राजस्थान में पिछले साल मार्च के महीने में अशोक गहलोत सरकार ने 17 नए जिले बनाने की घोषणा की थी। जिससे प्रदेश में जिलों की संख्या 50 हो गई थी। अक्टूबर में सरकार ने तीन और नए जिले बनाने की बात कही थी, लेकिन आधिकारिक आदेश पारित नहीं किए गए थे। इसके बाद चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बन गई। अब मौजूदा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार इस नए जिलों से जुड़े मामले पर पुनर्विचार कर रही है और नए जिलों की स्थिति जानने के लिए एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया गया है।
गहलोत सरकार ने नए जिले क्यों बनाए?
राजस्थान में नए जिलों की मांग बहुत पुरानी रही है। खासकर बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, जोधपुर और बीकानेर के रेगिस्तानी इलाकों में यह मांग काफी पहले से उठती रही है। इनमें से कई इलाकों में आबादी कम है और ये बहुत बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं, जिससे लोगों के लिए ज़रूरत पड़ने पर अधिकारियों से बातचीत करना मुश्किल हो जाता है।
पिछले साल (2023) मार्च में गहलोत सरकार ने अनूपगढ़, बालोतरा, ब्यावर, डीग, डीडवाना-कुचामन, दूदू, गंगापुर सिटी, केकड़ी, कोटपूतली-बहरोड़, खैरथल, नीम का थाना, फलौदी, सलूंबर, सांचौर, जयपुर ग्रामीण, शाहपुरा और जोधपुर ग्रामीण के तौर पर नए जिलों की घोषणा की थी।
बालोतरा में तो तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत ने मदन प्रजापत को चांदी के जूते भी भेंट किए, जिन्होंने जिले के गठन की मांग को लेकर एक साल तक नंगे पैर यात्रा की थी।
भाजपा सरकार ने क्या फैसला किया है?
पिछले महीने राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष मदन राठौर ने कहा था कि राज्य सरकार गहलोत सरकार के कदम की समीक्षा कर रही है, क्योंकि कई जिलों को गलत तरीके से बनाया गया था, और कई नए जिले जिनकी जरूरत नहीं है वे जल्द ही खत्म कर दिए जाएंगे।
मई में सीएम भजनलाल ने गहलोत सरकार के इस कदम की समीक्षा के लिए उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा और उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कैबिनेट उपसमिति गठित की थी। समिति के अन्य सदस्यों में मंत्री कन्हैयालाल चौधरी, हेमंत मीना और सुरेश सिंह रावत शामिल हैं।
भाजपा सरकार ने यह भी तर्क दिया कि पिछली सरकार द्वारा बनाए गए कई नए जिले बिना मांग के ही बना दिए गए। पार्टी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस ने कभी भी जिलों के निर्माण के लिए ठोस कारण नहीं बताए। बीजेपी ने आरोप लगाया कि कई ऐसे जिले बनाए गए जिन्हें सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए बनाया गया था।
कब तक होगा फैसला?
भाजपा की ओर से यह दावा भी किया कि इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। सूत्रों के अनुसार पैनल ने अपनी रिपोर्ट पहले ही सीएम को सौंप दी है। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने यह भी कहा कि बेहतर प्रबंधन और प्रशासन के लिए सरकार जिलों की संख्या कम कर सकती है या छोटे जिलों को मिलाकर बड़े जिले बना सकती है। हालांकि, राज्य में होने वाले छह विधानसभा उपचुनावों और अगले साल होने वाले शहरी निकाय चुनावों को देखते हुए समिति की सिफारिशों पर अंतिम फैसला चुनावों के बाद ही लिया जा सकता है।