उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस को भी अपने पुराने वोट बैंक की याद आ गई है। यही वजह है कि उसने लखनऊ में 18 फरवरी को दलित-सभा का आयोजन किया है। पार्टी को अब भी उम्मीद है कि लंबे समय तक उसके पास रहने के बाद अन्य राजनीतिक दलों के पाले में गया अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का मतदाता इस सभा के आयोजन और उसमें राहुल गांधी के शिरकत करने की वजह से कांग्रेस में वापसी करेगा।
बात बहुत पुरानी नहीं है। चौदहवीं लोकसभा के चुनाव से राहुल गांधी ने दलितों के घर रात बिताने और खाना खाने का एक अभियान शुरू किया था। कांग्रेस आलाकमान ने उत्तर प्रदेश में ठंडे कमरे में रहने के अभ्यस्त हो चुके कांग्रेसी नेताओं को आदेश दिया था कि वे भी दलितों के घरों तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिशें शुरू करें। लेकिन राहुल गांधी के दलितों के घर गुजारी रात मीडिया की सुर्खियों से अधिक कुछ नहीं बटोर पाई।
इस प्रयोग को हाईटेक तरीके से कांग्रेस पुन: लागू करने जा रही है। प्रदेश भर के कांग्रेसी नेताओं से कहा गया है कि वे इस सभा में सिर्फ दलितों को ही लेकर आएं। इसकी वजह यह है कि सभा में दलितों की समस्याओं को सुनने के बाद विधानसभा चुनाव में उसे ध्यान में रखते हुए रणनीति बनाई जाएगी। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर ऐसा आयोजन कर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में करना क्या चाह रही है? कांग्रेस के आला नेता बताते हैं कि इस आयोजन के जरिये दलित एजेंडा तैयार करने की मंशा है।
उत्तर प्रदेश में दलितों के बीच जगह बनाने की तमाम कोशिशें करने के बावजूद राहुल गांधी को अब तक वोटों की शक्ल में हासिल क्या हुआ? इसका जवाब आंकड़े देते हैं। उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 84 आरक्षित हैं। 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल 13.25 फीसद मत मिले थे जबकि 2007 में 8.61 फीसद। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में दलितों के मन में उपजे भारतीय जनता पार्टी के प्रति प्रेम ने राहुल गांधी की पूरी मुहिम को ही हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेसी शीत निद्रा का अभ्यस्त हो चुका है। कांग्रेस की राष्टÑीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कई बार सार्वजनिक तौर पर उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं से आह्वान किया कि वे जमीनी काम करें। प्रदेश के गावों में रात्रि प्रवास करें, दलितों के घर जाएं और दलितों से जुड़े मामलों पर आंदोलन करें। ठण्डे कमरों में रहने के आदी हो चुके उत्तर प्रदेश के कांग्रेसियों ने पार्टी आलाकमान की बात को पूरी तरह अनसुना कर दिया।
दो वर्ष बाद राहुल गांधी कांग्रेस के माल एवेन्यू स्थित प्रदेश मुख्यालय पर किसी कार्यक्रम में शिरकत करने आ रहे हैं। राहुल गांधी के स्वागत में प्रदेश की राजधानी को बैनर और पोस्टरों से पाटने की तैयारी जोरों पर है। लेकिन अभी तक पार्टी के किसी भी नेता ने प्रदेश के दलितों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति की कोई रिपोर्ट तैयार नहीं की है। न ही कुपोषण और गरीबी से दलित किसानों की हो रही मौत से निपटने की सटीक कार्ययोजना पर ही किसी ने ध्यान दिया है।
उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी नेता बड़ी होर्डिंग्स में अपनी फोटो देखने की मंशा में जकड़े हुए अधिक नजर आ रहे हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि दलित सभा का आयोजन कर राहुल गांधी सूबे में खस्ताहाल कांग्रेस में जान फूंक पाएंगे। या दलितों को कांग्रेस से जोड़ने की इस कोशिश का हश्र भी पिछले आयोजनों सरीखा ही होगा?