कर्नाटक के वरिष्ठ कांग्रेस विधायक अौर मंत्री ने भरी जनसभा में अपने सरकार के कदम को गलत बताया और माफी मांगी। राज्य के जल संसाधन मंत्री डीके शिवकुमार ने पहली बार सार्वजनिक रूप से कहा कि इस साल के शुरूआत में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी को लिंगायत समुदाय के मामले में किसी तरह की दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए थी। राज्य के गडग में रामभापुरी सेर वीरा सोमेश्वर शिवचार्य स्वामी के दशहरा सम्मेलन में बोलते हुए शिवकुमार ने कहा, “हमारी पार्टी ने इस राज्य में बड़ी गलती की है। मैं इससे इंकार नहीं करता हूं। मुझे ऐसा लगता है कि किसी भी सरकार को जाति और धर्म से जुड़े मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यह हमारी सरकार द्वारा किया गया अपराध था। कई मंत्रियों अौर नेताओं ने इस मुद्दे पर बोला, लेकिन चुनाव में जनता द्वारा दिया गया जनदेश इस बात का सबूत है कि सरकारों को इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यदि हमारी सरकार ने गलती की है, तो मैं आपलोगों से माफी मांगता हूं।”
Our govt committed big mistake.Political parties shouldn’t interfere in religious matters. Many ministers,leaders spoke about it but election verdict is proof, it was a mistake. No political party should do politics with religion:K’taka Min DK Shivakumar on Lingayat issue (17.10) pic.twitter.com/hiu357YOaM
— ANI (@ANI) October 18, 2018
बता दें कि वीरा सोमेश्वर ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक समूह की मान्यता देने का जोरदार विरोध किया था। वीरा सोमेश्वर गडक में प्रभावशाली लिंगायत समुदाय के धर्मगुरु हैं। कर्नाटक के उत्तरी हिस्से में लिंगायत समुदाय की बड़ी जनसंख्या है। शिवकुमार का यह बयान राज्य विधानसभा चुनाव के पांच महीने बाद आया है। चुनाव के दौरान सीएम सिद्धारमैया वाली कांग्रेस सरकार ने लिंगायत और वीराशिवा समूह के प्रस्तावों पर अध्ययन के लिए एक विशेषज्ञों की समिति की नियुक्ति की थी। उस समय ये समूह खुद को हिंदू धर्म से अलग कर धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग कर रहे थे। विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के आधार पर 19 मार्च को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया था।
[bc_video video_id=”5849842032001″ account_id=”5798671092001″ player_id=”default” embed=”in-page” padding_top=”56%” autoplay=”” min_width=”0px” max_width=”640px” width=”100%” height=”100%”]
मई में विधानसभा चुनावों के चलते कई कांग्रेस नेताओं ने लिंगयतों को एक अलग धर्म के रूप में सिफारिश करने का मुद्दा उठाया। यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मतदाताओं को लुभाने के लिए 12 वीं शताब्दी के दार्शनिक बसवाना, जिन्होंने लिंगायत समुदाय की स्थापना की थी, की चर्चा की थी। हालांकि, चुनाव इसका कोई लाभ नहीं मिला। राज्य के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र, जहां जेडी (एस) की उपस्थिति सीमित है, यहां लिंगायत मुद्दे पर भाजपा को बढ़त मिली। तीन बड़े कांग्रेसी नेता जिन्होंने लिंगायत को अलग धर्म धार्मिक पहचान देने के आंदोलन का समर्थन किया था, वे हार गए। कांग्रेस के इस कदम को हिंदू धर्म को विभाजित करने के लिए एक चाल के रूप में देखा गया था।