पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने खालिस्तानी अमृतपाल सिंह की रिहाई की मांग करके सबको चौंका दिया है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कई नेताओं ने अमृतपाल पर नरम रुख अपनाया। अमृतपाल अप्रैल 2023 से राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत जेल में बंद है। हालांकि चन्नी के बयान का कांग्रेस ने समर्थन नहीं किया।
कांग्रेस ने चन्नी के बयान से बनाई दूरी
पंजाब कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “अमृतपाल पर चन्नी का बयान सही नहीं था। ऐसा प्रतीत होता है कि वह समाज के एक विशेष वर्ग को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं, जो अमृतपाल का समर्थन करता है। लेकिन ये पार्टी लाइन नहीं है। पार्टी की विचारधारा बिल्कुल स्पष्ट है। कांग्रेस किसी भी तरह के कट्टरवाद के खिलाफ है, चाहे वह हिंदू, मुस्लिम या सिख हो। इसीलिए पार्टी ने चन्नी की टिप्पणी से दूरी बना ली है।”
हालांकि अमृतपाल की रिहाई की मांग करने वाले चन्नी अकेले नहीं हैं। लोकसभा नतीजों के बाद से अन्य दलों के नेता भी उनकी रिहाई पर जोर दे रहे हैं या अपने रुख में नरमी ला रहे हैं। अमृतपाल के अलावा इंदिरा गांधी के हत्यारों में से एक के बेटे सरबजीत सिंह खालसा ने फरीदकोट से निर्दलीय के रूप में जीत हासिल की थी। अमृतपाल और सरबजीत सिंह खालसा की जीत काफी हद तक पारंपरिक पार्टियों से मतदाताओं के मोहभंग के कारण हुई। पंजाब में चल रहे नशीली दवाओं के संकट ने मतदाताओं को विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित किया है।
सुखबीर बादल ने कर डाली बड़ी मांग
वहीं अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “मैं और मेरी पार्टी भाई अमृतपाल सिंह के खिलाफ एनएसए के विस्तार का कड़ा विरोध करते हैं, क्योंकि यह संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन है। भगवंत मान के इस फैसले ने उनके सिख विरोधी और पंजाब विरोधी चेहरे को पूरी तरह से उजागर कर दिया है और दिखाया है कि वह दिल्ली की धुन पर कैसे नाचते हैं। भाई अमृतपाल सिंह के साथ हमारी विचारधारा के मतभेदों के अलावा, हम उनके खिलाफ या किसी और के खिलाफ दमन और अन्याय का विरोध करेंगे और हमें इसकी परवाह नहीं है कि इसके लिए हमें कितनी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी। ये वे सिद्धांत हैं जो महान गुरु साहिबान ने हमें सिखाए हैं।”
कई अकाली नेताओं ने कहा कि लोकसभा चुनाव अभियान के दौरान अमृतपाल के पीछे जाने की उनकी पार्टी की चाल महंगी पड़ी है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस कदम का उद्देश्य अपने मूल वोट बैंक को वापस खींचना था।
ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने भी अलगाववादियों और चरमपंथियों पर अपना रुख नरम कर लिया है। लुधियाना से लोकसभा उम्मीदवार रवनीत सिंह बिट्टू ने हाल ही में कहा था कि वह अपने दादा और पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना या जेल की सजा पूरी कर चुके किसी अन्य बंदी को रिहा करने के केंद्र के किसी भी कदम का विरोध नहीं करेंगे।