उत्तराखंड में कांग्रेस संगठन और प्रदेश कांग्रेस सरकार की लड़ाई दिल्ली दरबार तक पहुंच गई है। पार्टी हाईकमान ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को दिल्ली तलब किया है। राज्यसभा के चुनाव के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के बीच मतभेद बहुत गहरा गए हैं। वहीं भाजपा के पूर्व बागी विधायक और कांग्रेसी नेता भीमलाल आर्य के मुख्यमंत्री आवास के बाहर धरने पर बैठने के मामले को किशोर उपाध्याय ने पार्टी हाईकमान तक पहुंचा दिया है। उन्होंने इस बाबत पार्टी की प्रभारी अंबिका सोनी और सह प्रभारी संजय कपूर से विस्तार से बातचीत कर उन्हें मामले के सभी पहलुओं की जानकारी दी। उपाध्याय ने बताया कि जब भीमलाल आर्य ने दस मई को विधानसभा में भाजपा के खिलाफ और रावत सरकार के पक्ष में मतदान किया था, तब वे आर्य का आभार जताने के लिए उनसे मिले थे। आर्य ने उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र घनसाली की कुछ समस्याएं बताई थीं, जो उन्होंने मुख्यमंत्री को बता दी थीं। किशोर उपाध्याय ने कहा कि आर्य उनके जिले टिहरी के विधानसभा क्षेत्र घनसाली के पूर्व विधायक हैं। ऐसे में उनका हालचाल जानने का उनका नैतिक कर्तव्य है।

किशोर उपाध्याय ने बताया कि 24 मार्च को दिल्ली में पार्टी हाईकमान ने उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति की बैठक बुलाई है। इस बैठक में राज्य के राजनीतिक हालातों, सरकार और संगठन के कामकाज की समीक्षा होगी। इस समन्वय समिति में रावत, उपाध्याय के अलावा कैबिनेट मंत्री इंदिरा ह्रदयेश, कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष सरिता आर्य और विधायक हीरा सिंह बिष्ट शामिल हैं। प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति की यह दूसरी बैठक है। इस समिति की पहली बैठक 18 मार्च से पहले हुई थी। तब इस समिति में विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत भी शामिल थे। दोनों के कांग्रेस छोड़ने के बाद इनकी जगह यशपाल आर्य और हीरा सिंह बिष्ट को शामिल किया गया है।

राज्यसभा के टिकट बंटवारे को लेकर किशोर उपाध्याय और हरीश रावत के बीच बहुत तनातनी हो गई थी। रावत ने किशोर उपाध्याय को किनारे करते हुए अपने खास कुमाऊं के दलित नेता प्रदीप टम्टा को राज्यसभा का टिकट दे दिया था। तब से किशोर उपाध्याय ने रावत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। किशोर उपाध्याय ने रावत पर हमला करते हुए कहा कि राज्य सरकार भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अब तक जितने भी घोटाले हुए हैं, उनकी जांच के लिए एक आयोग गठित करे। इस बारे में पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने हरीश रावत को ज्ञापन भी दिया था। किशोर उपाध्याय ने पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री के पास भेजा था। रावत ने इस मांग पत्र पर कांग्रेस की सरकार का कार्यकाल भी शामिल करने पर घोर नाराजगी जाहिर की थी। मुख्यमंत्री की नाराजगी को देखते हुए यह प्रतिनिधिमंडल अपना ज्ञापन वापस ले गया था। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेश संगठन के इस रवैये पर खुलकर गुस्सा जाहिर किया। रावत ने प्रदेश संगठन को नसीहत देते हुए कहा कि सरकार हर स्तर पर सभी मामलों की जांच कर रही है। परंतु हर बात पर राजनीति ठीक नहीं है। रावत ने माना कि उनके पास संगठन के कुछ लोग ज्ञापन लेकर आए थे और खुद ही ज्ञापन को फिर से संशोधित करने की बात कहकर वापस ले गए। अब में कैसे कह दूं कि उन्होंने मुझे ज्ञापन दिया।

इस वक्त रावत सरकार पर उनकी पार्टी के कई मंत्री और विधायक राजनीतिक दबाव डालकर अपने काम कराना चाहते हैं और कई मंत्री रावत पर दबाव डालकर मलाईदार विभाग चाहते हैं। मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद रावत ने अपने कुछ चहेते मंत्रियों को मलाईदार विभाग दिए, तो यशपाल आर्य जैसे वरिष्ठ मंत्री अपनी उपेक्षा के चलते मुख्यमंत्री से सख्त नाराज हो गए। आर्य ने नाराज होकर आपदा प्रबंधन विभाग मुख्यमंत्री हरीश रावत को वापस लौटा दिया। इस तरह रावत को कांग्रेस के एक विधायक जीत राम ने भी इस्तीफा देने की धमकी दी। परंतु उन्हें रावत ने किसी तरह मना लिया। अब पूर्व विधायक भीमलाल आर्य ने रावत के खिलाफ मोर्चा खोला है। आजकल रावत से हरिद्वार के विधायक फुरखान अहमद समेत कई विधायक मंत्री न बनाए जाने के कारण नाराज चल रहे हैं। पहले ही कांग्रेस के दस विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं, जिससे कांग्रेस राज्य में कमजोर हो रही है।
24 अगस्त को दिल्ली में हो रही प्रदेश कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक महत्वपूर्ण होगी। इस बैठक में सरकार और संगठन के बीच चल रहे मतभेदों पर जोरदार चर्चा होगी। कोर कमेटी में हरीश रावत के विरोधी ज्यादा हैं। किशोर उपाध्याय ने तय कर लिया है कि वे हरीश रावत के खिलाफ जोरशोर से पार्टी हाईकमान के सामने आवाज उठाएंगे। वहीं रावत ने किशोर उपाध्याय को ठिकाने लगाने के लिए इंतजाम कर लिए हैं।