अपने पितरों को दाना-पानी देने वाले और गाय के लिए श्रद्धा रखने वाले समाज में कोरोना संक्रमण से मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार को लेकर अपनाया जा रहा रवैया दुखद है। दिल्ली समेत कई राज्यों से शवों के साथ बर्बर बर्ताव की तस्वीरों ने शासन की संवेदनशीलता की पोल खोल दी हैं। सामाज के कई गणमान्य लोगों व वैज्ञानिकों का मानना है कि अंतिम संस्कार को गरिमापूर्ण बनाए रखने के लिए सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पीड़ित व शोकाकुल परिवार को भी जागरूक होने की जरूरत है।
वैज्ञानिक और आइआइटी दिल्ली में मानद प्रोफेसर दिनेश मोहन, छत्तीसगढ़ राज्य स्वास्थ्य शोध संस्थान के निदेशक और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ में स्वास्थ्य विभाग के डीन डॉक्टर टी सुंदर रमण, पूर्व आइएएस और मानव अधिकार सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर व नाताशा बधवार, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व सदस्य डॉक्टर वंदना प्रसाद, गांधीवादी राजमोहन गांधी व इतिहासकार रोमिला थापर सहित कई मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस बाबत जागरूक रहने और उठ खड़े होने का समय आ गया है।
दिल्ली के मुर्दाघर भरे रहने से शव लंबे समय तक वार्ड में ही पड़े देखे जा सकते हैं। श्मशान घाटों में निपटान में तीन तीन दिन तक लग रहा है। दिल्ली के बाहर के हालात और बुरे हैं। पुडुचेरी, कर्नाटक, सहित कई राज्यों में शव को गड्ढे में कोई गंदगी या जानवर की लाश की तरह फेंका जा रहा है। पुडुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी को शो कॉज नोटिस जारी करना पड़ा तो कर्णाटक के स्वस्थ्य मंत्री को माफी मांगनी पड़ी और जांच के आदेश देने पड़े।
वैज्ञानिक और आइआइटी दिल्ली मे मानद प्रोफेसर दिनेश मोहन ने कहा- शवों के निपटान में इतनी असवेदनशीलता क्यों हो रही है अगर सभी निर्देश साफ हैं तो। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व सदस्य डॉक्टर वंदना प्रसाद का कहना है कि अंतिम बार अपने प्रियजन का दर्शन करना पीड़ित परिजनों का अधिकार है। दूसरी ओर कोरोना के मृत्तक को भी गौरवपूर्ण अंतिम संस्कार पाने का हक है।
पूर्व आइएएस और मानव अधिकार समाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर का कहना है कि मृतकों का अंतिम संस्कार परिजनों की ओर से किए जाने में कोई खतरा नहीं है। तो सभी मामलों में मृतक के परिजनों को साथ क्यों नहीं लिया जाता। जानवरों का तरह दफनाने के वाकया क्यों हो रहे हैं। उनका कहना है कि वास्तव में ऐसा कोई वैज्ञानिक या तार्किक कारण नहीं है जो सामाजिक दूरी और सुरक्षा निर्देशों का पालन कर रहे लोगों को अपने प्रियजनों को अंतिम संस्कार करने से रोकता हो। सिर्फ और सिर्फ बहुत करीबी लोग ही इसमें शरीक हों और सभी लोग उचित तरीके से मास्क लगाए हों। मानव अधिकार कार्यकर्ता नाताशा बधवार ने कहा कि कोरोना संक्रमण से जितना लोग परेशान हैं उससे ज्यादा लोग अव्यवस्था से परेशान हैं। जिंदगी से जंग की लड़ाई कठिन तो है ही, अंतिम सफर भी पीड़ादायक है।
बता दें कि दिल्ली में कोविड से मौत मामले में शव को दो घंटे के भीतर अस्पताल के बिस्तर से मुर्दा घर में पहुंचाने और 24 घंटे के भीतर तय मानकों के साथ गौरवपूर्ण ढंग से दफनाना या जलना सरकार के दिशा निर्देशों में शामिल है। इसके अलावा शव का प्रबंधन कैसे किया जाए और क्या सावधानियां बरती जाएं, इस बारे में भी साफ हिदायतें हैं। बावजूद इसके इसका पालन नही हो रहा है। इस दौर में असंवेदनशीलता बुरी तरह घर कर चुकी है।
जलाने दफनाने से नहीं फैलता संक्रमण
इस समय सवाल शव से भी संक्रमण फैलने को लेकर भी है। इस मामले में भारत सरकार ने नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) की मदद से जो दिशानिर्देश जारी किए गए हैं, प्लास्टिक बैग बंद किए गए शव से उसे ले जाने वालों को कोई खतरा नहीं है। शव दहन से उठने वाली राख से कोई खतरा नहीं है। अंतिम क्रियाओं के लिए मानव-भस्म को एकत्र करने में कोई खतरा नहीं है। अंतिम संस्कार से जुड़ीं उन सभी धार्मिक क्रियाओं की अनुमति है जिनमें शव को छुआ न जाता हो। स्वास्थ्य विभाग का यह भी दावा है कि तय मानक से शव के अंतिम संस्कार करने से कोरोना वायरस नहीं फैलता।

