बिहार में विधानसभा चुनाव में जो समीकरण बन रहे हैं, उनके बीच एक अलग ही चर्चा राजनीतिक गलियारों में जोर पकड़ रही है। यह चर्चा है पर्दे के पीछे से प्रशांत किशोर की भूमिका की। चर्चा है कि चिराग पासवान और प्रशांत किशोर की करीबी बिहार के सियासी समीकरण को अलग ही दिशा में ले जा रही है। अटकलें यहां तक हैं कि किशोर की सलाह पर ही चिराग ने जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस तरह प्रशांत जहां जदयू से अपने ‘अपमानजनक निष्कासन’ का बदला ले सकते हैं, वहीं करीबी नरेंद्र मोदी को भी फायदा पहुंचा सकते हैं।
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और आरजेडी महागठबंधन को शानदार जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले प्रशांत किशोर यानी की पीके इन दिनों बिहार के राजनीतिक परिदृश्य से बिल्कुल गायब हैं। जमीनी स्तर पर देखने पर ऐसा लगता है कि पीके और उनकी कंपनी आईपैक इन दिनों बिहार में कुछ नहीं कर रही है। लेकिन विश्वस्त सूत्रों की मानें तो पीके पर्दे के पीछे से एक अलग ही रणनीति बनाने में लगे हुए हैंं। सूत्र बताते हैं कि पीके और चिराग दो साल से लगातार संपर्क में हैं। चिराग और प्रशांत किशोर रामविलास पासवान के पटना वाले घर पर 11 नवंबर 2018 को मिले थे। फिर अगले ही दिन 12 नवंबर को पटना में सीएम आवास में भी ये दोनों फिर से मिले। तब से दोनों लगातार संपर्क में रहते हैं।
पीके के करीबी ‘भगवान’ ने ‘झोपड़ी’ में ली शरण: हाल ही में जेडीयू नेता और प्रशांत के करीबी माने जाने वाले भगवान सिंह कुशवाहा द्वारा एलजीपी का दामन थामा जाना भी प्रशांत और चिराग की करीबी का नतीजा माना जा रहा है। 2019 की शुरुआत में जब प्रशांत किशोर जेडीयू के उपाध्यक्ष हुआ करते थे तभी भगवान सिंह कुशवाहा को उनके काफी समर्थकों के साथ जेडीयू ज्वाइन करवाया था। उस समय कुशवाहा को काराकट लोकसभा सीट से टिकट देने का वादा किया गया था।
हालांकि टिकट बंटवारे में जेडीयू महासचिव आरसीपी सिंह के सामने प्रशांत की चल नहीं पाई और कुशवाहा को लोकसभा टिकट मिलते-मिलते रह गया। प्रशांत के जेडीयू छोड़ने के बाद कुशवाहा भी पार्टी में अलग-थलग ही पड़े हुए थे। ऐसे में चिराग ने कुशवाहा को अपनी झोपड़ी (पार्टी चुनाव चिह्न) में शरण दी और उन्हें जगदीशपुर विधानसभा से उम्मीदवार बनाया। कुशवाहा के जाने से निश्चित तौर पर जेडीयू को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है, लेकिन अब कुशवाहा किसी खास रणनीति के तहत चिराग तले जाकर चुनाव लड़ने का फैसला कर चुके हैं।
प्रशांत की सीएम बनने की महत्वकांक्षा: सितंबर 2018 में जब अचानक प्रशांत किशोर ने जेडीयू को दामन थामते हुए सक्रिय राजनीति में कदम रखा तो उस वक्त लोगों को काफी हैरानी हुई थी। लेकिन जेडीयू जैसी पार्टी ज्वाइन करने के पीछे प्रशांत की अपनी महत्वकांक्षा थी। प्रशांत को यह उम्मीद थी कि नीतिश के बाद नंबर दो की पोजिशन पर वह पार्टी में आ गए हैं और भविष्य में वह बिहार के सीएम बन जाएंगे। इस काम के लिए उनकी कंपनी (आईपैक) ने पूरी तैयारी भी कर ली थी।
प्रशांत किशोर की कंपनी ने “बिहार T-10 मिशन” (टॉप-10 बिहार) नाम से एक कैंपेन भी तैयार कर लिया था, जिसका मकसद था अगले 10 साल में बिहार को स्वास्थ्य, शिक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर हर मामले में देश के टॉप-10 राज्य में लाना। इस कैंपेन के जरिए पूरे राज्य में प्रशांत किशोर की ब्रांडिंग और उनको भविष्य के सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने की योजना थी। इस कैंपेन की शुरुआत पिछले साल अगस्त-सितंबर महीने में ही होने वाली थी, लेकिन नीतिश बाबू की तरफ से हरी झंडी नहीं मिल पाने के कारण ऐसा हो नहीं पाया।
