सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूल के आदेश के एक साल बाद IPS ऑफिसर नरेंद्र के अमीन को प्रमोशन देकर डीआईजी का पद दे दिया गया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अमनी को यह प्रमोशन तब मिला जब उन्होंने सर्विस से रिटायरमेंट ले लिया है। गृह विभाग की अधिसूचना में कहा गया है कि 2003 बैच के आईपीएस अमीन को 1 जनवरी 2012 से जूनियर प्रशासनिक ग्रेड लेवल-12 दिया गया था।

इस अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि अमीन को 1 जनवरी 2016 से लेवल-13 में चयन ग्रेड दिया गया था। अधिसूचना में आगे लिखा है, ‘महिसागर के तत्कालीन एसपी डॉ एनके अमीन को 1 जनवरी 2017 से काल्पनिक आधार पर डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस लेवल-13ए के पद पर पदोन्नत किया जाता है।’ इशरत जहां कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में प्रमुख आरोपी पुलिसकर्मियों में से एक अमीन करीब आठ साल तक सस्पेंड रहे और 2015 में उन्हें फिर से पुलिस में शामिल कर लिया गया। हालांकि, 2017 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

क्या थी ‘नकली’ मुठभेड़?

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अब इस नकली मुठभेड़ की बात करें तो अमजद अली राणा, ज़ीशान जौहर, जावेद ग़ुलाम शेख़ उर्फ़ प्रणेश पिल्लई और इशरत एक नीली इंडिका कार से अहमदाबाद की तरफ जा रहे थे। उसी समय उप पुलिस महानिदेशक ने अपनी टीम के साथ में उनका पीछा करना शुरू कर दिया। इसके बाद 15 जून, 2004 को तड़के पांच बजे एक सुनसान सड़क पर चारों को मार दिया गया। उस समय पुलिस ने ऐसा दावा किया था कि यह चारों लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए हैं।

मुठभेड़ के बाद में पुलिस ने कहा था कि पाकिस्तान के फिदाइनों से इन सभी के अहमदाबाद आने की जानकारी मिली थी। उनका मकसद गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी पर हमला करना था। पुलिस की तरफ से दर्ज की गई शिकायत में इशरत की पहचान उनके सही नाम से नहीं की गई थी। इसमें कहा गया था कि इस एनकाउंट में मारा गई महिला चरमपंथी थी। इस मुठभेड़ के लगभग पांच साल के बाद में यानी 2009 में अहमदाबाद कोर्ट ने कहा कि मुठभेड़ फर्जी थी। फिर मामले में सीबीआई जांच के भी आदेश दिए गए थे। सीबीआई ने सात पुलिस अधिकारियों पीपी पांडे, डीजी बंजारा, एनके अमीन, जीएल सिंघल, तरुण बरोट, जे जी परमार और अनाजु चौधरी को अभियुक्त बनाया था। पढ़ें पूरी खबर…