दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) में शारीरिक दिक्कत झेल रहे कर्मचारियों को दूर के दफ्तरों में जाना पड़ता है। एक साल पहले अर्जी लगाने के बाद भी उनका तबादला उनके घर के पास के डिपो में नहीं किया गया है। डीटीसी के पूर्व चेयरमैन आरके वर्मा ने खास शारीरिक दिक्कत झेल रहे कर्मचारियों को घर से 15 किलोमीटर के दायरे में कार्यस्थल तय करने का निर्देश दिया था। फिलहाल इस नियम की अनदेखी हो रही है।

मिलेनियम डिपो फर्स्ट में संवाहक पद पर तैनात कप्तान सिंह दो साल पहले लकवाग्रस्त हो गए थे। उन्होंने अपने घर के पास तबादले के लिए एक साल पहले आवेदन दिया था। लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। डीटीसी में तबादले के लिए सरकार ने अलग से साफ्टवेयर की व्यवस्था की है। लेकिन इस साफ्टवेयर का शारीरिक रूप से अक्षम कर्मियों को कोई फायदा नहीं मिला। इसका फायदा विभाग में रसूख वाले लोगों को मिलता है। कप्तान सिंह ने बताया कि वे सीमापुरी या नंदनगरी डिपो में तबादला चाहते हैं क्योंकि दोनों ही डिपो घर के पास पड़ते हैं। तबादला नहीं होने के कारण उन्हें मिलेनियम डिपो जाने में बेहद तकलीफ होती है।

श्रीनिवास डिपो में मेडिकल अनफिट घोषित किए गए चरण सिंह भी एक साल से अधिक समय से अपना तबादला खानपुर डिपो कराना चाहते हैं। डीटीसी में कंडक्टर वाल्मीकि झा ने बताया कि ऐसे कई शारीरिक रूप से निशक्त कर्मचारी विभागों की अनदेखी को झेल रहे हैं और दर्जनों मेडिकल अनफिट कर्मचारियों की आवाज डीटीसी में दबी हुई है।

डीटीसी में ड्राइवर हवा सिंह भी लकवाग्रस्त हैं, जो सोनीपत से कालकाजी में स्थित डिपो में आते हैं और इन्होंने रोहिणी या कंझावला डिपो में तबादले के लिए आवेदन दिया है। इन्हें भी आॅनलाइन ट्रांसफर फॉर्म भरे करीब एक साल हो गए हैं। लेकिन आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई। पूर्वी दिल्ली के मंडावली में रहने वाले डीटीसी कंडक्टर वीर करण भी शारीरिक रूप से निशक्त होने से घर के पास के डिपो में तबादला चाहते हैं और इन्हें भी अभी तक मायूसी ही हाथ लगी है।

डीटीसी के कर्मचारियों ने बताया कि यहां तबादले के लिए साल में दो बार आॅन लाइन आवेदन किया जाता है, जो साल में 15-15 दिन के लिए खुलता है। केजरीवाल सरकार ने अपने पिछले 49 दिनों के कार्यकाल में डीटीसी के कर्मचारियों के तबादले में भ्रष्टाचार और सिफारिश को रोकने के लिए एक प्राइवेट कंपनी से करार करने के बाद ट्रांसफर की आॅन लाइन प्रक्रिया शुरू की थी।