आजमगढ़ उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज करने के बाद दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर जमकर निशाना साधा है। साथ ही उन्होंने दावा किया है कि अखिलेश यादव ने धर्मेंद्र यादव के खिलाफ साजिश रची थी। उधर, सपा प्रमुख के आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव में प्रचार के लिए न जाने के उनसे फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। सपा के सहयोगी और सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर ने पिछले दिनों कहा था कि अगर अखिलेश यादव ने चुनाव प्रचार किया होता तो आजमगढ़ में 8500 वोटों का अंतर नहीं होता और सपा चुनाव जीत जाती। वहीं, अब दिनेश लाल यादव के दावे के बाद इस मुद्दे पर सियासत गरमाती दिख रही है।
आजमगढ़ उपचुनाव में जीत दर्ज करने वाले दिनेश लाल यादव निरहुआ ने कहा, “विपक्ष का दिल बहुत छोटा है, वो अपने चाचा को भी नहीं चाहते हैं बढ़ने देना। यहां तक कि अपने भाई को… वे जानते थे कि यह सीट हार रहे हैं, लेकिन अपने भाई को भेजकर हराया क्योंकि उनसे अच्छे वक्ता हैं वो और अच्छी बात करते हैं धर्मेंद्र जी। उनको (अखिलेश यादव) पता था कि जिस दिन मौका मिलेगा, धर्मेंद्र यादव उनसे बड़े नेता बन जाएंगे। कहीं न कहीं धर्मेंद्र को वहां भेजने की साजिश थी।”
एक न्यूज वेबसाइट से बात करते हुए निरहुआ ने कहा, “आजमगढ़ में एम-वाई फैक्टर अभी भी है लेकिन अब यहां मोदी-योगी का फैक्टर चल रहा है। आजमगढ़ ने पूरे देश को एक मैसेज दिया है कि अब मोदी-योगी फैक्टर ही चलेगा। चाहें कानपुर देख लें या आजमगढ़ में हो।” बता दें कि आजमगढ़ उपचुनाव में निरहुआ ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे धर्मेंद्र यादव को हराया, वहीं रामपुर में भी सपा अपनी सीट नहीं बचा सकी थी।
वरिष्ठ पत्रकार सैयम कासिम ने यूपी तक से बात करते हुए कहा, “निरहुआ ने एक मंझे हुए नेता की तरह ये बयान देकर अखिलेश यादव की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। अखिलेश यादव खुद इस्तीफा दे चुके थे और परिवार में कोई और नजर नहीं आ रहा था। डिंपल यादव को चुनाव लड़ाना भी एक खतरा था। वे किसी स्थानीय नेता को भी उम्मीदवार बनाना नहीं चाहते थे क्योंकि एक धाक जो कायम है, वह खत्म हो जाएगी। धर्मेंद्र यादव को उन्होंने इसलिए ही आजमगढ़ भेजा था।”
वे कहते हैं, “लेकिन धर्मेंद्र यादव वहां आखिरी वक्त में पहुंचे और गुड्डू जमाली वहां पहले से जमे हुए थे और निरहुआ ने पहले से अच्छा चुनाव लड़ा। धर्मेद्र यादव यहां लड़ना नहीं चाहते थे और अखिलेश ने उन्हें यहां भेजा। चुनाव बहुत नजदीकी रहा है लेकिन रणनीतिक रूप से अखिलेश ने आजमगढ़ में गलती की। और अगर निरहुआ के दावे को देखें तो शिवपाल हों या परिवार के जितने लोग हों… लगभग सभी को ठिकाने लगा दिया और धर्मेंद्र ही अकेले बच रहे थे।”
रामपुर में भी भाजपा के घनश्याम सिंह लोधी ने सपा के आसिम रजा को मात दे दी। आजमगढ़ की तरह ही रामपुर में भी अखिलेश प्रचार करने नहीं गए। यहां आजम खान ने पूरी तरह प्रचार की कमान संभाल रखी थी। जेल से बाहर आने के बाद आजम खान के तेवर बदले नजर आ रहे थे। लेकिन रामपुर उपचुनाव में आसिम रजा को वह जीत नहीं दिला सके और इस हार के बाद एक बार फिर आजम-अखिलेश के बीच मनमुटाव की चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं। जेल से बाहर आने के बाद से आजम और सपा प्रमुख के बीच मनमुटाव की खबरें आने लगीं थीं। वहीं, उपचुनाव के नतीजों के बाद, सियासी गलियारे में यह भी चर्चाएं हैं कि रामपुर की हार के बाद पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम नेता होने के नाते आजम खान पर दबाव बहुत बढ़ गया है।