केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) ने एक आरटीआइ के संबंध में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सवाल किया है कि वे एक विधायक हैं। लिहाजा उन्हें एक सार्वजनिक प्राधिकरण क्यों न घोषित कर दिया जाए। आरटीआइ में पूछा गया है कि 2014 के विधानसभा चुनाव के नामांकन के दौरान केजरीवाल को अपना पता बदलने की मंजूरी कैसे मिली।
आरटीआइ दाखिल करने वाले नीरज सक्सेना ने दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से पूछा था कि केजरीवाल ने अपना पता बदल कर 514 वीबीपी हाउस, रफी मार्ग, नई दिल्ली करने के लिए 17 नवंबर, 2014 की तारीख वाला फॉर्म आठ ए (आईडी-467402) सौंपा था, लेकिन बाद में उसे वापस लेकर पता बीके दत्त कालोनी, नई दिल्ली कराने के लिए आठ जनवरी 2015 की तारीख वाला एक दूसरा फॉर्म आठ ए (आईडी467401) जमा किया और कहा कि वे इस पते पर पांच महीनों से रह रहे हैं।
सक्सेना ने यह भी पूछा कि सीईओ ने केजरीवाल के खिलाफ अभियोग क्यों नहीं लगाया। चुनाव आयोग ने इस मामले में कहा कि सक्सेना पहले ही मामला सीआइसी के सामने उठा चुके हैं, जिसने कहा था कि उन्हें पर्याप्त सूचना उपलब्ध कराई गई है। मामला दिल्ली हाईकोर्ट के सामने उठाया गया जिसने उनकी याचिका खारिज कर दी। सूचना आयुक्त श्रीधर अचार्युलू ने कहा कि जनसूचना अधिकारी ने दावा किया कि उन्होंने केजरीवाल के अनुरोध पर फॉर्म आठ ए आइडी-467402 खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि वे फॉर्म-आठ ए की प्रमाणित प्रति पेश नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें वह मुख्यालय से नहीं मिली है। अपीलकर्ता जनसूचना अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही पर जोर दे रहा है।
सूचना आयुक्त के मुताबिक, आरटीआइ आवेदक के कुछ सवाल जैसे कि केजरीवाल ने फॉर्म आठ ए क्यों वापस ले लिया और घर बदले, केजरीवाल उस समय एक मतदाता थे, बाद में विधायक बने, फिर आप विधायक दल के नेता बने और आखिरकार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। तीसरे पक्ष यानी केजरीवाल से जवाब देने के लिए संपर्क करना उचित होगा क्योंकि अपीलकर्ता गंभीर आरोप लगा रहा है और जोरदार तरीके से केजरीवाल के घर के पते की वैधता के दावे को चुनौती दे रहा है। बकौल अचार्युलू, सक्सेना ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल गाजियाबाद के निवासी हैं और उन्होंने खुद को दिल्ली का निवासी बताया है। इसलिए इसे मामूली अभ्यावेदन नहीं समझा जा सकता।