सीबीआइ ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से जुड़े स्टिंग आॅपरेशन की जांच के सिलसिले में मंगलवार को उनसे करीब पांच घंटे तक पूछताछ की। जांच एजंसी ने दावा किया कि उन्होंने पूछताछ के दौरान कुछ सवालों के पूरी तरह जवाब नहीं दिए । रावत कुछ समर्थकों और एक विधायक के साथ पूर्वाह्न 11 बजे सीबीआइ मुख्यालय पहुंचे। संभवत: पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो पद पर रहते हुए किसी प्राथमिक जांच के मामले में पूछताछ के लिए सीबीआइ के मुख्यालय आए हैं। उनसे शाम चार बजे तक पूछताछ की गई जिस दौरान न्यूज चैनल के मालिक के साथ उनके संबंधों, उनके और उनके मंत्रिमंडल के एक मंत्री द्वारा एक बागी विधायक को कथित रिश्वत के प्रस्ताव आदि को लेकर सवाल जवाब किए गए।
सीबीआइ के प्रवक्ता देवप्रीत सिंह ने बताया, ‘उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत से कथित स्टिंग आपरेशन की जांच के संबंध में पूछताछ की गई। आगे भी पूछताछ जारी रहेगी। उन्हें फिर से बुलाया जाएगा।’ एजंसी सूत्रों ने बाद में दावा किया कि रावत कई ऐसे मुद्दों का संपूर्ण विवरण नहीं दे पाए जिनके लिए उन्हें फिर से बुलाया गया है जिसका उन्होंने यह कहते हुए विरोध किया कि उन्होंने एजंसी के साथ पूरी तरह सहयोग किया है।
सूत्र हालांकि यह ब्योरा देने में विफल रहे कि किन बिंदु विशेष पर रावत ने विस्तृत जानकारी नहीं दी। पूछताछ के बाद बाहर आने पर रावत ने कहा कि वह जांच टीम द्वारा पूछे गए सवालों का खुलासा नहीं कर सकते। रावत ने कहा, ‘मुझे कोई सबूत देने की जरूरत नहीं है। न मैंने विधायकों की कोई खरीद फरोख्त की है और न ही किसी को कोई पैसा दिया है। मैंने कभी नहीं कहा कि मुझे विधायक चाहिए। मैं सात जून को फिर आऊंगा। इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लोग हर जगह पहुंच जाते हैं। मैंने उस पत्रकार को इज्जत बख्शी और उसने मुझे ब्लैकमेल किया। मीडिया को इस पर चिंतन करने की जरूरत है।’
उन्होंने कहा कि वह 9 मई को नहीं आ सके क्योंकि उस दिन वह कुछ दिन बाद होने वाले विधानसभा शक्ति परीक्षण में लगे थे। सीबीआइ ने ‘स्टिंग आॅपरेशन’ की जांच के लिए 29 अप्रैल को प्रारंभिक जांच दर्ज की थी। इस स्टिंग आॅपरेशन में रावत बागी कांग्रेसी विधायकों को कथित रूप से रिश्वत की पेशकश करते दिखाए गए हैं, ताकि वे विधायक उत्तराखंड विधानसभा में शक्ति परीक्षण के दौरान उनका समर्थन करें।
प्रारंभिक जांच राष्ट्रपति शासन के दौरान प्रदेश सरकार से मिली अनुशंसा और बाद में भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना के आधार पर दर्ज की गई थी। प्रारंभिक जांच पहला कदम है जिसके दौरान एजंसी शिकायत के तथ्यों की जांच करती है। इस दौरान जांच एजंसी किसी व्यक्ति से जांच में शामिल होने की अपील कर सकती है लेकिन उसे तलब नहीं कर सकती, छापेमारी नहीं कर सकती या कोई गिरफ्तारी नहीं कर सकती।
यदि तथ्यों की जांच में आगे जांच करने की जरूरत सामने आती है तो जांच एजंसी एफआइआर दर्ज कर सकती है या प्रारंभिक जांच को बंद कर सकती है। सीबीआइ ने पिछले सप्ताह राज्य सरकार की उस अधिसूचना को खारिज कर दिया था जिसमें उसने राष्ट्रपति शासन के दौरान मामले की जांच को दी गई मंजूरी वापस लेने की बात कही थी। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने भी सीबीआइ जांच पर रोक नहीं लगाई। रावत ने सीबीआइ जांच पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। सीबीआइ ने कहा था कि कानूनी सलाह लेने के बाद इसे खारिज कर दिया गया। इस सलाह में कहा गया कि मंजूरी को वापस लेने का कोई आधार नहीं है और यह ‘कानूनी तौर पर मान्य’ नहीं है।