आयुर्वेद में बीमार होने के बाद इलाज के अलावा बीमारी से बचाव के भी इंतजाम हैं। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली कई औषधियां व जड़ी-बूटी उपलब्ध हैं। ऐसी ही एक औषधि है जिसे स्वर्ण प्राशन कहते हैं। इसे सनातन धर्म में 16 संस्कारों में से एक से जोड़ा गया है। हम आपको स्वर्ण प्राशन और इससे होने वाले फायदों के बारे में बताएंगे।
आयुर्वेद में स्वर्ण प्राशन क्या है?
वैद्य श्याम सुंदर शर्मा बताते हैं कि स्वर्ण प्राशन एक आयुर्वेदिक औषधि है। यह मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली और मष्तिष्क को मजबूत बनाती है। बच्चों के समग्र स्वास्थ्य में सुधार के लिए स्वर्ण प्राशन को सोलह विशिष्ट संस्कारों में से एक माना जाता है। बच्चों में स्वर्ण प्राशन को प्रारंभिक अवस्था में ही अपनाना चाहिए। यह बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का एक प्रभावी तरीका है। बच्चों के मस्तिष्क विकास और सर्वांगीण विकास के लिए यह अनूठी गुणकारी औषधि है।
स्वर्ण प्राशन कैसे बनाया जाता है?
यह औषधि मधु, गाय के घी या औषधीय घृत (ब्राह्मी घृत) के साथ मिलाकर सोने के भस्म से तैयार की जाता है। इस औषधि को बनाने में कम से कम आठ-दस घंटे लगते हैं। वैद्य शर्मा ने बताया कि यह औषधि 24 कैरेट सोने से बनाई जाती है। इसमें 99.0 फीसदी सोने के कण होते हैं। रसशास्त्र के शास्त्रीय ग्रन्थों में इसके निर्माण की कई विधियों का उल्लेख है।
स्वर्ण प्राशन संस्कार क्या होता है?
सनातन धर्म में 16 संस्कार माने गए हैं। स्वर्ण प्राशन संस्कार उनमें से एक है। यह 16 वर्ष की उम्र तक कभी भी कराया जाता है, लेकिन जन्म के बाद जितना जल्दी करा लिया जाए उतना अच्छा होता है। स्वर्ण प्राशन संस्कार आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की अमूल्य धरोहर माना जाता है। इसका मकसद बच्चों को मौसमी बीमारियों से बचाना है। इसका उद्देश्य शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना और दिमाग का विकास करना है, इसलिए जितनी जल्दी करा लिया जाए उतना अच्छा।
स्वर्ण प्राशन संस्कार किस मुहूर्त में कराया जाना चाहिए?
इसके लिए पुष्य मुहूर्त को सबसे अच्छा माना गया है। ज्योतिष गणना के मुताबिक 27 नक्षत्र होते है। उसमें आठवां नक्षत्र पुष्य नक्षत्र है। पुष्य का मतलब पोषण से है। यह मनुष्य और जड़ीबूटियों का पोषण करता है। इस वजह से स्वर्ण प्राशन के लिए पुष्य नक्षत्र को सबसे ज्यादा असरकारी माना गया है।
