वृक्ष हमारे लिए प्राणवायु हैं, वे हमें जीने के लिए ऑक्सीजन देते हैं। हमें धूप, गर्मी और उष्णता से बचाते हैं। पेड़ वृक्ष बनते हैं और वर्षा लाते हैं। हमें फल, खाद्य पदार्थ, आवास और छाया देते हैं। जहरीली गैसों तथा प्राकृतिक आपदाओं- बाढ़, भूकंप, ग्लोबल वार्मिंग, सुनामी, मरुस्थलीकरण, सूखा, जलसंकट, अकाल, निर्वनीकरण, ज्वालामुखी विस्फोट और चक्रवाती तूफानों से रक्षा करते हैं। नदियों की कटान रोकते हैं। वृक्षों की वजह से कृषि कार्य में मदद मिलती है और मानव संपदा में वृद्धि होती है, यानी वृक्ष हमारे पर्यावरण के लिए आवश्यक हैं। हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो हम सुरक्षित रहेंगे। दुखद यह है कि हाल के दिनों में भौतिक विकास के नाम पर जगह-जगह वृक्षों को काटा जा रहा है। सैकड़ों-हजारों वर्षों से लगे लाखों वृक्षों के कटने से हमारा पर्यावरण गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। वृक्ष हमें समुद्र मंथन में मिला। पृथ्वी सूत्र में लिखा है वृक्ष वर्षा लाते हैं। ऋषि-मुनि और पुरखे वृक्षों की पूजा करते रहे हैं।
बुंदेलखंड में झांसी से बाया खजुराहो, चित्रकूट से इलाहाबाद, नरैनी से कालिंजर सतना में बहुत से वृक्षों को काट दिया गया है। कई वृक्षों को काटे जाने हैं, उनकी छाती पर उनके कटने का नंबर लिख दिया गया है। हालांकि जिस काम के लिए वे काटे गए हैं, वह काम भी अधूरा पड़ा हुआ है। सर्वोदय कार्यकर्ता और समाजसेवी उमा शंकर पांडेय बताते हैं कि वृक्ष हमारे लिए देवता हैं। संसार का सुख उनमें समाहित है। वृक्ष हमसे कुछ लेते नहीं हैं, लेकिन वे हमें बहुत कुछ देते हैं। वे परोपकारी हैं। सनातन ग्रंथों में बताया गया है कि एक वृक्ष दस पुत्र के समान हैं। बांदा से सतना, झांसी से खजुराहो, इलाहाबाद, बांदा से कालिंजर की यात्रा के दौरान पांडेय जी ने देखा कि रोड बनाने के नाम पर सैकड़ों वर्ष पुराने वृक्षों को विकृत मानसिकता के साथ जिस तरह काटा गया है, वह आने वाले कई वर्षों तक मानव को चोट पहुंचाते रहेंगे। महुआ, आम, पीपल, बरगद, जामुन, शीशम के वृक्षों को काट डाला गया। यह विकास के नाम पर वृक्षों की कटाई नहीं हो रही है, बल्कि अपने विनाश के लिए मौत का रास्ता बना रहे हैं।
पुराने वृक्षों की इस तरह कटाई देखकर शरीर कांप उठता है। पर्यावरण प्रेमियों ने इस पर गंभीर चिंता जताई है। जो वृक्ष काटे गए हैं, उन्हें फिर से लगाने और बड़े होने में 100 वर्ष से ज्यादा का समय लगेगा। चित्रकूट के वैद्य डॉक्टर सचिन उपाध्याय, खजुराहो डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष सुधीर शर्मा, अजीत, दुर्ग कालिंजर के अरविंद भाई, महोबा के भाई राजीव तिवारी, बांदा के भाई अरुण निगम, दीपक शुक्ला ने इसे विकास नहीं, विनाश की ओर प्रस्थान कहा है।
