वायु प्रदूषण हर दिन जानलेवा होता जा रहा है। इसके चलते दिल्ली के तमाम अस्पतालों में अस्थमा और दिल के मरीजों की संख्या करीब 30 फीसद बढ़ गई है। वायु प्रदूषण की वजह से देश भर में 2015 से लेकर अब तक 25 लाख लोग असमय मौत के मुंह में समा गए हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों ने प्रदूषण के चलते स्वास्थ्य के क्षेत्र में भयावह स्थिति पैदा होने की आंशका जताई है और कहा कि समय रहते प्रदूषण के स्रोतों को खत्म करने के लिए आपातकालीन उपाय किए जाएं। मंगलवार को प्रदूषण के खतरनाक स्तर तक गहराने की आशंका है। इसके साथ ही एम्स, सफदरजंग, जीबी पंत, पटेल चेस्ट और जीटीबी अस्पताल सहित दूसरे अस्पतालों में अस्थमा और हृदयाघात के मरीजों का आना बढ़ गया है। एम्स के कार्डियोलॉजी विशेषज्ञ डॉक्टर राकेश यादव ने बताया कि प्रदूषण की जो हालत है, वह एक दिन में 60 सिगरेट पीने के बराबर प्रदूषण हमारे फोफड़ों व खून की नलिकाओं में पहुंचा रहा है। इसके कारण दमे और दिल के रोगियों की मुश्किलें बढ़ रही हैं। अस्थमा अचानक पड़े दिल के दौरे और मौत का कारण भी होता है। प्रदूषण के बारीक कण हमारी खून की शिराओं में पहुंच कर दिल और दिमाग पर असर डाल रहे हैं। इससे अटैक और स्ट्रोक के मामले भी बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्रदूषण से कितने लोगों की सीधे तौर पर मौत हुई यह एम्स के स्तर पर बताना मुश्किल है लेकिन इसका गहरा संबंध जरूर है। भारत के संदर्भ में कोई अध्ययन किया जाए इसके बारे में साफ तौर पर पता लगेगा। वायु प्रदूषण मानव के स्वास्थ्य पर दूरगामी असर भी डालता है। प्रदूषण का स्थायी समाधान करने की तुरंत जरूरत है।
एम्स के ही पल्मोनरी मेडिसिन के चिकित्सक डॉक्टर करन मदान ने बताया कि प्रदूषण बढ़ने से एम्स में दमे और सांस की तकलीफ के मरीजों की संख्या 25 से 30 फीसद बढ़ गई है। इनमें से काफी मरीजों को भर्ती करने की भी जरूरत पड़ रही है। उन्होंने बताया कि सांस के मरीजों के अलावा बच्चों के मस्तिष्क पर भी असर हो रहा है।
सफदरजंग के हृदयरोग विशेषज्ञ डॉक्टर राकेश वर्मा ने कहा कि सीधे तौर पर असर बताना जरा मुश्किल है लेकिन इनक ी वजह से दिक्कतें होती है, यह तय है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर केके अग्रवाल ने बताया कि दस दिनों में अस्पताल के बाहर हृदयाघात के दो मामलों से मेरा सामना हुआ। इसमें एक मरीज की उम्र महज 28 साल थी। दूसरे मरीज की उम्र 70 साल की थी और उनका कुछ साल पहले बाईपास पहले हो चुका था।
पहले मामले में वायु प्रदूषण का स्तर यानी बारीक धूल कणों (पीएम 2.5) का स्तर कम से कम 300 था जबकि दूसरे मामले में बारीक धूल कणों (पीएम 2.5) का स्तर कम से 400 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था। जाहिर है, इन मामलों में प्रदूषण की अहम भूमिका रही। इसी तरह का एक मामला वैशाली में भी आया जिसमें एक व्यक्ति की अचानक दिल का दौरा पड़ने से मौैत हो गई। प्रदूषण के प्रभावों पर अध्ययन करने वाले शोध संस्थान लांसेट आयोग की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली सहित देश भर में 2015 से अब तक कुल 25 लाख लोगों की मौत केवल प्रदूषण के कारण हुई है। अस्थमा और दिल के मरीज इसकी चपेट में आकर काल के गाल में समा चुके हैं। जबकि प्रदूषण से 18 लाख मौतों के साथ चीन दूसरे नंबर पर है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विश्व भर में प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या 90 लाख है। यह संख्या तपेदिक, एड्स और मलेरिया से होने वाली मौत से भी तीन गुना अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण का सबसे गहरा असर विकासशील देशों में पड़ता है, जहां हर छह में से एक मौत प्रदूषण के ही कारण होती है।
सोमवार को ‘गंभीर’ रही हवा
सीपीसीबी के मुताबिक औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 382 दर्ज किया गया। दिल्ली के 15 इलाकों में वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ दर्ज की गई जबकि 14 स्थानों पर यह बेहद खराब श्रेणी में रही। हवा में बारीक कणों (पीएम 2.5) का स्तर 247 दर्ज किया गया जबकि पीएम 10 का स्तर 433 दर्ज किया गया।
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आइआइटीएम) के मुताबिक, पीएम 2.5 की मात्रा स्थिर मौसमी परिस्थितियों के कारण बढ़ रही है जो दिल्ली में प्रदूषित हवा को जकड़े हुए। विभाग का अनुमान है कि पीएम 2.5 का स्तर 13 व 14 को और गहराने का खतरा है। बुधवार को दिल्ली के 20 में से 10 इलाकों में हवा की गुणवत्ता फिर खतरनाक स्तर की हो सकती है। तब एक्यूआइ 402 से 454 के बीच पहुंचने के आसार हैं।

