बॉम्बे हाईकोर्ट  ने गुरुवार ( 27 जून) को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने हालांकि कहा कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुरूप आरक्षण का प्रतिशत 16 से घटाकर 12 से 13 प्रतिशत किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, ‘हम व्यवस्था देते हैं और घोषित करते हैं कि राज्य सरकार के पास सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) के लिए एक पृथक श्रेणी सृजित करने और उन्हें आरक्षण देने की विधायी शक्ति है।’

महाराष्ट्र सरकार के फैसले को दी गई थी चुनौतीः पीठ ने कहा, ‘हालांकि, हमारा कहना है कि आयोग की सिफारिश के अनुरूप, 16 प्रतिशत को कम करके 12 से 13 प्रतिशत किया जाना चाहिए।’अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी। महाराष्ट्र विधानसभा ने 30 नवंबर 2018 को एक विधेयक पारित किया था जिसमें मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। राज्य सरकार ने इस समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित किया था। कोर्ट के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने मराठा आरक्षण पर राज्य विधानसभा में कहा कि बंबई उच्च न्यायालय ने पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार किया है। साथ ही  यह भी कहा कि आरक्षण पर 50% की सीमा को असाधारण स्थितियों में पार किया जा सकता है।

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सात याचिकाएं हुई थी दायरः यह आरक्षण राज्य में पहले से मौजूद कुल 52 प्रतिशत आरक्षण से इतर होगा। बता दें कि आरक्षण को चुनौती देने वाली सात याचिकाएं दायर हुई थीं जबकि कुछ अन्य याचिकाएं इसके समर्थन में दायर हुई थीं।