दिल्ली से बिहार आने-जाने वाली ट्रेनों का बड़ा बुरा हाल है। ट्रेनों की लेट लतीफी से मुसाफिर परेशान हैं। ठंड में तो कोहरे की वजह से लेकिन अब पता नहीं किस वजह से ट्रेनें काफी लेट चल रही हैं। कोहरा की वजह से रदद् की गई 38 ट्रेनें भी अबतक फिर से शुरू नहीं की जा सकी हैं। लेट लतीफी के अलावा रेलयात्रा करने वाले मुसाफिरों को कई मुसीबतों से जूझना पड़ता है। जेबकतरों से ज्यादा चूहों और तिलचट्टों से सतर्क रहना मजबूरी बन गई है। स्लीपर के साथ-साथ वातानुकूलित कोच में भी रातभर चूहे कबड्डी खेलते हैं। तरीके से सोना तो दूर मुसाफिर सामान भी सिर के नीचे रख रात काटते हैं। बेटिकट लोगों का इन कोचों पर जबरन कब्जा रहता है, सो अलग। इन्हें न तो कोच टीटीई और न ही आरपीएफ के जवान टोकने तक की जहमत उठाते हैं। अब तो पैसा वसूली में आरपीएफ भी जीआरपी का कान काट रही है। ट्रेनों की लेट लतीफी तो सालों से बरकरार है। ‘प्रभु’ ही जानें कब सुधार होगा?
एक बार प्रसिद्ध कवि स्वर्गीय शरद जोशी बिहार आकर “नरभसा ” गए थे। उन्होंने अपनी यात्रा वृतांत में ये लिखा था। उसी तरह बीते साल जाने माने पत्रकार संजय कुमार सिंह भागलपुर आकर “नरभसा ” गए। उन्होंने भी फेसबुक पर लिखा था। फिर ठीक एक साल बाद यात्रा को याद कर रेल मंत्रालय को इन्होंने कोसा है। अभी बीते हफ्ते संवाददाता ने भी भागलपुर से दिल्ली और दिल्ली से भागलपुर का सफर तय किया है। ब्रह्मपुत्र मेल ट्रेन से जाने में 17 घंटे लगे और आने में मालदा टाउन न्यू फरक्का एक्सप्रेस ट्रेन 7 घन्टे की देरी से गंतव्य तक पहुंची। बाकी ट्रेनों की लेट लतीफी का भी यही सिलसिला है। पता नहीं बिहार से दिल्ली आने-जाने वाली ट्रेनों के साथ रेल मंत्रालय यह दोहरा बर्ताव क्यों कर रहा है। यहां के सांसदों का ध्यान इस ओर अब तक क्यों नहीं गया। दिल्ली की मीडिया भी मौन है। यात्री संघ ने रेलवे से इस मामले में पत्र लिखा है।
भागलपुर रेलखंड मालदा डिवीजन का हिस्सा है। इस डिवीजन की ट्रेनों का तो और बुरा हाल है। भागलपुर से आनंद विहार के बीच चलने वाली विक्रमशिला एक्सप्रेस, मालदा टाउन से नई दिल्ली के बीच चलने वाली न्यू फरक्का एक्सप्रेस, भागलपुर से सूरत के बीच सूरत एक्सप्रेस, लोकमान्य तिलक मुंबई एक्सप्रेस, वनांचल एक्सप्रेस रांची, रांची एक्सप्रेस, जमालपुर-हावड़ा एक्सप्रेस, आनंद विहार के लिए गरीब रथ, यशवंतपुर बेंगलूर एक्सप्रेस, ब्रह्मपुत्र मेल सरीखी महत्वपूर्ण ट्रेनें भागलपुर से रवाना होती हैं लेकिन शायद ही कोई ट्रेन अपने निर्धारित समय पर चलती हो। खासकर विक्रमशिला और ब्रह्मपुत्र, गरीब रथ की तो दुर्गति है।
यूँ कहें कि दिल्ली से आनेवाली सभी ट्रेनों की समय सारिणी रोजाना फेल हो रही है। सफर करनेवाले मुसाफिर का सारा कार्यक्रम बिगड़ जाता है। इस रूट पर सबसे ज्यादा दिक्कत नौकरी के लिए या व्यापार के लिए रोजाना सफर करनेवाले मुसाफिरों को है क्योंकि इस रूट पर लोकल या पैसेंजर ट्रेनें नहीं है, जो घंटे-घंटे पर भागलपुर-जमालपुर या भागलपुर-साहिबगंज स्टेशनों के बीच चले। नतीज़तन एक्सप्रेस ट्रेनों पर ऐसे यात्रियों का कब्जा लाजमी है। इसी वजह से इनसे अक्सर टकराव की नौबत बनी