दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आज मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में ‘भारत के नियंत्रक- महालेखापरीक्षक का प्रतिवेदन 31 मार्च 2021 को समाप्त वर्ष के लिए ‘दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण की रोकथाम एवं अल्पीकरण’ पर निष्पादन लेखापरीक्षा सदन में पेश की। कैग रिपोर्ट में दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण की रोकथाम में पूर्ववर्ती सरकार ने किस तरह के कदम उठाए और कहां पर किस तरह की लापरवाही की गईं, इसको लेकर कैग रिपोर्ट में विस्तार से जिक्र किया गया है। निजी वाहन दिल्ली में प्रदूषण के कितने बड़े कारक रहे और सार्वजनिक वाहनों की कमी की वजह से दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर कितना बढ़ा है, साथ ही वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली से लेकर स्वच्छ परिवहन रोकथाम और परिवर्तन रणनीतियां के साथ-साथ सड़कों पर होने वाली अवैध पार्किंग को लेकर भी रिपोर्ट में कई बड़े सवाल खड़े किए गए हैं।

कैग रिपोर्ट में ग्रेड रिस्पांस एक्शन प्लान जिसमें ऑड इवन स्कीम और दिल्ली में ट्रैकों के प्रवेश को प्रतिबंधित करना शामिल है, यह भी पूरी तरह से कारगर तरीके से लागू नहीं किया गया। रिपोर्ट में सवाल उठाए गए हैं कि जब प्रदूषण का उच्च स्तर विस्तारित अवधि के लिए बना रहता है, जब प्रदूषण का स्तर अधिक था, तब अधिकांश मौकों पर सरकार ने और इस स्कीम और दिल्ली में ट्रैकों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के लिए इसे लागू करना जरूरी नहीं समझा।

रिपोर्ट में यह भी सवाल उठाए गए हैं कि अंतरराज्यीय डीजल बसों को दिल्ली की सीमा पर ही बनाए रखने के लिए दिल्ली के प्रवेश स्थलों पर आईएसबीटी विकसित करके वायु प्रदूषण को कम करने के लिए भी सरकार कदम उठाने में विफल रही है जिससे दिल्ली को दूसरे राज्यों के लिए ट्रांस शिपमेंट जोन बनने से रोका जा सकने का काम नहीं किया जा सका और अंतर्देशीय कंटेनर डिपो को बाहरी दिल्ली में स्थानांतरित किया जा सके। इस पर भी पूर्ववर्ती सरकार ने काम नहीं किया।

सार्वजनिक परिवहन बसों की कमी रही

कैग की रिपोर्ट में पूर्ववर्ती सरकार ने दिल्ली प्रबंधन एवं पार्किंग स्थल नियमावली 2019 को भी लागू करने में कोई कार्रवाई नहीं की जिसका मकसद बेतरतीब ढंग से खड़े किए गए वाहनों के कारण वाहनों के ठहराव और ट्रैफिक जाम से बचने का काम किया जा सकता था और इसकी वजह से वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता रहा है।

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रिपोर्ट में इस पर भी गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं कि सार्वजनिक परिवहन बसों की कमी तो रही ही, वहीं खराबी के कारण खड़ी हुई सार्वजनिक परिवहन बसों को सड़कों से उचित समय में हटाने में भी पूरी देरी की गई। जिससे यातायात में भीड़भाड़ हुई और इस तरह की भीड़भाड़ से वाहनों से अधिक उत्सर्जन हुआ है।

रिपोर्ट में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली पर बड़े सवाल खड़े करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी भारी कमी थी क्योंकि 9000 बेसों की पुनः निर्धारित आवश्यकता के प्रति केवल 6750 बेस ही उपलब्ध रही। वर्ष 2011 से दिल्ली की जनसंख्या में 17 फ़ीसदी की अनुमानित वृद्धि हुई परंतु पंजीकृत ग्रामीण सेवा वाहनों की संख्या में 2011 से 6153 ही बनी रही। इतना ही नहीं ग्रामीण सेवा वाहन भी 10 साल पुराने थे जिसमें ईंधन दक्षता खराब हो सकती है और प्रदूषण पैदा करने की उच्च क्षमता हो सकती है।

‘मोनोरेल एवं लाइट रेल ट्रांसिट’ और ‘इलेक्ट्रॉनिक ट्रॉली बेसों के कार्यान्वयन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया

इस पर बड़े सवाल खड़े करते हुए रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सार्वजनिक परिवहन बसों की कमी के बावजूद दिल्ली सरकार ने पिछले 7 सालों से बजट प्रावधान रखने के बाद भी इसके विकल्प जैसे ‘मोनोरेल एवं लाइट रेल ट्रांसिट’ और ‘इलेक्ट्रॉनिक ट्रॉली बेसों के कार्यान्वयन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। 6153 ग्रामीण सेवा वाहनों में से केवल 3476 वाहनों की ही जांच हुई, वह भी अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के दौरान केवल एक बार जबकि उसे अवधि के दौरान चार बार वाहनों की जांच होना जरूरी था।

कैग रिपोर्ट में प्रदूषकों के स्रोतों के बारे में रियल टाइम की सूचना आदि पर भी कई सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिल्ली सरकार के पास प्रदूषकों के स्रोतों के बारे में कोई वास्तविक समय की सूचना नहीं थी, क्योंकि उसने इस संबंध में कोई अध्ययन नहीं किया। उचित वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए दिल्ली सरकार के पास एक दिन में काम से कम 16 घंटे के लिए वायु में प्रदूषकों की सांद्रता का अपेक्षित आंकड़ा उपलब्ध नहीं था।

दिल्ली की परिवेशी वायु में सीसा के स्तर को भी नहीं मापा जा रहा था। सीएजी ने वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों पर भी गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि इनकी अवस्थित केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती थी। दिल्ली सरकार के 31 मार्च 2021 को समाप्त वर्ष के लिए पेश रिपोर्ट में वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र जारी करने में बरती गई तमाम अनियमिताओं का भी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है। (भूपेंद्र पांचाल की रिपोर्ट / जनसत्ता)

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