राजस्थान में 13 नवंबर को 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल प्रचार में जुटे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद हो रहे उपचुनाव में जहां बीजेपी अपने प्रदर्शन को बरकरार रखना चाहेगी वहीं कांग्रेस जो 69 सीट पर रहकर सरकार गंवा चुकी है, अपने लिए कुछ अच्छे नतीजों की तलाश में है। जबकि भाजपा को 115 सीटें मिली थीं। अब देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी को इन उपचुनाव में बेहतर नतीजे मिलते हैं। 

कांग्रेस खो रही है लय 

अक्टूबर में हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले, कांग्रेस राजस्थान में दबदबा महसूस हो रहा था। लेकिन अब पार्टी धार खोती दिख रही है। कांग्रेस की पूर्व सहयोगी भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के पास इन 7 में से 1-1 सीट हैं, जबकि कांग्रेस का 4 सीटों पर कब्जा है, वहीं बीजेपी के पास भी एक सीट है। हालांकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था लेकिन वह अपना प्रदर्शन बरकरार रख पाएगी या नहीं यह एक अहम बिन्दु होगा। 

इस दौरान अहम पहलू भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के साथ कांग्रेस की बात ना बन पाना भी है, जिससे सबसे पुरानी पार्टी की लय खोती दिख रही है। हालांकि, कांग्रेस में आम सहमति यह है कि गठबंधन न होना जानबूझकर किया गया और यह अच्छा है क्योंकि इससे स्थानीय इकाइयां मजबूत बनी रहती हैं। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि बागियों से ज़्यादा नुकसान कांग्रेस को हो सकता है, इसका एक उदाहरण देवली उनियारा सीट है।  जहां कांग्रेस ने नरेश मीना को फिर से टिकट देने से इनकार कर दिया, नरेश मीना निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं और बीएपी, आरएलपी और अन्य के समर्थन का दावा कर रहे हैं। दूसरी तरफ पूर्व कांग्रेस मंत्री राजेंद्र गुढ़ा झुंझुनू से चुनाव लड़ रहे हैं। 

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बीजेपी का क्या प्लान? 

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने संसदीय चुनावों से सबक सीखा है। विधानसभा चुनावों की तुलना में वह इन सीटों पर बेहतर तरीके से नियंत्रण कर पाई है। उसने जय आहूजा (रामगढ़), बबलू चौधरी (झुंझुनू) और नरेंद्र मीना (सलूंबर) के बागियों को मनाने में कामयाबी हासिल की है। साथ ही खींवसर में अपनी संभावनाओं को मजबूत करने के लिए दुर्ग सिंह को शामिल किया है। 2008 में इसके गठन के बाद से बेनीवाल परिवार इस सीट पर जीतता आ रहा है।