हर पुराने शहर की पहचान एक नदी से जुड़ी होती है। ज्यादातर शहर किसी नदी के किनारे ही बसे हैं। दिल्ली की पहचान भी यमुना नदी से जुड़ी थी, लेकिन विकास की पटरी पर दौड़े इस शहर ने अपनी जीवनदायिनी यमुना की सांसें ही रोक दीं। अब जब यमुना अपनी आखिरी सांसें ले रही है तो इसका अस्तित्व बचाने की होड़ मची है। शोध बताते हैं कि साल भर पानी का बहाव बनाए रखे बिना यमुना का साफ होना असंभव है। इसके लिए यमुना में गंदगी डालने से रोकना पहली शर्त है। सालों में अरबों रुपए बहाकर भी यमुना का पानी पीना तो दूर सिंचाई के लायक भी नहीं हो पाया है।
दिल्ली के 22 प्रमुख नालों समेत सैकड़ों गंदे नालों, सीवर और औद्यौगिक कचरों को साफ करके केवल उसके पानी को ही यमुना में ले जाने के प्रयोग के तहत अभी करीब दो हजार करोड़ की लागत से एक जापानी कंपनी की सहायता से इंटरसेप्टर लगाया गया है। इसके बावजूद अभी बेहतर नतीजे न निकल पाने के कारण दिल्ली के जल संसाधन मंत्री कपिल मिश्र ने कपूरथला के बाबा बलबीर सिंह सीजेवाल का अनुसरण करने का दावा किया। वैसे इसे पंजाब विधानसभा चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है। जापान की ही कंपनी बीग बायो के साथ मिलकर काम करने वाली यूएस एन्वायरान के अधिकारियों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से मिलकर जैविक ब्लाक बनाकर गंदे नालों की सफाई करने की पेशकश की है। कंपनी का दावा है कि कम लागत में महज साल भर में यमुना में गिरने वाले सभी नालों को साफ किया जा सकता है।
कंपनी के प्रबंध निदेशक (एमडी) यूएस शर्मा ने पटना में गंगा नदी में गिरने वाले बाकरगंज नाले की इस तकनीक से हो रही सफाई का पायलट प्रोजेक्ट भी उन्हें दिखाया। यह काम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की मंजूरी से हो रहा है। कंपनी का दावा है कि गंगा में गिरने वाले 140 नालों को दो साल में साफ किया जा सकेगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने उन्हें तकनीकि अध्ययन के बाद काम सौंपने का भरोसा दिया। शर्मा बताते हैं कि इस तकनीक में ज्वालामुखी की राख से तैयार किए गए इको बायो ब्लाक नालों में एक निश्चित दूरी पर डाले जाते हैं। नाले का गंदा पानी उससे टकराता है।
उस रसायन में 20 तरह के जीवाणु होते हैं जो पानी के संपर्क में आते ही सक्रिय हो जाते हैं। इसे एरोबिक तकनीक कहा जाता है। शर्मा बताते हैं कि प्रदूषित पानी इन जीवाणुओं का भोजन होता है। ये जीवाणु 10 से 70 डिग्री सेल्सियस तापमान में पानी साफ करते हैं। एक बार ब्लाक बनाने पर दस साल तक चाहे नाले में जितनी भी गंदगी होगी वह साफ होती जाएगी।
उनका दावा है कि चरणबद्ध तरीके से या एक साथ सभी 18 नालों, सीवरों में काम किया जा सकता है। साफ करने में अधिकतम सात सौ करोड़ रुपए और साल भर का समय लगेगा। दस साल बाद इस प्रक्रिया को दोहराना तभी पड़ेगा जब वापस उसी हाल में नाले हो जाएंगे।
अगर गंदगी यमुना में जाने से रुक जाए और एक निश्चित मात्रा में पानी हर समय यमुना में रहे तो पानी के बहाव के साथ स्वाभाविक गंदगी दूर हो जाएगी। उनका दावा है कि जापान समेत कई देशों में इसके सफल प्रयोग हो चुके हैं। यूएस एन्वायरान कंपनी का दावा है कि वह एक साथ देश की दोनों प्रमुख नदियों में गिरने वाले नालों को साफ करने की क्षमता रखती है।
यमुना नदी के गंदे नाले में बदल जाने से दिल्ली में पानी की भारी किल्लत हुई है। राजधानी में यमुना 48 किलोमीटर बहती है। सबसे ज्यादा गंदगी वजीराबाद से ओखला तक 22 किलोमीटर के इलाके में है। इसी बीच में 18 बड़े नालों से सीवर और गंदगी सीधे यमुना में गिरते हैं। गंदगी की वजह से यमुना का स्वाभाविक प्रवाह रुक गया है। औद्यौगिक कचरों के गिरने से इसका पानी जहरीला हो गया है। इसके पानी की सिंचाई से पैदा साग-सब्जियां भी प्रदूषित हो रही हैं। यह दिल्ली के लोगों में कैंसर का बड़ा कारण माना जा रहा है।
आजादी के पहले यमुना ही दिल्ली को पीने का पानी उपलब्ध कराती थी। वास्तव में दिल्ली की पहचान यमुना थी। यमुना को साफ करने के नाम पर सालों से हो रहे प्रयोगों में अब एक प्रयोग यूएस एन्वायरान भी करना चाहती है। कंपनी ने दिल्ली के मयूर विहार में एक नाले की सफाई शुरू कर दी है ताकि दिल्ली और केंद्र सरकार को उसके दावों पर पूरा यकीन हो जाए। कंपनी का दावा है कि साफ करने के बाद यमुना का पानी पीने लायक हो जाएगा।