बिहार के कई जिले बाढ़ से बेहाल हैं। मधेपुरा बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का केंद्र भी माना जा सकता है। मधेपुरा स्थित आलमनगर विधानसभा और चौसा प्रखंडों में लोग हर साल कोसी नदी के उफान का सामना करते हैं। इस नदी को बिहार का ‘शोक’ कहा जाता है। दशकों से यहां के निवासियों को बार-बार बाढ़ की मार झेलनी पड़ती है और सरकारों के वादों और राजनीतिक अभियानों के बावजूद कोई ठोस समाधान नहीं मिला है। यह कथा मधेपुरा के एक बड़े गांव की निराशा, दुख और लचीलापन को दर्शाती है, जहां लगभग 10,000 लोग 12 से 15 टोलों में रहते हैं।
RJD के संभावित प्रत्याशी नबी निषाद कहते हैं, “आलमनगर में 79 साल बाद भी बाढ़ की समस्या पर गुस्सा आता है। मौजूदा विधायक के 30 साल के कार्यकाल के बावजूद कोई बांध नहीं बन सका। हर साल, तीन से चार महीने तक कोसी नदी का पानी घरों और खेतों को डुबो देता है, जिससे जीवन ‘नारकीय’ हो जाता है। एक व्यक्ति कहता है, तो हम भी पहुंचे मधेपुरा के इस चौसा प्रखंड में जहां कुर्मी, यादव, तेली, सुनार और हरिजन जैसे विविध जातियों के लोग रहते हैं, जो एकजुट होकर हमें बताते हैं, नीतीश हो, लालू हो, या मोदी, कोई भी सरकार कुछ नहीं देती। खाली नाम का सरकार है।” नबी निषाद का दावा है कि अगर उन्हें चुना जाता है, तो वे पांच साल में आलमनगर को बाढ़ मुक्त करेंगे और अगर असफल रहे तो दोबारा चुनाव नहीं लड़ेंगे।
महिलाओं से घिरी रीता देवी कहती हैं, “मोदी जी को वोट देते हैं, लेकिन गरीब को राहत कहां?” बेबी देवी आगे आकार गुस्से में बोलती हैं, “नेता रोड से घूमकर वापस चले जाते है, कहते है डूब जाओ, मर जाओ…. ऐसा प्रतीत होता है यहां के निवासी अस्थायी सहायता जैसे चूरा या मोमबत्ती नहीं, बल्कि स्थायी समाधान जैसे सड़कें, तटबंध और बाढ़ नियंत्रण चाहते हैं।”
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सब चीज चाहिए, नहीं तो क्या पानी चाटवा, चाटवा!
किसान हर साल अपनी फसल खो देते हैं और सरकारी सहायता न के बराबर होती है। एक निवासी भोलेलाल यादव ने हमे कहा, “प्रत्येक साल फसल छी होता है और किसी भी प्रकार का सरकारी तरफ से कोई ठोस पहल नहीं होता है।” लोगों का गुस्सा स्थानीय विधायक नरेंद्र नारायण यादव, मुखिया और जिला परिषद जैसे प्रतिनिधियों पर है, जो उनकी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देते। एक व्यक्ति कहता है कि वो 20 साल से चौसा प्रखंड में है लेकिन कोई सरकरी प्रतिनिधि नहीं देखने नहीं आता है, सर्वेक्षण भी नहीं होता है।” भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन इस विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा है।
एक और निवासी बताते है, “सर्वे करने आए, खाली कागज दे दिया। बोले, अपना खोज के निकालो।” सरकारी योजनाएं जैसे किसान सम्मान निधि भी समय पर नहीं मिलतीं। भोलेलाल यादव, एक किसान बोले किसान सम्मान भर-भर के दिया है, लेकिन अभी नहीं मिल रहा। मधेपुरा में कोसी नदी का बहाव हर साल बढ़ता है, जो बारिश के मौसम में घरों और खेतों को डुबो देता है।
नदी फूलती है तो घरों तक घुस जाती है। लोगों की जिंदगियां जिस तरह प्रभावित होती हैं, वह सोच और कल्पना से परे है। जब हम गांवो में जाते हैं तो मूलभूत सुविधाएं जैसे सड़क, बिजली योजनाओं तक सीमित नज़र आती हैं, जिससे सालों दर साल ग्रामीण समुदाय अलग-थलग पड़ जाते हैं। गांव में नाव ही एकमात्र यातायात का साधन है। एक निवासी शिकायत करता है, “20 साल हो गया, कोई निकास, विकास कुछ नहीं है। ना कोई प्रतिनिधि ध्यान दे रहा है।
2008 की बाढ़
जब कुसहा तटबंध टूटा, मधेपुरा के लोगों के इतिहास की सबसे विनाशकारी बाढ़ साबित हुई। इसने सुपौल, सहरसा, अररिया और पूर्णिया जैसे जिलों को जलमग्न कर दिया। एक व्यक्ति याद करता है, “2008 में घर भस गए, कट गए, हम बेघर हो गए।” इस बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर किया और 250 से अधिक लोगों की जान ले ली। एक अन्य निवासी कहता है, “2008 में बहुत बुरा देखा। मधेपुरा सब धंस रहा था। उस समय लोग स्कूलों या ऊंचे स्थानों पर शरण लेने को मजबूर थे।” एक व्यक्ति बताते हैं, “पानी में हम लोग कभी रोड पर, कभी स्कूल में पड़े रहते , कोई देखने वाला नहीं था। भूखे-प्यासे दिन काट रहे थे।”
2024 की बाढ़ ने फिर से चौसा और फुलौत को प्रभावित किया है। नेपाल से आने वाला पानी और फरक्का बैराज में गाद जमा होने से स्थिति और गंभीर हो गई। बोलेलाल यादव कहते हैं, “फसल दहा गया, दो बीघा नुकसान हो गया। अब भूखे मरेंगे और क्या करेंगे? पशुओं के लिए चारे की कमी और खेती की तबाही ने आर्थिक संकट को और गहरा दिया है। एक अन्य निवासी शिकायत करता है, “गाय, भैंस डूब गया। यह हर्जा कौन देगा? सरकार को देना चाहिए, लेकिन सरकार कुछ नहीं देता।”