शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल (LJD)का राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में विलय पर बवाल मच गया है। एलजेडी के कई नेताओं ने विलय के फैसले पर सवाल उठाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसा पार्टी फोरम में बगैर चर्चा और एलजेडी के नियम का अनुपालन किए बिना किया गया। पार्टी की एकमात्र कार्यात्मक शाखा एलजेडी केरल इकाई के नेता रविवार को आयोजित विलय से दूर रहे। ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि विलय के बाद शरद यादव की नजर राज्यसभा सीट पर है।

ईकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार एलजेडी केरल इकाई के अध्यक्ष एमवी श्रेयम्स कुमार ने कहा, “राजद के साथ एलजेडी के तथाकथित विलय की घोषणा शरद यादव ने हमारी जानकारी के बिना की थी। इस मामले पर पार्टी में कोई चर्चा नहीं हुई थी। एलजेडी के संविधान के अनुसार, हमारी पार्टी के किसी अन्य पार्टी के साथ विलय पर कोई भी निर्णय राष्ट्रीय कार्यकारिणी और 75% सदस्यों से प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद ही लिया जा सकता है। इस मामले में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की कोई बैठक नहीं बुलाई गई थी। ”

विलय पर सवाल उठाते हुए श्रेयम्स कुमार ने कहा कि अब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की मांग की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि एलजेडी केरल में एलडीएफ का घटक दल बना रहेगा। एलजेडी के राष्ट्रीय महासचिव वर्गीज जॉर्ज ने कहा कि उनके और केरल के सहयोगियों सहित पार्टी के कई पदाधिकारी विलय को लेकर कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। इसका कारण है कि एलजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने न तो चर्चा की और न ही किसी विलय को मंजूरी दी।

वर्गीज जॉर्ज ने यह भी कहा कि एलजेडी के संविधान के अनुसार किसी भी विलय के प्रस्ताव को न केवल राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समक्ष उठाना चाहिए बल्कि पार्टी इकाइयों को उनके विचारों के लिए भी भेजा जाना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने कहा कि पार्टी केरल इकाई पहले से ही एलडीएफ का हिस्सा है। ऐसे में राज्य की पार्टी यूनिट और एलडीएफ दोनों के साथ द्वारा विलय के प्रस्ताव पर चर्चा करना महत्वपूर्ण था।

शरद यादव ने दावा किया कि एलजेडी-राजद विलय का उद्देश्य भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करना है। जदयू छोड़ने और एलजेडी लॉन्च करने के बाद वह दल-बदल कानून से बचने और अपनी राज्यसभा सदस्यता को बचाने के लिए ‘सलाहकार पद’ पर बने रहे। राज्यसभा से अपनी अयोग्यता को उन्होंने अदालत में चुनौती दी। वह एलजेडी में रहते हुए राजद के चुनाव चिह्न पर पिछली बार लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए। उनकी बेटी कांग्रेस की टिकट पर में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ी थीं। वह भी विलय के दौरान मौजूद रहीं।