Bundelkhand Water Revolution: दुनिया में पेयजल संकट एक बड़ी समस्या बन गया है। दुनियाभर में इसको लेकर तमाम तरह के अभियान और प्रयास जारी हैं। भारत में भी जल की कमी एक गंभीर मुद्दा है। कभी वीरता के लिए प्रसिद्ध उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र हाल के दशकों में प्यास, भूख, सूखा और गरीबी का पर्याय बन गया था। लेकिन आज यह इतिहास रच रहा है, और इसका एक बड़ा श्रेय बांदा जिले को जाता है, जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने “जल संपन्न जिला” का राष्ट्रीय पुरस्कार देकर सम्मानित किया है। लेकिन बांदा जिले ने यह कमाल कैसे किया, यह एक बड़ा सवाल है। दरअसल, एक कहावत है कि “मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।” इस कहावत को बुंदेलखंड के बांदा जिले के जल योद्धा उमाशंकर पांडे ने सार्थक किया है। उन्होंने बिना किसी प्रचार और सहायता के राज्य, समाज और सरकार को साथ लेकर जल संरक्षण के क्षेत्र में मिसाल पेश की है।

Bundelkhand Water Revolution: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा

बुंदेलखंड में जल संकट का समाधान निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने “मन की बात” कार्यक्रम में बांदा जनपद और वहां के जल संरक्षण प्रयासों का उल्लेख किया है। उन्होंने समाज के उत्थान और बड़े स्तर पर बदलाव के लिए जनभागीदारी को महत्वपूर्ण बताया है। मोदी जी का मानना है कि समाज को जागृत करके ही बड़े स्तर पर प्रयास संभव हैं। इसी दिशा में बांदा में राज्य, समाज और सरकार की भागीदारी से जल संरक्षण का उत्कृष्ट प्रयास हो रहा है।

परंपरागत विधियों का पुनरुत्थान

पिछले 10 वर्षों में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बुंदेलखंड में 10,000 से अधिक तालाब बनाए गए, जिन्हें “खेत तालाब योजना” के नाम से जाना जाता है। पुरखों की विधि “खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़” को अपनाते हुए 1,00,000 से अधिक किसानों ने अपने खेतों में वर्षा का पानी रोका। इसके परिणामस्वरूप, बांदा मंडल ने उत्तर प्रदेश में गेहूं उत्पादन में रिकॉर्ड स्थापित किया और बासमती धान की पैदावार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो बुंदेलखंड के लिए एक नई शुरुआत है।

जल संरक्षण की दिशा में सरकारी पहल

प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को बांदा भेजा और जल जीवन मिशन की खटान योजना की शुरुआत की, जो एशिया की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को बुंदेलखंड में जल संकट का सामुदायिक समाधान खोजने और किसानों को पानी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। बांदा में इन प्रयासों के चलते भूजल स्तर में सुधार हुआ है और पलायन की समस्या में भी कमी आई है।

जन आंदोलन बना जल आंदोलन

उमाशंकर पांडे ने जल संरक्षण को एक जन आंदोलन का रूप दिया है। उन्होंने किसी सरकारी सहायता या एनजीओ के बिना अपने अभियान को आगे बढ़ाया और समाज को प्रेरित किया। उनकी मेहनत को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें “जल योद्धा” पुरस्कार और बुंदेलखंड की पहली पद्मश्री से सम्मानित किया। पांडे का एक ही नारा है – “खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़,” जो पूरे बुंदेलखंड में फैल गया है और अन्य जिलों को भी प्रेरित कर रहा है।

बांदा का उज्जवल भविष्य

बांदा जिले में जल संरक्षण के प्रयासों ने एक दीपक जलाया है जो भविष्य में अंधकार को दूर करने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है। अभी भी पूरी सफलता हासिल नहीं हुई है, लेकिन इस प्रयास ने अन्य जिलों को भी प्रेरित किया है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी आर पाटील और जल शक्ति सचिव देबाश्री मुखर्जी बुंदेलखंड पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, ताकि अन्य जिलों में भी जल संरक्षण के प्रभावी कदम उठाए जा सकें।

प्रधानमंत्री जी ने बुंदेलखंड की धरती पर, बांदा के कृषि विश्वविद्यालय के मैदान में चुनाव के दौरान जल संकट के समाधान के लिए जल शक्ति मंत्रालय बनाने का संकल्प व्यक्त किया था। बाद में इसी बुंदेलखंड के झांसी में उन्होंने इस मंत्रालय की स्थापना की घोषणा भी की। प्रधानमंत्री जी का पानी के प्रति गहरा लगाव है; उन्होंने गुजरात में पानी का संकट देखा और उसे सुलझाया भी। उनकी इस दृष्टि के अनुसार, देश में कोई भी प्यासा न रहे और हर खेत को पानी मिले।

इसके लिए उमाशंकर पांडे जैसे जल योद्धा की आवश्यकता है। उन्होंने सरकार की सहायता के बिना, समुदाय के सहयोग से और पुरखों की विधियों का उपयोग करके सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में जल क्रांति का उदाहरण प्रस्तुत किया है। अपने 36 साल के जल संरक्षण अभियान में उन्होंने सरकार से कोई अनुदान नहीं लिया, न ही कोई एनजीओ बनाई। उनका एक ही संदेश है – “पूरे देश में खेत पर मेड़ हो और मेड़ पर पेड़ हो।”