भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) महाराष्ट्र में बृह्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) समेत कई अहम नगर निकाय चुनावों में अपने प्रदर्शन को ऐतिहासिक बनाने के लिए शिवसेना के साथ गठबंधन की रणनीति को सावधानीपूर्वक देख रही है।
कई सूत्रों का मानना है कि भाजपा 15 जनवरी को होने वाले चुनावों के लिए 227 सदस्यीय बीएमसी में शिवसेना को 60 से अधिक सीटें नहीं देना चाहती जबकि उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली पार्टी इससे अधिक सीटों से लड़ने को इच्छुक है। इधर पड़ोसी ठाणे जिले में राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं, इससे स्थिति और जटिल हो रही। ठाणे को शिंदे का राजनीतिक गढ़ माना जाता है लेकिन यहां भाजपा लगातार अपनी विस्तार में जुटी हुई है।
पहले बीजेपी के नेता अकेले लड़ना चाहते थे चुनाव
शुरुआत में भाजपा के भीतर भी अधिकतर नेता मुंबई महापलिका चुनावों में अकेले उतरने की वकालत कर रहे थे। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस सहित वरिष्ठ नेताओं ने स्थानीय निकाय चुनावों को बार-बार पार्टी कार्यकर्ताओं के चुनाव के रूप में बताया था, जिससे यह लगा कि भाजपा अकेले यह चुनाव लड़ेगी। हालांकि, हाल ही में संपन्न हुए नगर परिषद और नगर पंचायत चुनावों से संबंधित कुछ आंतरिक सर्वे और प्रतिक्रियाओं के बाद यह रुख नरम पड़ता दिख रहा है। कारण यह रहा कि इन चुनावों में शिंदे गुट की शिवसेना ने कोंकण मंडल में भाजपा से अधिक सीटें जीतीं।
कई जगह शिवसेना को बढ़त
भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक के मुताबिक, पार्टी ने कई इलाकों में शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के लिए भारी समर्थन देखा। उन्होंने कहा, “हमने देखा कि मुंबई के कुछ इलाकों में, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की बड़ी आबादी वाले क्षेत्रों में भाजपा का प्रतिरोध हो रहा है और शिवसेना पर लोग भरोसा जता रहे हैं।”
देश में सबसे धनी निकाय है बीएमसी
भाषा के मुताबिक विधायक ने कहा, “महानगर पालिका चुनावों में, उम्मीदवारों का व्यक्तिगत जुड़ाव, उनकी सुलभता और स्थानीय छवि अक्सर पार्टी संबद्धता से अधिक मायने रखती है। मतदाता उन व्यक्तियों का समर्थन करते हैं जिन्हें वे जानते हैं और जिन पर वे भरोसा करते हैं।” बता दें कि बीएमसी देश के सबसे बड़े और सबसे धनी नगर निकाय है, जिसका सालाना बजट 74,000 करोड़ रुपये से अधिक है।
बीजेपी को सताने लगा ये डर
भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि दोनों पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो शिवसेना को बीएमसी के सभी 227 वार्डों में चुनाव लड़ने का अवसर मिलेगा, जिससे पार्टी को उन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिल सकती है जहां वर्तमान में वह कमजोर है है। उन्होंने कहा, “अकेले चुनाव लड़ने में भी जोखिम होते हैं। अगर कुछ वार्डों में भाजपा के उम्मीदवार कमजोर पड़े, तो इससे शिवसेना को फायदा हो सकता है। समय के साथ इससे शिवसेना की अपनी बात मनवाने की ताकत न केवल नगर निकायों में बल्कि भविष्य के विधान परिषद और विधानसभा चुनावों में भी बढ़ सकती है।”
वहीं मुंबई के एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “गठबंधन की स्थिति में, वार्ड आवंटन और टिकट वितरण में भाजपा का पलड़ा भारी रहने की संभावना है। अगर महायुति के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत या पाला बदलने जैसी स्थिति होती है तो शिवसेना नेतृत्व को जवाबदेह ठहराना भी उनके लिए आसान होगा।”
शिवसेना में दिखी बेचैनी
हालांकि, इन रणनीतिक विचारों के कारण शिवसेना के भीतर साफ तौर पर बेचैनी देखने को मिल रही है। मुंबई भाजपा अध्यक्ष अमित साटम और पार्टी के राज्य मंत्रिमंडल मंत्री आशीष शेलार ने 16 दिसंबर को पूर्व सांसद राहुल शेवाले और विधायक प्रकाश सर्वे सहित शिवसेना नेताओं के साथ चुनावी गठबंधन को लेकर बातचीत की थी। बैठक के तुरंत बाद शिवसेना के नेताओं ने व्यक्तिगत तौर पर बातचीत के प्रति भाजपा के दृष्टिकोण पर असंतोष व्यक्त किया था।
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