चुनावी मौसम में दशकों से त्रिपुरा (Tripura) के लोग सड़कों पर मार्च करते हुए वाम मोर्चे (Left Front) की रैलियों की छवियों से परिचित थे। वे “इंकलाब ज़िंदाबाद और क्रांति ज़िंदाबाद” के नारों के साथ चुनावी अभियान को हवा देते थे। इन दिनों राज्य कांग्रेस के एक लोकप्रिय चेहरे सुदीप रॉय बर्मन के पिछले सप्ताह सीपीआई (एम) के साथ एक संयुक्त मार्च के दौरान एक ही नारा बुलंद करने का दृश्य चुनावी राज्य त्रिपुरा में एक चर्चा का विषय बन गया है। राज्य में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सामने परिणाम का अंतर कम होने की चर्चा भी होने लगी है।
सीएम उम्मीदवार के नाम पर भी नजदीक आए वाम-कांग्रेस
त्रिपुरा में वाम-कांग्रेस के संयुक्त कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एआईसीसी त्रिपुरा के प्रभारी अजय कुमार ने शुक्रवार को सीपीआई (एम) के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी को दोनों दलों के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया। हालांकि दोनों राजनीतिक दल अभी भी अपने समझौते को औपचारिक चुनावी “गठबंधन” कहने में संकोच कर रहे हैं। कुमार ने कार्यक्रम में मौजूद भीड़ से पूछा, “आपकी पार्टी सीपीआई (एम) का सबसे बड़ा नेता कौन है जो आदिवासी समुदाय से है? इसका नाम क्या है?” भीड़ ने जैसे ही चौधरी का नाम लिया, कांग्रेस नेता ने कहा, “फिर मैं आपको बता रहा हूं कि आपका अगला मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय से वामपंथी होगा।”
कमांडिंग पोजिशन में है सीपीआई (एम), साथ आई कांग्रेस
दोनों उदाहरणों ने कांग्रेस के साथ समीकरण में सीपीआई (एम) की कमांडिंग स्थिति को स्वीकार करने में असामान्य तत्परता दिखाई है। इसके पीछे का एक कारण उनकी बढ़ती हुई चिंता है कि कहीं कांग्रेस के वोट वामपंथियों को आसानी से स्थानांतरित न हो जाएं। जमीन से घिरे राज्य के मैदानों और पहाड़ियों में ऐसी आशंका प्रतिध्वनित होती रहती है।
क्या सीपीआई (एम) को वोट नहीं देंग कांग्रेस के मतदाता
अगरतला में एक छोटी जल प्यूरिफायर यूनिट के मालिक दीपांकर बिस्वास कहते हैं कि माकपा के मतदाता पार्टी लाइन के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इसलिए लेफ्ट वोट 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस को ट्रांसफर हो जाएंगे, लेकिन पारंपरिक कांग्रेसी मतदाता, जिनमें से कई ने 2018 में भाजपा का समर्थन किया था, आसानी से सीपीआई (एम) को वोट नहीं देंगे। चाहे भले ही वे सत्तारूढ़ दल के प्रदर्शन से असंतुष्ट हों। ऐसा इसलिए है क्योंकि वामपंथी शासन के दौरान हुए अत्याचारों को कांग्रेस का हर मतदाता इतनी आसानी से नहीं भूल पाएगा।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के चौंकाने वाले आंकड़े
2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के चुनावी आंकड़ों के लोकनीति-सीएसडीएस विश्लेषण में ऐसा साफ दिखता है। वामपंथी और कांग्रेस द्वारा एक व्यवस्था में एक साथ चुनाव लड़े गए थे। इसलिए त्रिपुरा में विपक्षी खेमे की चिंता पूरी तरह से निराधार नहीं है। आंकड़ों के अनुसार, 2014 के आम चुनावों में वाम मोर्चे को वोट देने वालों में से 88 फीसदी ने साझेदारी का समर्थन किया था। वहीं, विश्लेषण के अनुसार 2014 में जिन लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया था, उनमें से 24 फीसदी ने 2016 में तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया था।
केरल में कुश्ती, त्रिपुरा में दोस्ती, लेफ्ट और कांग्रेस पर पीएम मोदी का हमला
त्रिपुरा कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “हम लोगों को यह समझाने की कोशिश में अतिरिक्त मील चल रहे हैं कि उन्हें बीती बातों को जाने देना चाहिए क्योंकि भाजपा एक बुरी ताकत है।” हालांकि, चुनाव प्रचार के दिनों में कांग्रेस के किसी भी शीर्ष नेता ने अब तक राज्य में कदम नहीं रखा है। दूसरी ओर सत्तारुढ़ भाजपा के सबसे बड़े नेताओं ने भी प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। राज्य के धलाई जिले में शनिवार को एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा, “ये पार्टियां केरल में कुश्ती करती हैं और यहां दोस्ती करती हैं। उन पर कैसे भरोसा किया जा सकता है?”
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त्रिपुरा में सत्तारुढ़ भाजपा की चिंता क्यों बढ़ी
इस सबके बावजूद पिछले प्रतिद्वंद्वियों के बीच की आपसी समझ ने भाजपा नेताओं के बीच बेचैनी की भावना पैदा कर दी है। त्रिपुरा भाजपा के एक सीनियर नेता ने कहा, “पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) के पतन और इसकी त्रिपुरा इकाई की स्थिति के बीच अंतर है। 2018 के त्रिपुरा चुनावों में लेफ्ट को 42.22 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी को 43.59 फीसदी वोट मिले थे। कई सीटों पर हमारी जीत का अंतर बहुत कम रहा। त्रिपुरा वह जगह है जहां गठबंधन कई गणनाओं को उलट सकता है।”