बिहार की राजनीति किसी फिल्म से कम नहीं, यहां इतने ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिल जाते हैं कि बॉलीवुड भी मात खा जाए। इस फिल्म के लीड एक्टर नीतीश कुमार हैं जो अपने इशारों पर पिछले 24 सालों से कभी आरजेडी तो कभी बीजेपी को नचा रहे हैं। एक बार फिर उनकी फिल्म का सियासी क्लाइमेक्स आ गया है, इस बार छलांग फिर आरजेडी से बीजेपी की तरफ लगानी है, लेकिन उस राह में एक बड़ा ‘खेल’ है। इस खेल का असल गणित तेजस्वी यादव के दिमाग में फिट है और इसी वजह से अभी फिल्म बाकी है।

वर्तमान में जरूर स्थिति नीतीश के लिए मुफीद दिखाई दे रही है। कहा जा रहा है कि आज सुबह 10 बजे जेडीयू की बैठक है जिसके बाद नीतीश अपना इस्तीफा दे देंगे। इसके बाद शाम चार बजे फिर उनका शपथ ग्रहण भी संभव है जिसमें बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की आने की खबर भी है। बड़ी बात ये है कि अभी जेडीयू के पास बीजेपी के साथ मिलकर पूर्ण बहुमत है। ना किसी को तोड़ने की जरूरत है और ना ही किसी को साथ लाने की बहुत ज्यादा जरूरत।

लेकिन जिनता आसान ये नीतीश कुमार के लिए दिखाई दे रहा है, तेजस्वी के एक बयान ने इसे उतना ही चुनौतीपूर्ण भी बना दिया है। कहने को वे अभी शांत है, अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं, लेकिन फिर भी बैठकों का दौर जारी है। बैठकों में विधायकों को जो निर्देश दिए जा रहे हैं, वो बताने के लिए काफी है कि कुछ खिचड़ी तो जरूर पक रही है। इस खिचड़ी के सियासी मसाले तेजस्वी और लालू के पास मौजूद लग रहे हैं। ये सच है कि जीतनराम मांझी से डील सफल नहीं हो पाई है, लेकिन अभी भी खेल किया जा सकता है।

आरजेडी के पास पहला विकल्प तो ये है कि वो राज्यपाल को जाकर बोले कि वो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है। उसके ऊपर किसी तरह वो जेडीयू के कुछ विधायकों को अपने साथ जोड़े। उस स्थिति में पार्टी 122 के जादुई आंकड़े तक पहुंच सकती है। एक बड़ा खेल ये भी किया जा सकता है कि अगर जेडीयू के कुछ विधायक इस्तीफा दे दें, उस स्थिति में बहुमत का आंकड़ा ही कम हो जाएगा और आरजेडी के पास एक बड़ा अवसर बन जाएगा। दूसरा खेल ये किया जा सकता है कि अभी के लिए नीतीश को सीएम पद की दोबारा शपथ लेने दी जाए। लेकिन बाद में जब बहुमत साबित करने की बारी आए तब या तो क्रॉस वोटिंग करवा दी जाए या फिर विधायकों को ही मौके से अनुपस्थित रखा जाए। उस स्थिति में भी नीतीश की सरकार गिर जाएगी।

एक तीसरा विकल्प ये भी खुल रहा है कि अगर जेडीयू के ही कई सारे विधायक एक अलग गुट बना लें और खुद को मान्यता दिलवाएं। तब ये संभव है कि आरजेडी उनके साथ मिलकर सरकार बना ले। ये वो मॉडल है जिसके दम पर एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र में खेल किया था और फिर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन यहां बिहार में सीन ये है कि राज्यपाल बीजेपी के करीबी माने जाते हैं, ऐसे में वहां आरजेडी की कितनी दाल गलेगी, ये बता पाना ही मुश्किल है। ऐसे में बिहार का ये सियासी ड्रामा आज यानी कि रविवार को खत्म भी हो सकता है और अगर आरजेडी की किस्मत चमकी तो किसी बड़े खेल से भी इनकार नहीं किया जा सकता।