सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के दरमियान दलबदलुओं पर दांव लगाने के परहेज करने वाली भारतीय जनता पार्टी महज दो सालों में उन्हीं के भरोसे विधानसभा चुनाव की गणित बैठाने की कोशिश में है। लगातार सियासी पाला बदल कर आने वालों का इस्तकबाल कर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यह साफ कर दिया है कि उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश के भाजपाई अपने दम पर विधानसभा चुनाव का मैदान मार पाएंगे। बहुजन समाज पार्टी में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर अपनी पहचान बना पाने की जी-तोड़ कोशिश में जुटे बृजेश पाठक को सोमवार को भाजपा में शामिल करा कर अमित शाह ने उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों पर डोरे डालने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को साधने के लिए बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने वर्ष 2009 में पहली बार प्रदेश भर में साठ से अधिक ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किए थे।
इन सम्मेलनों की पूरी जिम्मेदारी सतीश चंद्र मिश्र और बृजेश पाठक को सौंपी गई थी। लेकिन इनमें से अधिकांश सम्मेलन में ब्राह्मणों की उपस्थिति खासी कम रही। पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में बसपा से ब्राह्मणों का मोह भंग होने के बाद वर्ष 2012 में हुए विधानसभा के चुनाव में भी ऐसे सम्मेलनों के सियासी सूत्र को बसपा ने दोहराया था। लेकिन उससे भी पार्टी की नैया पार नहीं हुई थी। ब्राह्मण सम्मेलनों के फ्लाप होने के बाद बहुजन समाज पार्टी में बृजेश पाठक और सतीश चंद्र मिश्र सवालों के घेरे में आ गए थे। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में भी ब्राह्मणों को बसपा के पाले में ला पाने में नाकाम होने के बाद से बृजेश पाठक को बसपा में असुविधा हो रही थी।
ऐसा ही हाल स्वामी प्रसाद मौर्य का भी बसपा में था। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में वे मौर्य मतदाताओं को बसपा के पाले में सुरक्षित रख पाने में नाकाम साबित हुए थे। लोकसभा के चुनाव में मौर्य मतदाताओं ने भाजपा का रुख कर लिया था। इस घटना के बाद से स्वामी प्रसाद मौर्य की बसपा में हालत बृजेश पाठक सरीखी ही थी। अब ये दोनों नेता भाजपाई दामन थाम चुके हैं। भाजपा को यह मुगालता है कि इन दोनों ही नेताओं के आने का लाभ उनकी उस बिरादरी के वोटों की शक्ल में मिलेगा जो पहले ही उसके पाले में आ चुकी है। इन दोनों नेताओं के अलावा जुगल किशोर भी हाथी की पीठ से उतर कर भाजपा के पाले में आ खड़े हुए हैं। उनके अलावा विधायक राजेश त्रिपाठी और सीतापुर से सपा के टिकट पर विधायक बने रामपाल यादव भी भाजपा के पाले में आने की घोषणा की प्रतीक्षा में हैं।
समाजवादी पार्टी के विधायक गुड्डू पंडित भी राज्यसभा के चुनाव के दरमियान भाजपा के पाले में खड़े होकर सपा से किनारा कर चुके हैं। उनके अलावा विधान परिषद सदस्य देवेंद्र सिंह भी भाजपा के पाले में हैं। भारतीय जनता पार्टी में इस वक्त दलबदलुओं की पौ-बारह है। जबकि सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने दलबदलुओं को सार्वजनिक तौर पर नसीहत दी थी। उन्होंने कहा था भाजपा किसी को अपना प्रत्याशी बनाने का कोई वादा नहीं करती। टिकट पाने की अभिलाषा छोड़कर अगर कोई भाजपा में आना चाहता है तो उसका स्वागत है।
दलबदलुओं के भाजपा में शामिल होने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरेंद्र मदान चुटकी लेते हैं। वे कहते हैं, अगर भाजपा उत्तर प्रदेश में ताकतवर है तो उसे किसी के सहारे की आवश्यकता ही नहीं हो सकती। दलबदलुओं को लेकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में उसकी हालत खस्ता है। इसीलिए वह हर दांव आजमाना चाहती है ताकि कोई कसर बची न रह जाय। भाजपा ऐसे लोगों को शामिल कर रही है जिन्होंने अपने दलों में रहते हुए अपनी उपयोगिता सिद्ध नहीं की। इसी वजह से उन्हें वहां से बाहर जाने के लिए विवश होना पड़ा। वहीं दलबदलुओं पर भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय बहादुर पाठक की राय अलग है। वे कहते हैं, भारतीय जनता पार्टी के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है। जनता भाजपा के साथ है। ऐसे में उनकी नुमाइंदगी करने वालों को भाजपा का दामन थामना ही होगा। आत्मविश्वास से लबरेज विजय का कहना है, अभी तो यह शुरुआत है। आगे-आगे देखिए होता है क्या?

