बिहार में जातिगत जनगणना को हरी झंडी दिखा दी गई है। पटना हाई कोर्ट ने कास्ट सर्वे को वैध और लीगल माना है। उस एक आदेश के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक्शन मोड में आ गए हैं। उनकी तरफ से साफ कर दिया गया है कि जल्द से जल्द इस प्रक्रिया को पूरा करवाया जाए। उसी कड़ी में बिहार में टीचरों की जो ट्रेनिंग होने वाली थी, उसे सस्पेंड कर दिया गया है। कहा गया है कि पहले कास्ट सर्वे में शिक्षकों का इ्स्तेमाल किया जाएगा, उसके बाद ही ट्रेनिंग का प्रोग्राम फिर शुरू होगा।

कैसे मिली कास्ट सर्वे को मंजूरी?

वैसे टीचरों को छात्रों को बढ़ाने का काम जारी रखना होगा, यानी कि रूटीन वर्क के साथ कोई समझौता नहीं होने वाला है। उसके इतर इस कास्ट सर्वे के लिए भी शिक्षकों को समय निकालना होगा। इसके अलावा जो टीचर्स अभी इस समय ट्रेनिंग में लगे हैं, उनसे भी उम्मीद की गई है कि वे कास्ट सर्वे में अपनी मदद दें। जानकारी के लिए बता दें कि इस साल चार मई को पहले कोर्ट कास्ट सर्वे को सस्पेंड कर दिया था। लेकिन राज्य सरकार का तर्क रहा कि कास्ट सर्वे करवाना किसी भी राज्य का संवैधानिक अधिकार है। अब उसी कड़ी में पटना हाई कोर्ट ने मंगलवार को कास्ट सर्वे को हरी झंडी दिखा दी।

पहले क्यों हुआ था सस्पेंड?

अब इस कास्ट सर्वे को बिहार में संपन्न होने में 500 करोड़ रुपये लगने वाले हैं। राज्य सरकार ही इसका खर्चा उठाने जा रही है। यहां ये समझना जरूरी है कि बिहार सरकार यह सर्वे जनवरी के महीने में शुरू कर चुकी थी लेकिन हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी। सर्वे दो चरणों में किया जाना था। पहला चरण जनवरी में किया गया था जिसके तहत घरेलू गिनती का अभ्यास किया गया था।

सर्वे का दूसरा चरण 15 अप्रैल को शुरू हुआ, जिसमें लोगों की जाति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों से संबंधित डेटा इकट्ठा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। पूरी प्रक्रिया इस साल मई तक पूरी करने की योजना थी, लेकिन 4 मई को हाई कोर्ट के फैसले के बाद इसे रोक दिया गया था।