Bihar Election Result: बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम अप्रत्याशित रहे। अभी तक के रुझानों में एनडीए की डबल सेंचुरी हो चुकी है, जबकि महागठबंधन मात्र 37 सीटों पर बढ़त बनाए हुए दिख रहा है। यहां भी राजद और कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब इस बार महागठबंधन ने नौकरियों के इतने बड़े वादे किए, जब नीतीश कुमार के खिलाफ इतनी एंटी-इंकम्बेंसी का दावा किया गया, तो आखिर कैसे उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा? ऐसी कौन-सी गलतियां हुईं कि तेजस्वी यादव एक बार फिर सत्ता की कुर्सी से दूर रह गए?

महागठबंधन में तालमेल की भारी कमी

इस चुनाव में महागठबंधन की हार का सबसे बड़ा कारण उनके दलों के बीच तालमेल का अभाव रहा। शुरुआती समय में खबरें आईं कि राहुल गांधी, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करना चाहते। विरोधियों ने भी इस मुद्दे को जमकर उछाला। इसके बाद सीट बंटवारे में कई दिनों की देरी होती रही और आम सहमति नहीं बन सकी। हैरानी की बात यह रही कि नॉमिनेशन की अंतिम तिथि तक कई सीटों पर महागठबंधन के भीतर ही फ्रेंडली फाइट देखी गई। शुरुआती रुझान बता रहे हैं कि इस अव्यवस्था का खामियाजा महागठबंधन को चुनाव परिणामों में भुगतना पड़ा।

रणनीति में भी नहीं दिखा समन्वय

महागठबंधन चुनावी रणनीति में भी एकजुटता नहीं दिखा पाया। तेजस्वी यादव केवल अपने नौकरी वाले वादे पर फोकस करते रहे, जबकि कांग्रेस अपनी अलग गारंटियों और मुद्दों पर चल रही थी। एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम नदारद रहा। कांग्रेस वोट चोरी और फर्जी वोटिंग जैसे मुद्दों पर ज्यादा बोल रही थी, वहीं तेजस्वी का मुख्य हमला नीतीश कुमार पर केंद्रित था। यह बिखराव एनडीए के मुकाबले महागठबंधन की अभियान क्षमता को कमजोर करता गया।

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जंगलराज की छवि से बाहर नहीं निकल पाए तेजस्वी

इस बार भी एनडीए ने “जंगलराज” को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया। यह वह शब्द है जिसका कई वर्षों पहले अदालत ने अलग संदर्भ में इस्तेमाल किया था, लेकिन नीतीश कुमार से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक इस शब्द को कानून-व्यवस्था से जोड़कर राजद की नकारात्मक छवि के रूप में प्रचारित करते रहे। हर बार जब तुलना “सुशासन बनाम राजद” की आती है, तो जंगलराज का पहलू तेजस्वी यादव के लिए कमजोर कड़ी बन जाता है। इस बार भी यही हुआ।

सीमांचल में मुसलमानों ने नहीं दिखाया भरोसा

महागठबंधन की अप्रत्याशित हार का एक बड़ा कारण सीमांचल क्षेत्र भी है। यह इलाका पारंपरिक रूप से महागठबंधन का मजबूत गढ़ माना जाता था। लेकिन इस बार 24 सीटों में से 18 पर एनडीए आगे चल रहा है। रुझानों से साफ़ है कि मुसलमान वोट का एक हिस्सा इस बार एनडीए के खाते में गया। इसकी एक वजह जदयू की पकड़, पसमांदा मुस्लिमों का झुकाव और नीतीश कुमार की जनकल्याण योजनाओं का स्थानीय स्तर पर प्रभाव माना जा रहा है।

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