जिस चित्रकूट का वर्णन गोस्वामी तुलसी दाज जी महाराज ने किया है, उसमें प्रभु श्री राम को वन का राजा बताया है। वहां के हजारों ऋषियों-मुनियों तीर्थ यात्रियों के वनगमन के दौरान स्वयं भगवान राम, माता सीता, भाई लक्ष्मण की शरण स्थली रही वृक्षों को निर्दयता के साथ काटा जा रहा है। पोद्दार इंटर कॉलेज के सामने का शमी वृक्ष सैकड़ों वर्ष पुराना है। चित्रकूट से इलाहाबाद मार्ग पर बसे गांवों की तरफ चलेंगे तो हजारों पुराने वृक्ष कटे हुए पड़े हैं। विश्व प्रसिद्ध कालिंजर नरैनी से कालिंजर जाते समय दो हजार वृक्ष काटे गए हैं। वृक्षों की छाती पर नंबर लिख दिए गए हैं। पिछले वर्ष इन वृक्षों पर नंबर लिखे गए थे, इस वर्ष कट गए। क्या इसे विकास कहते हैं? दूसरे देशों में वृक्ष काटे नहीं जाते हैं, बल्कि उखाड़कर दूसरी जगह शिफ्ट कर दिए जाते हैं। लकड़ी काटने के नाम पर और पुरानी लकड़ी बेचने के नाम पर यहां वृक्ष काट दिए जाते हैं। वह लकड़ी कहां जाती है, उसका मूल्य क्या होता है, किसी को नहीं मालूम। जो विभाग जिम्मेदार है वह चुप है। वृक्षों को उखाड़ने के लिए जब करोड़ों रुपए की जेसीबी आ सकती है, तो वृक्षों को शिफ्ट करने के लिए मशीन क्यों नहीं मंगाई जा सकती है।
पीपल को देव वृक्ष माना गया है। इसकी परिक्रमा से पाप मिटते हैं। भगवान बुद्ध ने पूरा ज्ञान और अद्भुत शक्ति इसी के नीचे बैठकर प्राप्त की। वास्तविकता यह है कि पेड़ पौधों की पूजा अर्चना वंदना एवं प्रार्थना के पीछे कर्मकांड नहीं, बल्कि इनके पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। भारतीय संस्कृति में वृक्षों की जितनी महिमा गरिमा का उल्लेख किया है, संभवतः किसी और देश में नहीं। पेड़ पौधे में अद्भुत शक्ति है, जिसका उल्लेख वेद उपनिषद, पुराणों, शास्त्रों, लोक विश्वासों, परंपराओं में समाहित है। वृक्षों को देवता मानकर उनकी पूजा उपासना की जाती है।
जो नर नारी वृक्ष लगावहीं,
सो चारों धाम फल पावही।
क्षिति जल पावक गगन समीरा
पंच तत्व मिलि बनय शरीरा।
यह शरीर पृथ्वी, अग्नि, आकाश, वायु, जल से मिलकर बना है। मत्स्य पुराण में वृक्षों को पुत्र से बड़ा माना गया है। आजादी के समय भारत की संपूर्ण भूभाग पर 20% वृक्ष थे। वर्तमान में जिस तरह फर्जी आंकड़ों पर पौधरोपण हो रहा है, लिखापढ़ी में करोड़ों पेड़ प्रतिवर्ष लगाए जाते हैं, वास्तविकता में उस आधार पर 4 प्रतिशत ही पेड़ दिखते हैं। अगर पेड़ प्रतिवर्ष लगाए जाते हैं तो वे कहां हैं। 70 सालों में इतनी पेड़ लग गए हैं, जितना शायद भारत में पृथ्वी का भूभाग नहीं होगा। चित्रकूट मंडल में तो हजारों भी नहीं दिखे, भले ही करोड़ों लगाए गए हों। मुंबई में 3000 वर्ष पुराना एक वृक्ष है। पीपल के वृक्ष पर 1987 में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया। कनाडा अमेरिका अफ्रीका में वृक्ष क्यों है, ऑस्ट्रेलिया के डीटी कबीले के लोग पेड़ों को अपने पूर्वजों की आत्मा का रूपांतरण मानते हैं।