रहती है। रेलवे बोर्ड इनकी सालों पुरानी मांग पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। इस रेलखंड पर चलनेवाली ट्रेनों के कोच की सफाई की भी बड़ी समस्या है। मुसाफिरों को पुरानी दागदार चादर इस्तेमाल को दे दी जाती है। कंबल बदबू देता है। लगता है इनकी ठीक से सफाई नहीं होती और न ही कोई जांच अधिकारी इनका मुआयना करता है। या फिर जानबूझ कर नज़रअंदाज कर दिया जाता है। कोच अटेंडेंट पी कर धुत्त रहते हैं। इनसे मुंह लगाना अपनी इज्जत खराब करना है।

दरअसल, मालदा डिवीजन की तमाम स्टेशनों को जीआरपी और आरपीएफ ने ठेके पर दे रखा है। ठेकेदारों का काम अवैध वेंडरों को ट्रेनों और स्टेशनों पर सामान बिक्री की इजाजत देना और नाजायज वसूली करना है। इनकी मिलीभगत जेबकतरों से भी रहती है। इसके एवज में ठेकेदार जीआरपी और आरपीएफ को मोटी रकम बतौर महीना देते हैं। हाल में ही एक व्यापारी मालदा से भागलपुर सिल्क धागे की कई गांठें लेकर आया था जिसे आरपीएफ ने पकड़ ली। ये गांठें बाकायदा रेलवे में बुक कराई गई थी, उसकी रसीद भी थी, व्यापारी ने बिल्टी भी दिखाई। फिर भी आरपीएफ जवानों ने व्यापारी को तंग-परेशान कर हजारों रुपये ऐंठ लिए। इन करतूतों को कोई देखने वाला नहीं है। ट्रेनों में औरतों के साथ छिनतई और बदसलूकी की वारदात तो अक्सर होती रहती है। कई मामलों में तो आरपीएफ जवान की संलिप्ता सामने आती है। आरपीएफ थाना और बैरक गुंडई का अड्डा बना है। टिकट के दलालों से भी इनकी सांठगांठ रहती है। ठेकेदारों की दादागिरी की वजह से ही स्टेशन का पूरा परिसर ठेले, गुमटी और अवैध वेंडरों से इस कदर घिरा है कि प्लेटफार्म पर बगैर धक्का-मुक्की के मुसाफिर अंदर प्रवेश नहीं कर सकते।
इसके अलावे ट्रेनों में सफर के दौरान अवैध वेंडरों की लगातार आवाजाही मुसाफिरों का चैन छीन रही है। इतना ही नहीं ऊपर से बेटिकट यात्रियों की रेलमपेल रिजर्व कोच की हालत ही बिगाड़ देता है। वातानुकूलित कोच भी इससे अछूते नहीं हैं। ऐसे लोग सीटों पर जबरन कब्जा कर बैठ जाते हैं और मोबाइल पर फूहड़ गाने बजा फब्तियां कसते हैं। यह दर्द मालदा डिवीजन के मुसाफिरों का ही नहीं बल्कि दानापुर और आसनसोल रेल डिवीजन के मुसाफिरों का भी है। मालदा रेलखंड की स्टेशनों के स्टॉल पर बिकनेवाले सामान उचित कीमत पर नहीं बेचे जाते। रेट पर कोई काबू नहीं है। पूड़ी सब्जी के स्टॉल पर चिप्स और कुरकुरे बिक रहे हैं। पूड़ी सब्जी गायब है। रेल नीर की जगह दूसरे ब्रांड की पानी की बोतलें बेची जा रही हैं। भोजनालय स्टॉल पर खाने का सामान खुल्ला पड़ा है। पेंट्री कार का भी यही हाल है। टीटीई खुलेआम पैसे ले ट्रेनों में बर्थ आवंटित कर दे रहे हैं। वेटिंग या आरएसी वाले खुशामद करते सफर काटने को मजबूर हैं।
मजे की बात कि अक्सर डीआरएम या रेलवे के दूसरे बड़े अफसर दौरे पर आते हैं। मगर चल रहा खुला खेल इनको क्यों नहीं नज़र आता। यह समझ से परे है। अब इन आरपीएफ वालों की नकेल कसने की ज्यादा जरूरत महसूस की जा रही है। वरना इनकी भेड़िये की नज़र की वजह से टकराव का खतरा बना है। यहां के यात्री संघ ने दिल्ली में आरपीएफ के महानिदेशक से मिलकर महिला हिफाजत की मांग की है।