दिल्ली में बस रैपिड ट्रांजिट (बीआरटी) कॉरिडोर हटाने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद कांगे्रस ने इंदौर में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के इस विवादास्पद गलियारे का विरोध तेज कर दिया है। कांग्रेस की मांग है कि मध्यप्रदेश सरकार को सूबे की आर्थिक राजधानी में जनता को होने वाली परेशानियों के मद्देनजर बीआरटी का एकमात्र गलियारा हटाने के लिए कदम उठाने चाहिए। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहा, ‘जगह की कमी और त्रुटिपूर्ण निर्माण के कारण इंदौर में बीआरटी कॉरिडोर नाकाम साबित हो चुका है। इस गलियारे के कारण शहर के व्यस्ततम एबी रोड पर घंटों यातायात जाम होता है और इससे जनता बुरी तरह परेशान होती है।’

उन्होंने मांग की, ‘दिल्ली की तरह इंदौर में भी बीआरटी कॉरिडोर हटाने की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इसके लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए।’ सलूजा ने कहा, ‘बीआरटी कॉरिडोर को लेकर जनप्रतिनिधि कई बार अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं। लेकिन शहर में यह विवादास्पद परियोजना सरकारी अधिकारियों की जिद के कारण ही शुरू हुई थी और उन्हीं के कारण आज तक चल रही है।’ इंदौर में बीआरटी कॉरिडोर के खिलाफ उठ रहे सवालों के बारे में पूछे जाने पर जिलाधिकारी पी. नरहरि ने कहा, ‘आपसे मेरी गुजारिश है कि बीआरटी कॉरिडोर के मामले में आप दिल्ली के विफल मॉडल की जगह अमदाबाद का सफल मॉडल देखें। हमें बीआरटी के कामयाब मॉडल से सीख लेने की जरूरत है।’

उन्होंने कहा, ‘आम लोगों को सार्वजनिक यातायात के पर्याप्त साधन उपलब्ध कराना हमारी प्राथमिकता है। लेकिन इस सिलसिले में बीआरटी कॉरिडोर ही इकलौता विकल्प नहीं है। हम बीआरटी कॉरिडोर की बजाय सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के विशेष मार्ग विकसित करने पर विचार कर रहे हैं।’ बहरहाल, प्रशासन छह साल की लंबी जद्दोजहद के बाद इंदौर में बीआरटी का केवल एक गलियारा बनवा सका है। इस साढ़े ग्यारह किलोमीटर लंबे गलियारे में फिलहाल हर रोज 25 बसें फेरे लगाती हैं और इनके जरिये करीब 40,000 लोग सफर करते हैं।

भंवरकुआं क्षेत्र स्थित राजीव गांधी प्रतिमा स्थल को निरंजनपुर चौराहे से जोड़ने वाले बीआरटी गलियारे का निर्माण केंद्र सरकार के जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत 2007 में शुरू हुआ था। लेकिन इस गलियारे का निर्माण 2013 में जाकर पूरा हो सका। बीआरटी गलियारे के निर्माण के रास्ते में आने वाले अतिक्रमणों को प्रशासन द्वारा समय से न हटा पाना इस परियोजना के पिछड़ने का बड़ा कारण माना जाता है। इन अतिक्रमणों में कुछ धार्मिक स्थल शामिल थे।