फिलीपीनद्वीपवासी पेड़ों में अपने पूर्वजों का वास मानते हैं। पेड़ों की पुरोहितों से पूजा करवाते हैं, पेड़ों के आस पास शोर करना आग जलाना मना है। हमारे इन पेड़ों का दिल कितना बड़ा है जो भी व्यक्ति इन पेड़ों के पास आहार आश्रय की कामना लेकर आता है उसे फल, फूल,पत्ते, छाल, छाया, ईंधन तथा औषधि देकर कल्याण करते हैं। भगवान महावीर मानते हैं कि पेड़ों में जीव है, जियो और जीने दो का संदेश दिया। वृक्ष तो कुल्हाड़ी मारने वाले को भी छाया देते हैं, श्रीमद्भागवद गीता, भविष्य पुराण में वृक्ष के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। 100 फलदार वृक्ष लगाने वालों को किसी अनुष्ठान की जरूरत नहीं है, वृक्ष बोलते हैं, बातें करते हैं, आशीर्वाद देते हैं, मनोकामना पूरी करते हैं, जिसने वृक्षों को कष्ट दिया, उसका नाश करते हैं। वह व्यक्ति अपने जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता है, ना ही उसकी संतान रहेगी। ऐसा शास्त्रों में लिखा है।
समाज के कुछ सहृदयी और मित्र बिना किसी प्रचार-प्रसार के पुराने वृक्षों को बचाने में लगे हैं। चित्रकूट के वैद्य डॉक्टर सचिन उपाध्याय कई वर्षों से वृक्षों पर शोध कर रहे हैं। महोबा के राजीव तिवारी सैकड़ों वर्ष पुराने बरगद को बचाने के लिए बरसों से जमीन पर काम कर रहे हैं। कालिंजर के अरविंद छिरौलिया आयुर्वेदिक पौधों को रोपण करते हैं। अरुण निगम राष्ट्रीय राजमार्ग के बीचोंबीच प्रतिवर्ष अपने संसाधन से पौधरोपण करते हैं। सुधीर शर्मा अपने संसाधन से राष्ट्रीय कला केंद्र खजुराहो में पौधरोपण करते हैं। डॉक्टर शिव पूजन ऋषि कुल के माध्यम से वृक्ष बचा रहे हैं। कई कलमकार साथी अपनी कलम के माध्यम से वृक्ष बचाने की कोशिश कर रहे हैं। कई अधिकारी अपने पैसों से हजारों वृक्ष लगाते हैं। कुछ लोग अभी जिंदा है, ऐसे कई नाम है जो आदर्श हैं, जमीन पर काम कर रहे हैं। वह अपनी मार्केटिंग करने के लिए नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए इस काम में जुटे हैं। जिन गांवों में वृक्ष हैं, वहां का जलस्तर आज भी ऊपर है, जहां पर नहीं है, वहां जल नहीं है। जल ही जीवन है।
हम सभी लोगों को पद्म विभूषण 93 वर्षीय सम्माननीय सुंदरलाल बहुगुणा जी को नमन करना चाहिए, जिन्होंने चिपको आंदोलन से उत्तरांचल के वृक्ष बचा लिए। दुनिया में वृक्षों को बचाने के लिए आंदोलन चला कर दिखा दिया। क्या हम नरेनी से कालिंजर तक कटने वाले पुराने 2000 वृक्षों को नहीं बचा सकते हैं? कहां है वन कानून, हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के आदेश, हरित प्राधिकरण के आदेश? वृक्ष काटने वालों ने आदेश क्यों नहीं माने ? क्या एक आंदोलन बुंदेलखंड के वृक्षों को बचाने के लिए नहीं हो सकता? चित्रकूट, कालिंजर, ओरछा, खजुराहो, पन्ना का नाम वृक्षों की वजह से पूरी दुनिया में है। हमको आवास चाहिए, सुविधा चाहिए। हमारे आस-पास के जीव-जंतु, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों को क्यों नहीं चाहिए? यदि कोई व्यक्ति किसी के मकान में 25 वर्ष तक निवास करता है तो नियम के अनुसार उस व्यक्ति को मकान से नहीं हटाया जा सकता, लेकिन महुआ, जामुन, बरगद, पीपल आदि ये वृक्ष सैकड़ों वर्ष से एक ही स्थान पर रह रहे हैं, आखिर इन्हें क्यों बेदखल किया जा रहा है?