मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर 12वें साल में प्रवेश कर रहे शिवराज सिंह चौहान सियासी फलसफे में अपनी अलग पहचान रखते हैं। कड़े सुधारवादी फैसलों को कोमल तरीके से लागू करवाने में माहिर चौहान अपनी खास तरह की राजनीति के कारण जाने जाते हैं। केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद भाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में इनकी दमदार छवि सामने आई है। चौहान का दावा है कि नोटबंदी जैसे कड़े और बड़े फैसले के समय में भी जनता ने उनका खुलकर साथ दिया क्योंकि वे अपने और जनता के बीच कोई दूरी नहीं रखते, और वे पूरी तरह से लोकवादी हैं। चौहान से जनसत्ता के कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की बातचीत के मुख्य अंश :

सवाल : लोकतंत्र में सरकार की नकेल विपक्ष के हाथ में होती है। नरेंद्र मोदी ने कांग्रेसमुक्त भारत का नारा देकर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। अपने सूबे से लेकर पूरे देश में आप विपक्ष के इस अहम चेहरे (कांग्रेस) को किस तरह से देखते हैं?
जवाब : मुझे कहते हुए अफसोस है कि कांग्रेस इस समय अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो शक है कि इसका अस्तित्व भी बचेगा। हालांकि लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि देश में दो बड़े दल या मजबूत विपक्ष हो। लेकिन कांग्रेस के मौजूदा हालात में ऐसा लग नहीं रहा। कांग्रेस नेतृत्व बड़ी तेजी से न सिर्फ देश में वरन पार्टी के अंदर भी अपना आधार खोती जा रही है।
सवाल : क्या आप भी इस अवधारणा से सहमत हैं कि कमजोर विपक्ष के कारण लोगों के पास फिलहाल नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है। वैसे विकल्प के रूप में राहुल गांधी के चेहरे को आप किस तरह से देखते हैं?
जवाब : आप पिछले चुनावी नतीजों पर एक नजर डालिए। जहां-जहां भी लोगों को एक मजबूत विकल्प मिला वहां कांग्रेस दूसरे नंबर पर भी नहीं रही। क्षेत्रीय पार्टियां आगे चली गर्इं और कांग्रेस पार्टी दूसरे या तीसरे स्थान पर सरक गई। केंद्र में तो आलम यह है कि कोई विकल्प रह ही नहीं गया। राहुल गांधी तो नरेंद्र मोदी का विकल्प हो ही नहीं सकते हैं और कांग्रेस में दूसरा कोई दमदार चेहरा दिख नहीं रहा।
सवाल : लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रप अभी भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
जवाब : क्षेत्रीय पार्टियों का उदय देश की संघीय व्यवस्था के अनुरूप ही है। देश की एकता के लिए एक मजबूत दल और एक सशक्त नेता की जरूरत होती है जो भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी ने पूरी कर दी है। बहुत से स्थानीय चेहरे हैं जो प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर रहे हैं लेकिन उनके पास वह ऊर्जा और समावेशी सोच नहीं है कि वे केंद्रीय सत्ता का चेहरा बन सकें। फिलहाल नरेंद्र मौदी चुनौतियों से परे हैं।
सवाल : आपकी नीतियों पर अध्यात्म और धर्म का असर भी दिखता है। राजनीति और धर्म के गठजोड़ पर आपकी पकड़ बन गई है और इस खास छवि से आपको कोई परेशानी भी नहीं होती है।
जवाब : मेरा शासनकाल राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों पक्षों को मजबूत करने की दिशा में बढ़ रहा है। अध्यात्म भारतीय संस्कृति की ऐसी पहचान है जिसने इसे वैश्विक स्वरूप दिया है। इसलिए इस अवधारणा को सहज ही स्वीकारा जा सकता है। मैं राजनीति और अध्यात्म के गठजोड़ को समाज और संस्कृति के विकास के लिए अहम मानता हूं।
सवाल : भाजपा सरकार से ‘नागपुर’ का रिश्ता हमेशा विवादों में रहा है। सरकार में संघ की कथित भूमिका पर आपका क्या कहना है?
