नीतीश कुमार को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। ऐसे ही वो 8वीं बार सीएम नहीं बने। अपनी सहूलियत के हिसाब से ही वो दोस्त का चुनाव करते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। नीतीश ने बीजेपी को गच्चा देने की स्क्रिप्ट तभी तैयार कर ली थी जब AIMIM के विधायक राजद में शामिल हुए। हालांकि तब उन्होंने ऐसा कोई आभाष नहीं दिया था। लेकिन जब अचानक बीजेपी को दरकिनार कर राजद से हाथ मिलाया तो लगने लगा कि नीतीश पहले से ही भगवा दल को छोड़ने का मन बना चुके थे।
कूमी कपूर लिखती हैं कि 2020 चुनाव के बाद से नीतीश कुमार बेहद परिपक्व होते दिखे। बीजेपी ने उन्हें ठिकाने लगाने के लिए चिराग पासवान को आगे किया। राम विलास पासवान के बेटे ने नीतीश की जदयू के खिलाफ अपने कैंडिडेट मैदान में उतारे। हालांकि चुनावी परिणाम सामने आने के बाद से राजद और जदयू के पास अपनी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त विधायक थे। तेजस्वी इसके लिए उत्सुक भी थी लेकिन नीतीश अपनी गोट खेलते दिखे।
नीतीश को पता था कि बीजेपी एक ऐसा दुश्मन है जिसे चाहे अनचाहे काउंटर नहीं किया जा सकता। उन्हें पता था कि जब तक वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर रहेगी तब तक सरकार बनाने की बात भी सोचना बेमानी है। क्योंकि राज्यपाल फागू सिंह चौहान भगवा दल को ही सरकार बनाने का न्यौता देते। ध्यान रहे कि 2020 चुनाव के बाद बीजेपी ने तमाम छोटे दलों के साथ निर्दलीयों को शामिल कर लिया था। हालांकि चुनाव के बाद राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी पर तिकड़म से बीजेपी आगे हो गई।
उसके बाद ओवैसी के चार विधायक राजद में शामिल हो गए। मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि AIMIM चीफ इस घटनाक्रम से सकते में थे। लेकिन बिहार के एक नेता बताते हैं कि सब कुछ सोचसमझकर और ओवैसी की सहमति से हुआ था। सारे खेल के सूत्रधार खुद नीतीश कुमार थे। उन्हें पता था कि चार विधायकों के राजद में शामिल होने के बाद बीजेपी नंबर दो हो जाएगी।
उसके बाद भगवा दल को झटका लगा, क्योंकि अब कोई राजनीतिक उथल पुथल होने की स्थिति में राज्यपाल के पास कोई चारा नहीं बचा। उन्हें थक हारकर राजद को ही सरकार बनाने का न्यौता पहले देना पड़ता। सही समय देखकर उन्होंने वार किया और बीजेपी चारों खाने चित हो गई। चाहकर भी वो कुछ नहीं कर सकी, क्योंकि नीतीश ने उनके लिए कोई मौका ही नहीं छोड़ा।