दिल्ली की एक अदालत ने 2014 में नशे में धुत व्यक्ति द्वारा कार को फुटपाथ पर चढ़ा देने से हुई दो लोगों की मौत और 10 अन्य के घायल होने के मामले में 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि यह सच है कि फुटपाथ सोने के लिए नहीं होते, बल्कि पैदल चलने के लिए होते हैं, लेकिन यह भी सच है कि फुटपाथ वाहन चलाने के लिए भी नहीं होते।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार खरता ने आरोपी ऋषि कुमार के खिलाफ मामले की सुनवाई की और दोषी करार दिया। अदालत ने 12 फरवरी को दिए गए अपने फैसले में अतिरिक्त सरकारी वकील पंकज रंगा की इस दलील पर गौर किया कि दोषी ने 17 अगस्त 2014 को निगम बोध घाट के पास फुटपाथ पर सो रहे बेघरों पर अपनी कार चढ़ा दी थी, जिससे दो लोगों की मौत हो गई थी जबकि 10 घायल हो गए थे। अदालत ने कहा कि यह सच है कि फुटपाथ सोने के लिए नहीं होते, बल्कि पैदल चलने के लिए होते हैं, लेकिन यह भी सच है कि फुटपाथ वाहन चलाने के लिए भी नहीं होते।
सजा के साथ एक लाख के मुआवजा देने का ऑर्डर
अदालत ने आदेश में कहा कि दोषी को पता था कि नशे में गाड़ी चलाने के कारण निर्दोष लोगों की मौत हो सकती है। इसने कहा कि कम उम्र और अविवाहित होना (राहत देने की) कोई बड़ी वजह नहीं है। परिवार में कोई भी दोषी पर आश्रित नहीं है और उसके द्वारा किया गया अपराध जघन्य है।
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इसने दोषी को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग दो के तहत 10 वर्ष के कठोर कारावास और भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के तहत सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने दोषी को मोटर वाहन अधिनियम के तहत छह महीने के कारावास की भी सजा सुनाई है। अदालत ने कहा कि सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। इसने दोषी को पीड़ितों या उनके परिवार के सदस्यों को एक लाख रुपए का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया है।