दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रदूषण कम करने के लिए एक जनवरी से सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या सीमित करने की आप सरकार की योजना के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर बुधवार को कोई भी अंतरिम आदेश जारी करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ऐसा करना जल्दबाजी होगी। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ के पीठ ने जनहित याचिकाओं को समय से पूर्व करार देते हुए कहा, ‘दिल्ली सरकार ने एक विचार प्रस्तावित किया है जिसे एक जनवरी 2016 से 15 दिन के लिए प्रायोगिक आधार पर कार्यान्वित किया जाना है, इसलिए उन्हें कोशिश करने दें’।

पीठ ने मौखिक रूप से कहा ‘यह सिर्फ प्रायोगिक आधार पर होने जा रहा है। उन्होंने एक विचार पेश किया है जिसके लिए समाज के विभिन्न पक्षों से सुझाव मांगे गए हैं। इस संबंध में बैठकें हो रही हैं। देखें कि संबद्ध पक्ष क्या सुझाव देते हैं’। इसमें आगे कहा गया है कि ‘अब तक कोई अधिसूचना भी जारी नहीं हुई, अधिसूचना जारी होने दें, फिर हम देखेंगे’।

पीठ ने कहा, ‘हम दो हफ्ते के बाद इस मामले को लेंगे, तब तक सरकार को सुझाव भी मिल जाएंगे’। इस मामले की अगली सुनवाई 23 दिसंबर को तय की गई है। पीठ ने यह भी कहा, ‘इन जनहित याचिकाओं का उपयोग प्रतिवादी (दिल्ली सरकार) पर दबाव डालने के लिए न करें’।

अदालत ने श्वेता कपूर और सर्वेश सिंह की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। इन याचिकाओं में नीति के कार्यान्वयन पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है। दिल्ली सरकार के विचार का बचाव करते हुए उसके वरिष्ठ स्थायी वकील राहुल मेहरा ने जनहित याचिकाओं को खारिज करने और याचिकाकर्ताओं पर भारी जुर्माना लगाने का अनुरोध किया।

एक याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ‘इस तरह की नीति, कानून थोपना जनहित के खिलाफ होगा और यह किसी सार्वजनिक बहस या चर्चा के बिना और भारत में स्थिति, तथ्यों और परिस्थितियों को समझे बिना थोपा जा रहा है’। याचिका में सवाल उठाया गया है कि क्या आप सरकार के पास राष्ट्रीय राजधानी में वाहनों की आवाजाही में बदलाव करने का अधिकार है।

राष्ट्रीय राजधानी की परिवहन प्रणाली को ‘अविकसित और असुरक्षित’ बताते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे उन महिलाओं के लिए समस्या हो जाएगी जो अकेले यात्रा करती हैं। निशक्त लोग भी परेशान होंगे जो यात्रा के वास्ते अपने लिए सुविधाजनक वाहनों का उपयोग करते हैं।