जेल में बंद आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की मौत के बाद UAPA को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने अपनी मौत से दो दिन पहले ही बॉम्बे हाईकोर्ट में UAPA के तहत उस धारा को चुनौती दी थी, जिसके अंतर्गत जमानत की प्रक्रिया मुश्किल हो जाती है। दरअसल UAPA के तहत तमाम लोग देश की अलग-अलग जेल में हैं और तमाम कोशिशों के बाद उन्हें जमानत नहीं मिल पा रही है। ऐसी ही कहानी है केरल की एक जेल में बंद चाय मजदूरों के नेता एन के इब्राहिम की, 67 वर्षीय बुजुर्ग साल 2015 से ही जेल में हैं, बेहद खराब स्वास्थ्य के बावजूद इब्राहिम को जमानत नहीं मिल पा रही है, ऐसे में परिवार तमाम आशंकाओं से घिरा हुआ है।
दी टेलीग्राफ ऑनलाइन की खबर के अनुसार जेल के अधिकारी और इब्राहिम के परिवार वाले बताते हैं कि उन्हें दो बार कार्डियक अरेस्ट हो चुका है, किसी तरह जीवन बचा है। अब वह एक मसूड़ों की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं जिसके कारण उनके सारे दांत गिर चुके हैं, आलम ये है कि रोटी को भी पानी में भिगोकर खाते हैं क्योंकि उसे चबा नहीं सकते हैं। इसके अलावा इब्राहिम को हर रोज 22 टैबलेट खानी पड़ती हैं।
इब्राहिम पर आरोप है कि 24 अप्रैल 2014 को एक सीनियर पुलिस अधिकारी के वायनाड स्थित घर हमले में शामिल थे और अधिकारी की मोटरसाइकिल को आग लगा दी है। पुलिस ने इब्राहिम को माओवादियों का कुरियर बताते हुए 7 अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार कर लिया था। वहीं इब्राहिम की पत्नी जमीला बताती हैं कि घटना के दिन वह घटना स्थल वेल्लामुंडा से 64 किलोमीटर दूर अपने पैतृक गांव नेदुमपाला में थे। पत्नी के अनुसार इब्राहिम के माओवादियों से किसी भी प्रकार के संबंध नहीं हैं और सभी आरोप मनगढ़ंत हैं। बताते चलें कि इस घटना में सभी गवाह वेल्लामुंडा पुलिस स्टेशन के अधिकारी हैं।
जमीला, इब्राहिम की गिरफ्तारी के मामले को लेकर उस चाय कंपनी पर आरोप लगा रही है, जिसके लिए वह अपने पति के साथ काम किया करती थी। वह कहती हैं कि चाय कंपनी ने हमें 65 साल की उम्र होने से पहले कम मुनाफे और खराब वित्तीय हालात का हवाला देकर निकाल दिया था। कंपनी द्वारा निकाले जाने के बावजूद इब्राहिम चाय बागान मजदूरों के लिए लड़ते रहे थे और जिससे परेशान होकर चाय कंपनी ने उसे माओवादियों से जुड़ा बताकर फंसा दिया।
जमीला के अनुसार मेरे पति के बागान मजदूरों के लिए लोकप्रिय नेता थे और 1990 के आंदोलनों में सबसे आगे रहने वाले लोगों में से एक थे। जिसके बाद वह कंपनियों के निशाने पर आ गए। इब्राहिम और अन्य के खिलाफ दो मामले और दर्ज किए गए हैं। पहला मामला पय्योली में माओवादियों के लिए युवाओं की कथित भर्ती का है, जबकि दूसरा वेल्लामुंडा में हुए दंगे का। कोझीकोड जिले की सेशल कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में इब्राहिम और उसके सह-आरोपियों को पहले मामले में बरी कर दिया है, जबकि दूसरा मामले की सुनवाई कब होगी इसकी किसी को जानकारी नहीं है।
पहले मामले की सुनवाई के दौरान खराब स्वास्थ्य के चलते इब्राहिम वीडियो कांफ्रेंसिंग में ही गिर पड़े थे। उनकी तरफ से आधा दर्जन बार जमानत और पेरौल की य़ाचिका दायर की जा चुकी है लेकिन हर बार कोर्ट की तरफ से खारिज किया जा चुका है। ऐसे में परिवार की इब्राहिम के स्वास्थ्य के प्रति चिंता गहराती जा रही है। उन्हें डर है कि इब्राहिम भी स्टेन स्वामी की तरह जेल में ही दम तोड़ दे।