भाजपा के टिकट के दावेदार पुलिस थानों पर धरने के लिए भीड़ जुटा कर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। भाजपा ने कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति और उसे संभालने में अखिलेश सरकार की विफलता के विरोध में पूरे प्रदेश में थानों पर धरने का आंदोलन चला रखा है। विधानसभा चुनाव नजदीक होने के कारण टिकट के दावेदार पूरी सक्रियता के साथ आंदोलन या अन्य किसी कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं।
पिछले दिनों इलाहाबाद में प्रधानमंत्री मोदी की रैली और फिर जौनपुर में अमित शाह के बूथ सम्मेलन में भी पांचों विधानसभा क्षेत्रों के दावेदारों ने समर्थकों के साथ बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी की थी। शहर में हर ओर स्थानीय नेताओं के होर्डिंग लगे हैं। कस्बों और बाजारों में भी यही स्थिति है। पूरी कोशिश है कि नाम काम और मेहनत नेतृत्व की नजरों में आ जाए।
टिकट की दौड़ में लगे दावेदारों की मजबूरी है कि भाजपा में ऐसा अकेला कोई खूंटा नहीं है, जिससे बंध कर टिकट को पक्का मान लिया जाए। अन्य दलों में स्थिति भिन्न है। वहां किसी एक नेता या फिर उसके परिवार को साधने से काम बन जाता है। फिर भी अगर संघ के एक तहसील प्रचारक की रिपोर्ट खराब चली गई, तो सब गुड़ गोबर। संघ के प्रचारक और अन्य पदाधिकारी हमेशा की तरह कह रहे हैं कि उनका भाजपा के कामकाज और टिकटों से कोई लेना देना नहीं है। फिर भी दावेदार उनकी कृपा के लिए सुबह शाम चक्कर काट रहे हैं। संघ स्वयंसेवक और शुभचिंतक संगठन कार्यों में सहयोग स्वरूप प्रतिवर्ष दक्षिणा देते हैं। यह योगदान गोपनीय होता है। लेकिन निजी बातचीत में संघ के सूत्र स्वीकार करते हैं कि चुनावी वर्ष में भाजपा के टिकटार्थी इस संग्रह को बढ़ा देते हैं।
पिछले दो विधानसभा चुनावों से जिले में भाजपा का खाता नहीं खुला है। पार्टी प्रत्याशी मुख्य मुकाबले में भी नहीं थे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हालात बदले हैं। फिलहाल जिले की पांचों सीटों पर सपा का कब्जा है। लोकसभा चुनाव में सुलतानपुर संसदीय सीट पर बड़े फासले से जीते वरुण गांधी ने पांचों सीटों पर बढ़त ली थी। सुलतानपुर से सांसद चुने जाने के कुछ दिनों बाद तक वरुण जिले में पार्टी की धुरी बने हुए थे। पांचों विधानसभा क्षेत्रों में उन्होंने अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए थे। संकेत यही था कि वरुण उनका नाम विधानसभा प्रत्याशी के रूप में आगे बढ़ाएंगे। लेकिन जल्दी ही वरुण गांधी की पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और कार्यकारिणी से छुट्टी के बाद सब कुछ बदल गया। एक ओर दूसरे जिलों से वरुण को पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने की मांग उठ रही थी तो दूसरी और उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र के पार्टी नेताओं ने सन्नाटा खींच लिया।
इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान वरुण गांधी को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश करने के उनके समर्थकों के होर्डिंग-पोस्टर अभियान पर नेतृत्व की टेढ़ी नजर के बाद सुलतानपुर के टिकटार्थी और चौकन्ने हो गए। टिकट के लिए संघ के पदाधिकारियों और नेताओं के यहां पैरवी में लगे दावेदार अपने को वरुण से दूर रख रहे हैं।
अपने इलाकों में होर्डिंगों में या तो वरुण की तस्वीर से परहेज कर रहे हैं या फिर छोटी तस्वीरों की बड़ी कतार में उनका भी एक चेहरा नजदीक से ढूँढ़ने पर नजर आएगा। बसपा अपने प्रत्याशी पहले तय कर चुकी है। सपा के पांचों विधायक फिर से टिकट पाने की उम्मीद लगाए हैं। भाजपा में टिकट के दावेदारों के सामने जनता का समर्थन मांगने से पहले पार्टी के भरोसे की परीक्षा पास करनी है। ये परीक्षा काफी कठिन है।