जेडीयू के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह हमेशा से खुद को नीतीश के बाद नंबर दो मानते रहे हैं, वहीं लल्लन सिंह भी नीतीश के खास हैं। ऐसे में इन दोनों नेताओँ को पार्टी में प्रशांत खटकते रहे। प्रशांत से इनके रिश्ते भी सही नहीं बन पाए और इसका खामियाजा अंततः प्रशांत को भुगताना ही पड़ा।
टीम पीके का बनाया हुआ कैंपेन, चिराग कर रहे इस्तेमाल! चिराग जिस तरीके से पिछले कुछ महीनों से बिहार में राजनीति कर रहे हैं वह पैटर्न प्रशांत किशोर का ही है। सबसे पहले बात पीके के “T-10 मिशन” की करते हैं। टीम पीके ने “T-10 मिशन” कैंपेन बनाया था, जिसका मकसद बिहार को टॉप राज्य में लाना और प्रशांत को सीएम बनाना था, हालांकि प्रशांत इस कैंपेन को कर नहीं पाए। जनवरी में प्रशांत के जेडीयू से निकाले जाने के बाद फरवरी में चिराग ने ‘बिहार 1st, बिहारी 1st’ कैंपेन की शुरुआत की। इसका मकसद प्रशांत के कैंपेन से बिल्कुल मिलता-जुलता था। यानी बिहार को नंबर-1 राज्य बनाने की बात लेकर जनता तक पहुंचना।
पीके सोशल मीडिया के एक्सपर्ट माने जाते हैं, वहीं पिछले कुछ महीनों से चिराग सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव भी नजर आ रहे हैं। एक समय था जब बिहार अस्मिता और बिहार के पिछड़ेपन की बात हमेशा पीके उठाते रहते थे, अब उस काम को चिराग आगे बढ़ा रहे हैं और नीतिश पर निशाना साध रहे हैं।
बिहार चुनाव के लिए पिछले साल ही पीके की टीम हो गई थी तैयार: लगभग एक साल से ज्यादा समय तक प्रशांत के साथ उनकी कंपनी के काफी सदस्यों ने बिहार में डेरा जमाए रखा। लोकसभा चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से जेडीयू की मदद करने के साथ-साथ 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू के लिए रणनीति बनाने के काम में जुटे हुए थे आईपैक के प्रोफेशनल्स।
पिछले साल अगस्त-सितंबर में ही आईपैक की एक कोर टीम बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए तैयार हो गई थी और कुछ समय के लिए ग्राउंड सर्वे के लिए भी गई थी। लेकिन पार्टी में ही कई अन्य वरिष्ठ नेताओं से प्रशांत के खराब रिश्तों के चलते सारी योजना बिगड़ गई।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जेडीयू चुनाव लड़ रही थी, लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी आम आदमी पार्टी की मदद कर रही थी। ये बात जेडीयू के कई नेताओं को खटक रही थी और कईयों ने इसका विरोध भी किया। सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर नीतीश से प्रशांत का मनमुटाव पार्टी से प्रशांत के बाहर जाने के लिए तात्कालिक कारण बना।
लेकिन पार्टी नेताओं के साथ सही से सामंजस्य नहीं बैठा पाने और नंबर दो की लड़ाई की वजह से पार्टी के कुछ मंझे हुए नेताओं ने इसकी कहानी तो पहले ही लिख दी थी। जो प्रशांत किशोर सीएम बनने की चाह में जेडीयू आए थे और जिन्हें नीतिश कुमार ने खुद पार्टी ज्वाइन करवाया था, उन्हें 29 जनवरी 2020 को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद उन्होंने वैकल्पिक नेतृत्व देने की बात कह कर बाकायदा ‘बात बिहार की’ नाम से कैंपेन का ऐलान किया।
‘बात बिहार की’ के फेसबुक पेज के जरिए वह लगातार नीतीश सरकार के विरोध में प्रचार कर रहे हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस पेज और इसके कंटेंट को लोगों तक पहुंचाने के लिए करीब आठ महीने में 67।62 लाख रुपए भी खर्च किए जा चुके हैं। यह पेज इसी साल 15 फरवरी को बनाया गया था। लेकिन, जमीनी रूप से इस कैंपेन की कोई हचचल दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में अटकलें यही लग रही हैं कि वह नीतीश का वैकल्पिक नेतृत्व लाने के लिए अपनी ताकत और दिमाग का इस्तेमाल कर रहे हैं और बीजेपी के प्लान को चिराग के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं।