इसमें कोई शक नहीं है कि भारत की राजधानी की हवा में जहर घुलता जा रहा है लेकिन कोई फौरी हल निकालकर इसे कम नहीं किया जा सकता। निश्चित तौर पर नई दिल्ली को अपना वायु प्रदूषण कम करने की जरुरत है लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा एकपक्षीय ढंग से लागू कर दी गई ‘सम-विषम’ योजना शायद वायु प्रदूषण पर काबू पाने की दिशा में संख्यात्मक लिहाज से वांछित नतीजे नहीं दे पाएगी।

बीती शताब्दी के अंत में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर जब सीएनजी को लाया गया था, तब दिल्ली की जहरीली हवा में निश्चित तौर पर कुछ स्वच्छता आई थी लेकिन इसके बाद उसी तरह का चिकित्सीय तौर पर तर्कसंगत उपाय करने के बजाय राजनीतिक तौर पर मामूली सा और उचित कहलाने वाला हल आजमाया जाने लगा।

आदर्श रूप से देखा जाए तो इस दिशा में एकमात्र हल तो यह है कि सार्वजनिक यातायात को सस्ता और सुविधाजनक बनाया जाए ताकि भारत के डीजल चालित कारों के प्रति लगाव को खत्म किया जा सके। यदि आप आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियर मुकेश शर्मा द्वारा वायु प्रदूषण के स्रोत विभाजन अध्ययन को देखेंगे तो पाएंगे कि वायु प्रदूषण के लिए वाहन सबसे बड़े जिम्मेदार नहीं हैं। मुख्य वजह तो धूल है जो कि सड़कों और निर्माण स्थलों से आती है।

10 माइक्रॉन से कम आकार वाले या पीएम-10 के निलंबित पदार्थों की दो-तिहाई संख्या धूल के कारण है और पीएम- 2.5 का लगभग 40 प्रतिशत सड़क की धूल के कारण है। पीएम-10 और पीएम-2.5 के स्तर में वाहनों का योगदान 9 से 20 प्रतिशत के बीच है। इसलिए वाहन वास्तव में सबसे खराब प्रदूषक नहीं हैं। आईआईटी कानपुर के अध्ययन के विश्लेषण में आप पाएंगे कि दिल्ली में मौजूद सभी वाहनों में से सबसे बड़े प्रदूषक ट्रक हैं, जो कि कुल प्रदूषण में लगभग 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं। इसके बाद दोपहिया वाहन हैं, जो कुल प्रदूषण के दो-तिहाई हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। चौपहिया वाहन दिल्ली के प्रदूषण के सिर्फ दसवें हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं।

यदि ‘सम-विषम’ योजना वाली तरकीब को देखा जाए तो कुल कारों में से आधे वाहन जनवरी के पहले पखवाड़े में सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक सड़कों से गायब रहेंगे। इससे सैद्धांतिक तौर पर चौपहिया वाहनों से होने वाले प्रदूषण में 50 प्रतिशत कमी आनी चाहिए लेकिन चूंकि वे सबसे बड़े प्रदूषक हैं ही नहीं, ऐसे में हवा के पहले से साफ हो जाने की उम्मीद करना कुछ ज्यादा ही बड़ी कल्पना हो जाएगी।

इसके अलावा ‘कार पूलिंग’ के लिए व्यापक स्तर पर प्रचार किया जा रहा है। लेकिन किसी ‘विषम’ दिन पर विषम संख्या वाली कार में पूल किए गए अतिरिक्त यात्रियों को जगह-जगह उतारने से क्या उस कार को अतिरिक्त नहीं चलाना पड़ेगा? इससे प्रदूषण का स्तर बढ़त के साथ बढ़ सकता है।

इसके अलावा, अब चूंकि लोगों को दूसरे दिनों में भी अपना काम चलाना है, तो वे ज्यादा प्रदूषण पैदा करने वाले वाहन लेकर भी निकल सकते हैं। विशेषज्ञों को यह भी डर है कि खरीद क्षमता रखने वाले लोग एक से ज्यादा वाहन खरीद सकते हैं ताकि कार के नंबरों में सम-विषम का अंतर रखा जा सके।

ऐसी खबरें हैं कि सड़कों पर वाहनों की संख्या कम करने वाली ‘सम-विषम’ योजना को पेरिस की दूषित हवा को साफ करने के लिए जब भी लागू किया गया है, तब-तब फ्रांस में शहर के प्रशासन ने सार्वजनिक यातायात मुफ्त करके नागरिकों को इसकी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है।

संभव है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार का अगला लोकलुभावन कदम इसी दिशा में हो और वह योजना के लागू होने वाले दिनों में दिल्ली मेट्रो और डीटीसी का सफर मुफ्त कर दे। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट, नई दिल्ली की सुनीता नारायण कहती हैं कि विडंबना तो देखिए, एनसीआर में देश का सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाला बदरपुर पावर स्टेशन का संचालन संयोगवश जारी रहता है और बवाना स्थित देश का सबसे स्वच्छ थर्मल पॉवर स्टेशन इसलिए बंद पड़ा रहता है क्योंकि पाइप के जरिए पहुंचाई जा सकने वाली प्राकृतिक गैस की कमी है।

यदि मौसम के स्वरूपों पर गौर किया जाए तो वायु प्रदूषण में मामूली प्रतिशत की कमी वास्तव में किसी गिनती में नहीं होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस तरह के छोटे-मोटे परिवर्तन दैनिक आधार पर होते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सतही हवा प्रदूषण को दूर ले जाने के लिए मजबूत है या नहीं।

पर्यावरण विज्ञानी और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन कहते हैं कि दिल्ली के पर्यावरण में वायु प्रदूषक कैसे घुलमिल जाते हैं, इस बारे में संख्यात्मक लिहाज से पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा दिल्ली के पर्यावरण में मौसम और जहरीली गैसों को फैला देने वाली हवा की भूमिका अभी भी एक अबूझ पहेली बनी हुई है।

इसलिए यदि नागरिक पूरे मन से भी केजरीवाल के साथ सहयोग करें और उन्हें तब भी प्रदूषण के स्तर में स्पष्ट गिरावट देखने को नहीं मिलती तो वे बेहद निरुत्साहित होंगे। जनता के सहयोग में कमी आने से जहरीली हवा पर नियंत्रण पाने की दिशा में दीर्घकालिक बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसलिए प्रदूषण का हल इसे कम करना नहीं है बल्कि इसके लिए एनसीआर में चरमराती सार्वजनिक यातायात व्यवस्था को सही करने के लिए सोच-विचार कर दीर्घकालिक प्रयास किया जाना चाहिए।