बिहार सरकार ने बीते 25 अगस्त को राज्य के प्राथमिक विद्यालयों के लिए 8386 शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य अनुदेशकों की भर्ती निकाली है। इस अनुदेशकों की नियुक्ति संविदा पर होनी है। लेकिन इस बड़ी भर्ती के विज्ञापन को देखकर युवाओं में खुशी के बजाय रोष दिखाई दे रहा है। इसका कारण ये है कि इस पद के लिए निर्धारित मानदेय मात्र 8000 रुपये प्रति माह ही है।
बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार के द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में शिक्षा विभाग में 8386 शारीरिक शिक्षा एवं स्वास्थ्य अनुदेशकों के अंशकालिक पदों के सृजन की स्वीकृति दी गई है। इस भर्ती से राजकोष पर प्रतिवर्ष लगभग 81 करोड़ रूपये व्यय किये जाएंगे।
बिहार के सहरसा जिले के रहने वाले रंजन कुमार ने जनसत्ता से बात करते हुए कहा, “मैंने इस पद के लिए आवश्यक बी पी एड और एम् पी एड किया हुआ है। जिसमें मेरे 5 लाख रूपये से भी ऊपर पैसे खर्च हुए। ऐसे में मैं 8000 रुपये की नौकरी बिलकुल अपर्याप्त है। मैंने 2014 में अपने बीपीएड कोर्स के बाद एक प्राइवेट स्कूल में बतौर शारीरिक शिक्षक एक नौकरी की थी। वहां पर मुझे प्रतिमाह 15 हजार रूपये मिल रहे थे। बिहार सरकार शिक्षित और योग्य युवाओं का मनोबल तोड़ने का काम कर रही है।
सरकार के द्वारा जारी इस पत्र को साझा करते हुए ट्विटर यूजर विवेक कुमार ने लिखा है कि बिहार में शारीरिक शिक्षा के शिक्षक के लिए 8000 रूपये वेतन है। जबकि इस पद की अर्हता के लिए बीपीएड का कोर्स करने में लगभग 3 लाख रूपये का खर्च आ जाता है।
Bihar me physical teacher ki salry STE pass krne k bad 8000/- b.p.ed course krne me 3 lakh lag jata hai.. pic.twitter.com/7ktcvoMRdG
— vikash kumar (@KumarVikashrj75) August 25, 2020
आपको बता दें कि इस समय देश में मनरेगा मजदूरों को भी अलग अलग राज्यों में प्रति कार्य दिवस के हिसाब से दो सौ से तीन सौ रुपये मिल रहे हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक अनूप सत्पथी कमेटी ने बिहार जैसे राज्यों के लिए न्यूनतम दैनिक मजदूरी 342 रुपये करने का सुझाव दिया है। 342 रुपये प्रति दिवस के हिसाब से 8892 रूपये प्रति महीने बनते हैं। कमेटी का यह सुझाव उन मजदूरों के लिए है जो अकुशल या अर्धकुशल हैं। ऐसे में शिक्षक स्तर की नौकरी के लिए 8000 रुपये पूरी तरह बेमानी है।
लॉकडाउन के कारण चौपट हुई अर्थव्यवस्था के साथ ही बिहार भीषण बाढ़ से भी जूझ रहा है। चुनाव के समय जहां बिहार में वापस लौटे प्रवासी मज़दूरों में पहले से ही एक रोष दिखाई दे रहा है। ऐसे में शिक्षित युवाओं की नाराज़गी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भारी पड़ सकती है।