सरकारी विभागों को हल्के में लेने की प्रवृत्ति के जिम्मेदार यहां के अधिकारी खुद हैं। पहले तो ये कार्रवाई नहीं करते और जब कहीं से डांट फटकार सुन कार्रवाई करते हैं तो लेटलतीफी और आलस के कारण लोगों को और नियम तोड़ने का मौका दे देते हैं। अब नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों को देख लें। ये किस तरह से मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं। स्वच्छता अभियान के तहत अधिक जैविक कूड़ा निकालने वाले प्रतिष्ठानों (बल्क वेस्ट जनरेटर) को अपने यहां निस्तारण की व्यवस्था करने का प्रावधान तय है।
सालिड वेस्ट नियम 2016 के तहत तमाम अस्पताल, होटल, बड़े स्कूल, कालेज, फैक्टरियों से लेकर बहुमंजिला और ग्रुप हाउसिंग सोसायटी में जैविक कचरे को खाद में परिवर्तित करने वाली मशीन लगानी है। प्राधिकरण के जन स्वास्थ्य विभाग ने 2019 और 2020 में दर्जनों प्रतिष्ठानों को नोटिस जारी कर मशीन नहीं लगाने के चलते जुर्माना भी लगाया था। बेदिल को पता चला है कि बस जुर्माने का नोटिस देकर इतिश्री कर ली गई। न तो जुर्माना भरने के लिए लोगों को कसा गया और न हीं मशीन लगाने के लिए कहा गया। कुछ ने तो जुर्माना भर दिया लेकिन मशीन अभी तक नहीं लगाई। अब इतने जिम्मेदार विभागों के आलस को किस श्रेणी में रखा जाए।
दमदार दावेदारी
दिल्ली में निगम चुनाव सिर पर हैं और उम्मीदवार अपने प्रचार में जुट गए हैं। अभी न तो पार्टियों की ओर से नाम तय हुए हैं और न ही टिकट बंटे हैं। ऐसे में एक ही वार्ड में ढेरो नेता अपना झंडा ऊंचा करके चल रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर टिकट मिल गया तो नए सिरे से प्रचार नहीं करना होगा और अगर नहीं मिला तो अगले साल तक तो नेतागिरी चमक ही जाएगी। ऐसे में इनका प्रचार दिल्ली वालों के लिए सिरदर्द बन गया है।
ये पोस्टर घर और स्कूल की दीवार पर तो चिपका ही रहे हैं साथ ही सरकारी संपत्तियों पर भी हंसता हुआ चेहरा टांग देते हैं। बेदिल को पता चला कि कुछ इलाकों में नेताजी अपना बैनर टांगने को लेकर भी सेटिंग कर रहे हैं ताकि मोहल्ले में सबसे अच्छी जगह किसी दूसरी पार्टी के प्रत्याशी का बैनर न टंग जाए। नेताजी अपनी दावेदारी साबित करने में पूरा दम लगा देना चाहते हैं।
किराए पर किचकिच
दिल्ली मेट्रो की नई फीडर मिनी बस सेवा इन दिनों उलट मजमून की शिकार है। दरअसल इस नई फीडर मिनी बस में ग्राहकों (राहगीरों) को सूचित कर साधारन किराया के बड़े-बड़े अक्षरों में पोस्टर लगे हैं। साधारण किराया जिसका मतलब 5,10,15 रुपए के किराए से होता है। लेकिन यहां टिकट के लिए 10,15,20,25 वसूले जा रहे हैं। एक ग्राहक के विरोध पर बस परिचालक की आई सफाई दिलचस्प रही! बस में ग्राहकों को सूचित कर लगे पोस्टरों को दिखाते हुए उसने कहा कि केवल ह्यसाधारण किराया न पढ़ें, बल्कि उसके साथ छोटे अक्षर में लिखे किराया की दर भी पढेंÞ! ग्राहक का अचरज होना लाजिमी था-क्योंकि पोस्टर पर ह्यसाधारण किराया के साथ ही दर का जिक्र था और उसमें 10,15,20,25 ही दर्ज था।
झगड़े में बीच बचाव करते एक अन्य राहगीर ने चुस्की ली, कहा- डीटीसी के साधारण किराए की उद्घोषणा और दिल्ली मेट्रो के निजी आपरेटरों वाले इस फीडर की अवधारणा में फर्क है भाई! बता दें कि डीटीसी के जिन बसों में ह्यसाधारण किरायाह्ण किराया का बोर्ड लगा रहता है उसमें अधिकतम टिकट 15 रुपए होता है। जिन बसों में अधिकतम किराया 25 होता है उसमें इसका जिक्र नहीं होता! बहरहाल यह कहना गैरवाजिब नहीं होगा कि दिल्ली मेट्रो की नई फीडर मिनी बस सेवा का मजमून ही उलट है! या तो इन्हें साधारण किराया न लिखना था या फिर 10,15,20,25 वाले दर का उल्लेख नहीं करना था!
