मुताबिक जुर्माना भी लगाया है।
तय योजना के मुताबिक, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने इटावा- मध्य प्रदेश के राजमार्ग के सुधार और विस्तार की योजना तैयार की थी। उत्तर प्रदेश से संबंधित इस योजना के तहत हाल ही में बतौर राजमार्ग घोषित किए गए करीब 178.43 किलोमीटर मार्ग पर निर्माण कार्य किया जाना था। इस योजना के पैकेज पांच में इटावा, भरर्थना, बिधूना, कनौज रोड और दूसरे चरण में भोगंन, इटावा, ग्वालियर, मध्य प्रदेश बार्डर (राजमार्ग 92) काम किया जाना था।
मंत्रालय ने निजी कंपनी को सौंपा काम
इससे पहले केंद्र सरकार ने इस मार्ग की डीपीआर एक निजी कंपनी से कराने का फैसला लिया था और इसकी रपट भी एजंसी ने मंत्रालय को सौंप दी गई थी। इसके तहत उत्तर प्रदेश में चार लेन मार्ग का सुधार होना था और भर्रथना चौक से कुदरकोट तक मार्ग का विस्तार होना था। इस कार्ययोजना के लिए मंत्रालय के पास 296.02 करोड़ रुपए की लागत की रपट दी गई थी, इसमें यह भी बताया गया था कि इसके तहत ही जमीन अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी की लागत को भी शामिल किया गया है। लेकिन बाद में उत्तर प्रदेश सरकार के लोक निर्माण विभाग की रपट में सामने आया कि इस परियोजना की कुल लागत करीब 351.78 करोड़ रुपए थी।
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विभाग ने यह भी बताया कि सलाहकार ने मंत्रालय को गलत रपट दी है और इस रपट में जमीन अधिग्रहण, भूमिगत लाइनों को हटाने और वन विभाग से संबंधित जमीन की लागत को शामिल नहीं किया है। इस वजह से एकाएक इस परियोजना की लागत में इजाफा हुआ है। इसी आधार पर उत्तर प्रदेश से इस कंपनी को काली सूची में डालने ओर तय प्रावधानों के तहत जुर्माना लगाने की भी सिफारिश की थी।
प्रावधानों में किसी भी गड़बड़ी होने की स्थिति में संबंधित एजंसी पर अधिकतम कुल परियोजना लागत का कम से कम पांच फीसद तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
लखनऊ के मंत्रालय कार्यालय की तरफ से सिफारिश गई की
इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से संबंधित परियोजना के मामले में कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था और जांच में भी इन तथ्यों की पुष्टी हुई थी। मंत्रालय ने सलाहकार कंपनी के रपट के आधार पर ही इस कार्य को स्वीकृति दे दी थी। मामले में लखनऊ के मंत्रालय कार्यालय की तरफ से सिफारिश की गई थी, कि संबंधित कंपनी को एक साल के लिए सरकारी कार्य से बाहर किया जाए और तय प्रावधान के तहत इस पर जुर्माना भी लगाया जाए। इस सिफारिश के बाद मंत्रालय ने कंपनी को काली सूची में डालने व जुर्माना लगाने का फैसला लिया है। इस मामले में मंत्रालय के अधिकारी सुभाष चंद मीना की ओर से सभी संबंधित विभागों को मंत्रालय के इस निर्णय की जानकारी भी भेजी गई है, जिसमें में संबंधित कंपनी समेत ऐसे विभाग जो कि निर्माण कार्य से जुड़े हैं। उनको शामिल किया गया है।
इस कार्ययोजना के लिए मंत्रालय के पास 296.02 करोड़ रुपए की लागत की रपट दी गई थी, इसमें यह भी बताया गया था कि इसके तहत ही जमीन अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी की लागत को भी शामिल किया गया है।