जवाब : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के लिए समर्पित स्वयंसेवकों का संगठन है। मुझे संघ पर सदा गर्व है। यह संगठन राष्ट्र निर्माण की दिशा में अहम योगदान देता रहा है और आगे भी देता रहेगा। हमें इससे कभी कोई दबाव झेलना नहीं पड़ता। अगर कोई प्रस्तावित नीतिगत दिशा देश या राष्ट्र के हित में है तो उसे स्वीकारने में गुरेज क्यों? फैसले सभी सक्षम संस्थाओं द्वारा वैचारिक विमर्श के बाद ही लिए जाते हैं।
सवाल : आपकी सरकार की सिंचाई और नदियों से जुड़ी परियोजनाएं पूरे देश में बहस का हिस्सा रही हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
जवाब : ‘नमामि देवी नर्मदे’ मेरी सबसे पसंदीदा परियोजना है। हमने नर्मदा और शिप्रा का जो संगम किया है उसके कारण आज मध्य प्रदेश के ग्रामीण अंचल में हरियाली लहलहा रही है। जब यह योजना शुरू की गई थी तो सिंचाई वाली महज साढ़े सात लाख हेक्टेयर ही थी जो आज बढ़ कर 40 लाख हेक्टेयर हो गई है। यह राज्य ही नहीं देश के लिए बड़ी उपलब्धि की बात है। हमने माना है कि विकास की राह पर चलने के लिए नए विचार हमारे लिए सदा महत्त्वपूर्ण रहे हैं। नए भूमि अधिग्रहण कानून के कारण भूमि अधिग्रहण संभव नहीं था, इसलिए हमने नहरें खोदने का विचार त्याग कर पाइपलाइन बिछा कर खेतों में पानी पहुंचाया। नतीजा यह है कि प्रदेश का हर किसान अब पूरे साल निर्बाध तरीके से अपने खेतों की सिंचाई कर पा रहा है।
सवाल : सरकार बनाम नौकरशाही के टकराव का आपका अनुभव क्या कहता है?
जवाब : नौकरशाह का अपना विचार होता है। उसकी अपनी सोच, कठिनाइयां और विवशताएं होती हैं। रास्ता निकालना होता है। जब मैंने लाडली लक्ष्मी योजना का प्रस्ताव किया तो नौकरशाही ने भरपूर विरोध किया। कहा, खजाना खाली हो जाएगा लेकिन मेरा संकल्प पक्का था। आज यह सबसे कामयाब योजना है जो देश के लिए आदर्श है। इसके 24 लाख लाभार्थी हैं जिसमें बच्चियों के जन्म से उनकी जिम्मेदारी में सरकार अपना योगदान करती है। सालाना 900 से 1000 करोड़ हम खर्च करते हैं। और खजाना भी महफूज है। (हंसते हुए)
सवाल : नोटबंदी की ‘कड़क चाय’ का आस्वाद आपके लिए कैसा रहा?
जवाब : निजी तौर पर मैं तो इसे अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा सुधार मानता हूं। यह योजना सफल हुई तो भारत की अंतरराष्टÑीय छवि पुख्ता होकर निखरेगी। भ्रष्टाचारमुक्त भारत एक नई साख बनाएगा। नोटबंदी के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा और मजबूत होकर निकली है। सरकार को जनता का अभूतपूर्व सहयोग मिला है।
सवाल : क्या आपको किसी तरह का राजनीतिक भय नहीं सताता?
जवाब : जी बिलकुल नहीं। मैं बेखौफ होकर अपना काम करता हूं। मेरी नजर में मेरा कोई प्रतियोगी नहीं है। जिसे जनता का साथ मिला हो, उसे किसका और काहे का भय?

सवाल : सफलता के लिए आपका नुस्खा क्या रहा है?
जवाब : मैं हमेशा से जनता के बीच का आदमी रहा हूं। संघ के रास्ते पार्टी में आया और फिर सत्ता में। संघ परिवार से निकलने के बाद मैंने सबसे पहले अपने अहंकार को तिलांजलि दी। मैं इस बात को लेकर सचेत रहता हूं कि मेरे व्यक्तित्व में ऐसा कुछ न आए जिससे कि कोई आम आदमी मेरे करीब आने से हिचके। कभी-कभी तो मैं एक दिन में लगभग बीस हजार लोगों से हाथ मिला लेता हूं। अक्सर सैकड़ों लोग मेरे साथ सेल्फी लेते हैं और उनकी जिंदगी के फ्रेम का हिस्सा होना मैं पसंद करता हूं।