बिहार में हर उस शख्स को पता है जो राजनीति में थोड़ी रुचि रखते हैं कि विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों और संगठन से जुड़ाव के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह में गजब की दोस्ती है। जून 2013 में जब नीतीश कुमार ने भाजपा से राजनैतिक गठबंधन तोड़ा था तब कयास लगाए जा रहे थे कि भगवा पार्टी से आने वाले अवधेश नारायण सिंह की सभापति पद से विदाई तय है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तब भाजपा के ही वरिष्ठ नेता तथा राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि पार्टी की मर्यादा का पालन करते हुए अवधेश नारायण सिंह को तत्काल बिहार विधान परिषद के सभापति पद से त्याग पत्र दे देना चाहिए। भाजपा के कई बड़े नेताओं ने भी सिंह के पास मैसेज भिजवाया कि उन्हें छोटे मोदी की चाहत को गंभीरता से लेना चाहिए लेकिन सभापति महोदय ने अपनी पार्टी के नेताओं की सलाह को दरकिनार कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सलाह को ज्यादा तवज्जो दिया।

अब, जब अवधेश नारायण सिंह विधान परिषद के चुनाव में गया स्नातक क्षेत्र से चौथी बार किस्मत आजमा रहे हैं तो फिर राजनीतिक वातावरण और गठबंधन चर्चा में है। नीतीश कुमार अपने इस दोस्त को जिताने के लिए महागठबंधन धर्म को ठेंगा दिखा सकते हैं। जैसा उन्होनें 2011 के परिषद चुनाव और 2012 के राष्ट्रपति चुनावों के वक्त किया था। उस वक्त एनडीए में रहते हुए भी मुख्यमंत्री ने दोनों चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में अपना वोट दिया था। फर्क सिर्फ इतना था कि पहले वाले (विधान परिषद) चुनाव में समर्थन पर्सनल था यानि अन ऑफिशियल था जबकि राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन खुल्लम-खुल्ला यानि ऑफिशियल था।

इस बार भी पुरजोर चर्चा है कि अपने मित्र की जीत सुनिश्चित कराने के लिए नीतीश कुमार इस बार भी साल 2011 की तरह अन ऑफिशियल तरीके से उन्हें मदद करेंगे। वैसे बिहार में महागठबंधन सरकार के सबसे बड़ा घटक दल राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने टेलीग्राफ अखबार को बताया कि ‘‘ये कोरा अफवाह है कि नीतीश कुमार परिषद चुनावों में अवधेश नारायण सिंह का समर्थन करेगें। मेरी तरह ही कुमार भाजपा के सख्त विरोधी हैं। हम सब मिलकर भाजपा को हराएंगे तथा महागठबंधन उम्मीदवार पुनीत कुमार सिंह को जिताएंगे।” बताते चलें कि पुनीत कुमार सिंह राजद के धुरंधर और लालू प्रसाद यादव के दाहिने हाथ माने जानेवाले पूर्व सांसद जगदानंद सिंह के बेटे हैं। वो पेशे से डॉक्टर हैं और मजेदार बात ये है कि पुनीत भाजपा सांसद गोपाल नारायण सिंह द्वारा संचालित एक हॉस्पिटल में कार्यरत हैं।

अपने स्तर से सभापति अवधेश नारायण सिंह ने बहुत प्रयास किया कि सभी राजनीतिक दल मिल-बैठकर सर्वसम्मति से उन्हें उम्मीदवार घोषित कर दें। लेकिन साफ दिल वाले राजनेता कहे जाने वाले लालू प्रसाद यादव ने तीन दिन पहले ही एक पत्रकार को बता दिया कि ऐसा तभी संभव है जब सभापति महोदय राजद में शामिल हो जाएंगे। बतौर पत्रकार लालू ने कहा, “मैं तो जीते जी कभी किसी सवाल पर भगवा फोर्स का समर्थन नहीं कर सकता हूं।”

अगर नीतीश कुमार वाकई मन बना लेते हैं कि चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अवधेश नारायण सिंह को विजय श्री दिलानी है तो यह चुनाव रोचक होगा। सीएम द्वारा लिया जाने वाला संभावित कदम महागठबंधन में पहले से चल रहे खटास को तीखा कर सकता है क्योंकि हाल के दिनों में नीतीश कुमार ने कई मुद्दो पर महागठबंधन लीक से हटकर बयान दिया है जो लालू प्रसाद यादव को नागवार लगा है। हालांकि, अभी तक जनता दल यूनाइटेड के किसी नेता ने नहीं कहा है कि हाई कमान की तरफ से उन्हें सभापति के पक्ष में वोट डालने का पैगाम आया है। 9 मार्च को चुनाव होने हैं।