उम्मीदों पर पानी
दिल्ली नगर निगम की चुुनावी घोषणा के साथ आए नए परिसीमन ने छोटे नेताओं की आफत और बड़े नेताओं की राहत बढ़ा दी है। निगम सीटों के लिए जमीनी स्तर पर पार्टी के नेता बीते कई सालों से तैयारियां कर रहे थे। उन सीटों पर सक्रिय नेताओं को अब नए चेहरों के समर्थन में उतरना पड़ रहा है। इसका असर दिल्ली भर में लगे पोस्टरों से साफ नजर आ रहा है।
वहीं पार्टी के वरिष्ठ और सक्रिय नेता इस बात से संतोष जाहिर करते नजर आ रहे हैं कि इस बार उन्हें नाम काटने के लिए अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी क्योंकि एक बड़ी संख्या खुद ब खुद इस बार चुनावी दंगल से बाहर हो गए हंै। क्योंकि इससे पूर्व हुए निगम चुनावों में भी भाजपा ने अपने सभी निगम प्रत्याशियों को बदलकर मास्टर कार्ड खेला था और जीत दर्ज कराई थी। अबकी बार संभावना यह भी जताई जा रही है कि पूर्व में सक्रिय रहे वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतारकर पार्टी पुराने नेताओं को भी खुश कर
सकती है।
अफवाह को पंख
दिल्ली में नगर निगम चुनाव के मद्देनजर कई प्रकार की अफवाहें उड़नी शुरू हो गई है। एक अफवाह यह भी है कि इस बार चुनाव को कुछ दिन के लिए बढ़ाया जा सकता है। कारण, पांच राज्यों के चुनाव के बाद शायद दिल्ली नगर निगम को भी अपने कब्जे में करने के लिए किसी पार्टी की ओर से कोई कसर न छूटे। खासकर अपनी वापसी को लेकर चिंतित पार्टी। कहा तो यह भी जा रहा है कि जिस तरह 2017 में भाजपा ने अपने सभी 272 पार्षदों के टिकट काटकर नया प्रयोग किया था उसी तरह इस बार भी रोटेशन के नाम पर कहीं वैसा ही प्रयोग न किया जाने वाला हो। लेकिन तिथि बढ़ाने के पीछे की अफवाह पर अभी कोई सटीक बयान नहीं आ रहा है।
गुलाबी सम्मान
राजधानी की सुरक्षा में लगा विभाग आजकल पिंक यानी गुलाबी शौचालय बना रहा है। इसके साथ ही उनके द्वारा समाज में अच्छा कार्य करने वालों को सम्मानित भी किया जा रहा है। जिस दिन इन गुलाबी शौचालयों को उद्घाटन किया गया उस दिन महिलाओं को सम्मानित किया गया। लेकिन पुरुषों को भी बुलाकर सम्मानित करने का काम भी पुलिस ने किया। किसी ने पूछ लिया, कार्यक्रम तो महिलाओं के नाम पर है तो विभाग पुरुषों को क्यों सम्मानित कर रहा है। बेदिल ने जब जानकारी जमा की तो पता चला कि विभाग का वास्ता हमेशा समाज के अपराधिक लोगों से होता है।
उनकी पहुंच अपराध में शामिल लोगों तक होती है जिन्हें वे पकड़कर लाते हैं। ऐसे मामले में पुरुषों की संख्या निर्विवाद रूप से ज्यादा है। अब जब विभाग ही पुरुषों से घिरा है तो उनके कार्यक्रम में भीड़ बढ़ाने से लेकर वहां की व्यवस्था संभालने तक का जिम्मा पुरुषों के हाथ ही होगा न। ऐसे में कुछ स्थानीय पुरुषों को भी इस मेहनत के लिए सम्मानित किया जा रहा है। बेदिल ने यह सुनकर सिर पकड़ लिया।
-बेदिल
