Report : Arnav Chandrashekhar
New Delhi : उत्तर भारत में सर्दी लगातार अपना असर दिखा रही है। दिल्ली में तापमान अगले तीन दिनों में फिर से गिरने की संभावना है। ऐसे में बेघर लोगों के लिए रैन बसेरे सहारा बने हुए हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने कश्मीरी गेट में आईएसबीटी (Kashmere Gate) और हनुमान मंदिर के आसपास रैन बसेरों का दौरा किया, जहां सड़कों पर सैकड़ों लोग रहते हैं। जिनमें से प्रत्येक में एक गद्दा, चादर, कंबल और एक तकिया है। आईएमडी ने कहा है कि नए साल की पूर्व संध्या पर दिल्ली के कुछ हिस्सों में शीत लहर ठंड बढ़ने की संभावना है। अनुमान यह भी है कि ठंड जनवरी में ज्यादा बढ़ जाएगी।
पिछले हफ्ते दिल्ली के एलजी वी.के. सक्सेना ने ऐसे क्षेत्रों का दौरा किया था और सैकड़ों लोगों को रैन बसेरों के बाहर सोते हुए और साथ ही रैन बसेरों और आस-पास के शौचालयों को गंदा पाया था। बाद में उन्होंने दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के सीईओ के महेश को इस बारे में अवगत कराया।
बेघरों का आसरा है रैन बसेरे
आईएसबीटी कश्मीरी गेट पर 19 पोर्टा केबिन और 9 टेंट हैं जो लगभग 2,000 रहने वालों को आसरा देते हैं। हरप्रीत सिंह जो ड्राइवर के रूप में काम करते हैं। मरघाट हनुमान मंदिर के पास एक रैन बसेरे में दो दिन के लिए रुके हैं। उनका कहना है कि मेरा घर दिल्ली के बाहरी इलाके में है, और मुझे अपनी नौकरी के लिए यहां आना पड़ा। मैंने रैन बसेरे में में रहने का फैसला किया क्योंकि मैं शहर के इस हिस्से में किसी को नहीं जानता। मैं कल से यहां हूं और यहां अच्छी सुविधाएं हैं।
डीयूएसआईबी के अधिकारियों के मुताबिक, शेल्टर होम में तीन वक्त का खाना दिया जाता है और वहां सोने वाले ज्यादातर लोग या तो छोटे-मोटे काम करते हैं या ट्रैफिक सिग्नल पर सामान बेचते हैं। हरप्रीत सिंह जैसे कुछ लोगों के पास नौकरी है और वे केवल एक या दो दिन के लिए आते हैं। एक अधिकारी कहते हैं कि यहां हर किसी का स्वागत है, लेकिन कभी-कभी झगड़े शुरू हो जाते हैं और रैन बसेरे चलाने वाले एनजीओ को हस्तक्षेप करना पड़ता है।
हमारे रैन बसेरों में रहने वालों को भोजन उपलब्ध कराया जाता है। एक रैन बसेरे की देखभाल करने वाले सनी ने कहते हैं कि रात 9 बजे तक यह रैन बसेरा भर जाता है। हमारे पास यहां 40 बिस्तर हैं और कुछ तंबू में हैं।
लोगों की संख्या बढ़ रही है, कम पड़ रहे हैं रैन बसेरे
एक अन्य रैन बसेरे की देखभाल करने वाले कर्मचारी का कहना है कि यहां आने वाले लोगों के लिए हमारे पास पर्याप्त सुविधाएं हैं, लेकिन संख्या बढ़ रही है। अधिक टेंटों की आवश्यकता होगी। शहर में 264 अस्थायी और स्थायी आश्रय हैं जिनकी क्षमता 18,768 है। हालांकि यह आंकड़ा बहुत छोटा है। एक आंकड़े के मुताबिक 22 दिसंबर को इन आश्रयों में 7,025 लोग रुके थे। 28 दिसंबर को यह बढ़कर 7,531 पर पहुंच गया था।
यहां रहने वालों के लिए सबसे बड़ी दिक्कत शौचालयों की स्थिति है। 52 वर्षीय मांगे राम का कहना है कि शौचालय से बदबू आती है, कई-कई दिनों तक सफाई नहीं होती है। यह महत्वपूर्ण है कि उन्हें दिन में कम से कम दो बार साफ किया जाए। बहुत से लोग इस कारण से आश्रयों में नहीं रहना चाहते हैं।
