भारतीय युवाओं की उद्यमशीलता की प्रशंसा करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को शैक्षणिक संस्थाओं से नवोन्मेष और अनुसंधान का नेटवर्क तैयार करने की दिशा में काम करने को कहा, जो उद्यमियों को तैयार करने के साथ नवोन्मेष करे। राष्ट्रपति ने कहा कि देश को शिक्षा के क्षेत्र में आज पहुंच एवं उत्कृष्टता, गुणवत्ता एवं वहनीयता व स्वायत्तता के साथ जवाबदेही की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘उद्यमिता के क्षेत्र में भारतीय युवा किसी से भी कम नहीं हैं। दुनियाभर में स्टार्टअप आधार क्षेत्र के संबंध में भारत सबसे तेजी से बढ़ता स्थल है और 4200 स्टार्टअप के साथ अमेरिका और ब्रिटेन के बाद तीसरे स्थान पर है।’
प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘सरकार ने स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया अभियान शुरू किया है ताकि उद्यमिता से जुड़ी गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा सके। उच्च शिक्षण संस्थाओं के प्रमुखों को इस दिशा में नवोन्मेष एवं अनुसंधान नेटवर्क तैयार करने के लिए काम करना चाहिए जो उद्यमियों को तैयार करने के साथ नवोन्मेष का पोषण करे।’
राष्ट्रपति ने कहा कि शैक्षणिक संस्थाएं देश के सामाजिक आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। उन्होंने कहा, ‘मैंने पूर्व में केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थाओं से कम से कम पांच गांव को गोद लेने और उन्हें आदर्श गांव में तब्दील करने को कहा था।’
राष्ट्रपति भवन में विजिटर्स कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा-अब मैं सभी 114 केंद्रीय संस्थाओं को यह आह्वान करता हूं। गोद लिए हुए गांव में समस्याओं की पहचान करने के लिए इनके समाधान के लिए सभी अकादमिक और तकनीकी संसाधनों का उपयोग करें जिससे हमारे देशवासियों के जीवन का स्तर बेहतर होगा।’
प्रणब मुखर्जी ने इस मौके पर ‘इंप्रिंट इंडिया’ पुस्तिका जारी की। इंप्रिंट इंडिया, आइआइटी और आइआइएससी की संयुक्त पहल है जो इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों के समाधान का खाका तैयार करती है।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्रगति और नवोन्मेष के बीच सीधा संबंध है। इतिहास में ऐसे कई मामले देखे गए हैं, जब कम प्राकृतिक संसाधनों वाले कई देश केवल तीव्र प्रौद्योगिकी विकास के बल पर उन्नत अर्थव्यवस्था बने हैं।
उन्होंने छात्रों और शैक्षणिक संस्थाओं में नवोन्मेषी और शोध उन्मुख रुख पर बल दिया। उन्होंने कहा कि पिछले दस बरसों में उच्च शिक्षण संस्थाओं के आधारभूत ढांचे में तीव्र विस्तार हुआ है लेकिन दुनिया के 27 प्रतिशत के मुकाबले हमारी सकल नामांकन दर केवल 21 प्रतिशत है जो चिंता का विषय है।
राष्ट्रपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति तैयार की जा रही है, जो शिक्षा क्षेत्र के आयामों को बदलने वाली होगी और जिससे हम 2020 तक 30 फीसद सकल नामांकन दर के लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे क्योंकि हम इस लक्ष्य को हासिल किये बिना नहीं रह सकते हैं।
प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘विस्तार के क्रम में हम गुणवत्ता से समझौता नहीं कर सकते। अधिक संख्या में संस्थाओं का अर्थ है अधिक संख्या में सीटें, उच्च शिक्षा तक पहुंच और समता। हालांकि इस संदर्भ में पहुंच बनाम उत्कृष्टता, गुणवत्ता बनाम व्यवहार्यता और जवाबदेही बनाम स्वायत्तता चर्चा का विषय बनी है।’
उन्होंने कहा कि इस बारे में शांत मन से विचार करें तो स्पष्ट होगा कि पहुंच और उत्कृष्टता, गुणवत्ता एवं व्यवहार्यता, स्वायत्तता व जवाबदेही दोनों जरूरी हैं। उच्च शिक्षा में पहुंच बढ़ाने के संदर्भ में डिजिटल समावेशीकरण की तरफ बढ़ना महत्त्वपूर्ण होगा।
इससे पहले भारत के एक भी शैक्षणिक संस्थान के 200 संस्थाओं की अतंरराष्ट्रीय रैकिंग में नहीं आने के संदर्भ में राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसा लगता है कि मेरे बार बार जोर देने का नतीजा सामने आ रहा है। आपमें से कई ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है और हमारे कई संस्थान अब रैंकिंग प्रक्रिया को गंभीता से और सक्रियता से आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्यूएस वर्ल्ड रैंकिग में भारतीय संस्थान पहली बार आए हैं। अगर हम अगले चार-पांच बरसों तक 10-20 संस्थाओं को पर्याप्त कोष उपलब्ध कराते हैं तब हम जल्द ही शीर्ष 100 में आ सकते हैं। इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आइआइएससी और एनआइटी के प्रमुखों ने हिस्सा लिया।