Bihar Election 2025: साल था 2014, बीजेपी ने लोकसभा चुनाव को लेकर तैयारी शुरू कर दी थी। उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। उस चुनाव में उत्तर प्रदेश की कमान जहां वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह को दी गई, तो वहीं बिहार चुनाव की कमान अमित शाह और नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद सहयोगी धर्मेंद्र प्रधान को सौंपी गई। जिसका परिणाम चुनाव के बाद आया, जब एनडीए को यूपी की 80 में से 73 और बिहार की 40 में से 31 सीटों पर प्रचंड जीत मिली। यूपी और बिहार की 120 लोकसभा सीटों में से एनडीए गठबंधन को 104 सीटों पर मिली जीत के दम पर केंद्र में नरेंद्र मोदी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इसी तरह एक बार फिर आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने धर्मेंद्र प्रधान को बिहार चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया है।
प्रधानमंत्री मोदी के भरोसेमंद साथियों में गिने जाने वाले केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को बिहार चुनाव का प्रभारी नियुक्त किया गया है। उनके साथ उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल को सह प्रभारी बनाया गया है। आइए समझते है बीजेपी के नवनियुक्त चुनाव प्रभारियों के पीछे की चुनावी रणनीति।
बिहार चुनाव से है प्रधान का पुराना नाता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से निकले धर्मेंद्र प्रधान को बीजेपी का ‘संकट मोचक’ कहा जाता है। इसके पीछे की बड़ी वजह बताई जाती है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनके अच्छे संबंध हैं। साल 2012 में वो बिहार से राज्यसभा भी जा चुके हैं। वहीं उनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे देबेंद्र प्रधान के भी व्यकितगत संबंध नीतीश कुमार के साथ रहे हैं। इसके साथ ही प्रधान का राजनीतिक रिकॉर्ड भी काफी बेहतर रहा है। बीजेपी ने जिस भी राज्य की जिम्मेदारी उनके कंधों पर सौंपी, वो उतनी ही मजबूती के साथ वहां प्रदर्शन करते नजर आए हैं। अब इस बार लड़ाई राजद और कांग्रेस के साथ हैं।
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हालांकि इससे पहले भी प्रधान अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। साल 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी प्रधान सह-प्रभारी थे। उस चुनाव में बीजेपी और एनडीए को बिहार में अबतक की सबसे बड़ी जीत मिली थी। राज्य की 243 सीटों में से बीजेपी को जहां 91 सीटों पर जीत मिली, वहीं एनडीए को 206 सीटों जीत मिली थी।
ओडिशा में पहली बार बीजेपी को दिलाई सत्ता
अपने गृह राज्य ओडिशा में पहली बार बीजेपी को प्रदेश की सत्ता दिलाने का श्रेय भी प्रधान को ही दिया जाता है। क्योंकि 2024 के चुनाव में वो लोकसभा और विधानसभा दोनों के प्रभारी थे। इस चुनाव में जहां बीजेपी को लोकसभा की 21 में से 20 सीटों पर जीत मिली। वहीं विधानसभा की 147 सीटों में बीजेपी को 78 सीटों पर जीत मिली और इसी के साथ बीजेपी को अपने दम पर पहली बार राज्य की सत्ता हासिल हुई।
हरियाणा में बीजेपी को दिलाई सबसे बड़ी जीत
2024 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद पहला विधानसभा का चुनाव हरियाणा और महाराष्ट्र में हुआ। जिसमें से हरियाणा की जिम्मेदारी प्रधान के कंधे पर आई। चुनाव के दौरान ऐसी स्थिति लग रही थी कि बीजेपी और कांग्रेस में कड़ी टक्कर है। वहीं कांग्रेस जीत की पूरी तैयारी कर चुकी थी। इसके पीछे की वजह ये थी कि कुछ महीने पहले ही लोकसभा के हुए चुनाव में राज्य की लोकसभा में बीजेपी की संख्या आधी हो गई थी। ऐसे में प्रधान ने अपने चुनावी रणनीति के दम पर न केवल पार्टी को जीत दिलाई, बल्कि राज्य में हरियाणा को अबतक की सबसे बड़ी जीत दिलाते हुए 48 सीटें पार्टी की झोली में डाल दिया।
यूपी में योगी के मैजिक को बनाया हथियार
साल 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान धर्मेंद्र प्रधान को प्रभारी बनाया गया था। उस चुनाव में बीजेपी को राज्य की 403 में से 255 सीटों पर जीत मिली थी। इस चुनाव में उन्होंने देश और प्रदेश के नेतृत्वकर्ता मोदी-योगी के मैजिक को मजबूती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे पहले साल 2017 में उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव होने थे। इस चुनाव की जिम्मेदारी प्रधान को सौंपी गई। इस चुनाव में उन्होंने न केवल बीजेपी को सत्ता दिलाई बल्कि केंद्र और राज्य में डबल इंजन की सरकार बनाने का रास्ता साफ कर दिया।
रणनीतिक कौशल से दी ममता बनर्जी को पटखनी
साल 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधान ने अपनी रणनीतिक कौशल से राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पटखनी दी थी। दरअसल धर्मेंद्र प्रधान को नंदीग्राम विधानसीट का प्रभारी नियुक्त किया गया था जहां पर ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी के बीच लड़ाई थी। इस चुनाव में ममता बनर्जी को हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही बीजेपी पहली बार राज्य में बड़ी संख्या में सीटें जीतकर मुख्य विपक्ष दल बनी।
लव-कुश समीकरण के तहत केशव पर दांव
बिहार चुनाव को लेकर प्रधान के सहयोगी नियुक्त किए गए केशव मौर्य बीजेपी के बड़े ओबीसी चेहरा माने जाते थे। केशव जिस जाति से आते हैं उसका एक बड़ा वोट बैंक बिहार में भी है। ऐसा माना जाता है कि बिहार में नीतीश कुमार के बड़े वोट बैंक में लव-कुश समीकरण का प्रमुख योगदान माना जाता है। दरअसल कुर्मी और कोइरी जाति को लव-कुश माना जाता है। क्योंकि भगवान राम के पुत्र लव-कुश को लेकर कुर्मी और कोइरी जाति के लोग वारिश होने का दावा करते हैं। नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं, वहीं केशव कोइरी जाति से आते हैं। यानी बीजेपी एक तीर से दो निशाना साध रही है।
इसके अलावा केशव मौर्य के चुनाव प्रबंधन की बात करें तो साल 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ा गया था। क्योंकि उस चुनाव के दौरान केशव ही राज्य बीजेपी के अध्यक्ष थे। इस चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से 312 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई।
गुजरात में सबसे बड़ी जीत दिलाने वाले शख्स पाटिल
बिहार चुनाव में सह प्रभारी केशव मौर्य और सीआर पाटिल बनाए गए हैं। सीआर पाटिल वर्तमान में मोदी कैबिनेट का हिस्सा हैं। वो पूर्व में बीजेपी गुजरात इकाई के अध्यक्ष रह चुके हैं। पाटिल के नेतृत्व में ही गुजरात बीजेपी को सबसे बड़ी जीत मिली थी। 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान पाटिल ही बीजेपी के अध्यक्ष थे। इस दौरान संगठन का जिम्मा उनके पास था। राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 156 सीटों पर प्रचंड जीत मिली।