Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: पूरे बिहार में शराबबंदी को लेकर लैंगिक आधार पर राय तेजी से बंटी हुई दिख रही है। जहां सभी जाति समूहों के पुरुष शराबबंदी को हटाना चाहते हैं, वहीं महिलाएं इसका भारी समर्थन कर रही हैं। मुजफ्फरपुर में बूढ़ी गंडक नदी के किनारे मौजूद रीवा गांव में लल्लन सहनी और उनके दोस्त अपने घर के बाहर बैठकर चर्चा कर रहे हैं कि किस तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति ने पूरे बिहार में तबाही मचा दी है।”
सहनी ने कहा, “नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में अच्छे काम किए हैं। यही (शराबबंदी) उनकी एकमात्र गलती है। शराब अब भी मिलती है, बस महंगी हो गई है और जो पीते हैं, उन्हें जेल हो जाती है। सिर्फ गरीबों को ही नुकसान होता है।” इस बात पर सहनी के दोस्त सिर हिलाते हैं। इनकी आवाज सुनकर 50 साल की आशा देवी घर से बाहर निकल जाती हैं। उन्होंने कहा, “तुम मर्दों को तो बस शराब पीकर नशे में धुत होना है। अभी तो पिटोगे, दफा हो जाओ।” वो डांटती हैं और कहा, “नीतीश कुमार ने सही किया है। मर्द शराब पीकर घर आते हैं और खाने दे चिल्लाते हैं। मेरे पति शराब पीने के बाद भैंस खरीदने की बात करते हैं, सुबह तक तो उनके पास बकरी खरीदने के पैसे नहीं बचते।”
सीवान के हुसैनगंज में यूट्यूबर मुन्ना मतलबी को भी अपनी पत्नी से ऐसी ही फटकार का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने सुझाव दिया कि शराबबंदी हटा दी जानी चाहिए। यह विभाजन और महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं की भरमार, इस बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के अभियान को परिभाषित करने वाले अहम फैक्टर में से एक बन गया है।
शराब पर पूरी तरह से प्रतिंबध लगा देना चाहिए- पुष्पा देवी
रीवा में गांव के कुएं के पास चार महिलाएं इसी मुद्दे पर चर्चा करती हैं। पुष्पा देवी ने कहा, “नीतीश जी ने जो किया है वह अच्छा है, लेकिन पूरा बैन होना चाहिए। यहां तक कि अवैध देशी शराब भी नहीं मिलनी चाहिए।” सुनीता देवी सहमति में सिर हिलाती हैं और कहती हैं, “पहले से अब भी बेहतर है। पहले लोग शराब पीकर सड़कों पर घूमते थे और दुर्घटनाओं में मर जाते थे। उनके परिवार जीवन भर कष्ट झेलते थे।”
बिहार की शराबबंदी नीति राज्य के सबसे ज्यादा ध्रुवीकरण वाले मुद्दों में से एक बनी हुई है। यह नीति साल 2016 में लागू हुई थी। सामाजिक तौर पर इसने कई ग्रामीण परिवारों में बदलाव लाया है। राजनीतिक रूप से हालांकि, शराबबंदी एक दोधारी तलवार बन गई है। महिलाएं इसका समर्थन करती हैं, लेकिन अनियंत्रित तस्करी और पुलिस के दुरुपयोग ने इसकी नैतिक अपील को कम कर दिया है। आर्थिक रूप से, राज्य को आबकारी राजस्व में हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है और एक समानांतर काला बाजार फल-फूल रहा है।
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जेडीयू ने शराबबंदी को बताया नैतिक सुधार
इस मुद्दे ने राजनीतिक परिदृश्य को भी विभाजित कर दिया है। जहां जेडीयू शराबबंदी को एक नैतिक सुधार बता रहा है, वहीं सीपीआई(एमएल) एल और प्रशांत किशोर की जन सुराज जैसी पार्टियां ऐलान कर चुकी हैं कि सत्ता में आने पर वे इस प्रतिबंध को हटा देंगी।
गोपालगंज के भोरे निर्वाचन क्षेत्र के बासुदेवा गांव में शिवशंकर और मुकेश चौहान, दोनों नोनिया ईबीसी जाति से हैं। वह पुरुषों के एक बड़े वर्ग द्वारा व्यक्त की गई नाराजगी को दोहराते हैं। शिवशंकर कहते हैं, “नीतीश ने बाकी सब अच्छा किया है, सड़कें, बिजली, सब कुछ। बस शराबबंदी ही समस्या है। जेलें गरीबों से भरी हैं। अगर आप शराब पर नियंत्रण चाहते हैं, तो परमिट दीजिए ताकि लोग कानूनी तौर पर शराब खरीद सकें।”
लेकिन उसी गांव की सुमित्रा देवी और पूजा देवी शराबबंदी को एक वरदान मानती हैं। वे कहती हैं, “जो लोग शराब पीते हैं, उन्हें अब भी शराब मिल ही जाती है। फिर भी, नीतीश का यह सबसे अच्छा फैसला है। घरेलू झगड़े कम हो गए हैं और युवा पीढ़ी शराब की लत नहीं लगा रही है। अगर गांव में दुकानें होतीं, तो उन्हें कौन रोकता? कम से कम अब तो कानून का डर तो है।”
पश्चिमी चंपारण के मुसहर टोला के गरीब आश्रम में रहने वाले छट्टू राम का जवाब व्यंग्य से भरा है। जब उनसे पूछा गया कि सरकार से उन्हें क्या फायदा हुआ है, तो उन्होंने कहा, “बहुत हुआ। सबसे बड़ा फायदा ये है कि जो शराब पहले 25 रुपये में मिलती थी, वो अब 200 रुपये में मिल रही है। यही तो विकास है।” फिर गंभीर होते हुए उन्होंने कहा, “हमें अपनी शराब चाहिए, बस हम इसके लिए जेल नहीं जाना चाहते। अगली जो भी सरकार आए, उसे इसे ठीक करना चाहिए।”
शराबबंदी राज्य में सबसे भावनात्मक मुद्दों में से एक
उसी गांव की कलिता देवी की चिंताएं कुछ और हैं। उन्हें अभी तक मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) के तहत मिलने वाली 10000 रुपये की राशि नहीं मिली है। वे कहती हैं, “मैं शराब नहीं पीती, इसलिए शराबबंदी मेरे लिए मायने नहीं रखती। जो लोग पीते हैं, वे शराब की त्रासदी में मर जाते हैं।” सीवान के आनंद में एक दुकानदार गोलू कुमार को यही बात परेशान करती है। वे कहते हैं, “नीतीश कुमार के लिए यह कहना आसान है कि जो शराब पीते हैं वे मरेंगे, लेकिन सरकार को शराब से होने वाली मौतों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अब लोग ज्यादा पैसे देते हैं और फायदा सिर्फ तस्करों और पुलिस को होता है।” बिहार में मतदान के दौरान शराबबंदी राज्य में सबसे भावनात्मक मुद्दों में से एक बनी हुई है। यह न केवल पार्टियों और जातियों को बल्कि परिवारों को भी विभाजित कर रही है।
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