छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक लॉजिस्टिक कंपनी के दो कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया है। कर्मचारियों पर आरोप है कि उन्होंने हत्या के लिए कथित रूप से प्रयुक्त चाकू की डिलीवरी करने में मदद की है। हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने 1 सितंबर को कहा कि किसी शिकायत, एफआईआर या आरोप-पत्र को रद्द करने का अधिकार क्षेत्र बहुत बड़ा है और इसका प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, ‘अदालतें आमतौर पर संगीन अपराधों की जांच में हस्तक्षेप नहीं करती हैं। एफआईआर केवल तभी रद्द की जा सकती हैं जब आरोप भले ही प्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर लिए गए हों और प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनते हों।’
कंपनी के नियम में बाध्यता
कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले दिनेश साहू और हरिशंकर साहू दोनों ही लॉजिस्टिक्स कंपनी इलास्टिक रन के कर्मचारी हैं। उन पर आरोप है कि उन दोनों ने कोई प्रतिबंधित चाकू पहुंचाने में मदद की थी। जिसका कथित तौर पर एक हत्या में इस्तेमाल किया गया था। अपनी याचिका में इलास्टिक रन के वरिष्ठ क्षेत्रीय प्रबंधक दिनेश साहू और एक डिलीवरी सेवा एजेंट हरिशंकर साहू ने तर्क दिया कि उनकी डिलीवरी भूमिकाएं ‘पूरी तरह से सामान्य थी और उनको इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थीं। क्योंकि उनका काम सीलबंद पैकेट के खेपों को उठाने और उनकी डिलीवरी तक सीमित थीं, उनकी सामग्री या खरीदारों के आपराधिक इरादे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी’।
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याचिकाकर्ता के वकील देवाशीष तिवारी ने तर्क दिया, ‘कंपनी द्वारा यहां नौकरी करने वालों के लिए जारी कॉन्ट्रैक्ट में स्पष्ट रूप से पैकेजों के साथ छेड़छाड़ पर रोक लगाई गई है, तथा कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट के तहत बिना निरीक्षण के सामान को सही जगह पर वितरित करने के लिए बाध्य हैं।’
बीते 19 जुलाई को दर्ज की गई एफआईआर में दो याचिकाकर्ताओं सहित छह लोगों के नाम हैं इन सभी पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।